ISRO के लिए क्यों महत्वपूर्ण है भारत का पहला निजी PSLV रॉकेट? जल्द भरेगा अंतरिक्ष के लिए उड़ान
भारत का पहला निजी PSLV रॉकेट जल्द ही अंतरिक्ष के लिए उड़ान भर सकता है. PSLV के अधिकतर हार्डवेयर तैयार हो चुके हैं और पहला लॉन्च लगभग तय माना जा रहा है. इसके अलावा आने वाले सालों में कम से कम दो और लॉन्च की योजना भी बनाई गई है, जो भारतीय निजी अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ने वाला है. देश का पहला निजी तौर पर निर्मित PSLV रॉकेट 2026 की शुरुआत में अंतरिक्ष की उड़ान भर सकता है. यह मिशन न केवल निजी क्षेत्र की बढ़ती क्षमता का प्रतीक है, बल्कि यह भारत को वैश्विक लॉन्च मार्केट में और भी मजबूत बनाकर खड़ा करेगा.
रॉकेट निर्माण में शामिल उद्योग साझेदारों ने पुष्टि की है कि PSLV के अधिकतर हार्डवेयर तैयार हो चुके हैं और पहला लॉन्च लगभग तय माना जा रहा है. इसके अलावा आने वाले सालों में कम से कम दो और लॉन्च की योजना भी बनाई गई है, जो भारतीय निजी अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
PSLV-N1 ले जाएगा EOS-10 उपग्रह
निजी निर्मित PSLV की पहली उड़ान में PSLV-N1, पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-10 को लेकर जाएगा. योजना के अनुसार, यह मिशन 2025 की पहली तिमाही में होना था, लेकिन उपग्रह तैयार न होने के कारण कार्यक्रम में देरी हुई.
एलएंडटी प्रिसिजन इंजीनियरिंग एंड सिस्टम्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एटी रामचंदानी ने बताया "हमने PSLV हार्डवेयर की आपूर्ति शुरू कर दी है और उम्मीद है कि अगले साल दो या तीन लॉन्च कर पाएंगे. कुछ सिस्टम में चुनौतियां थीं, लेकिन ISRO ने भरपूर सहयोग किया. हम लॉन्च के लिए तैयार हैं"
निजी PSLV निर्माण, ISRO की नई दिशा
ISRO ने साल 2022 में PSLV के व्यावसायीकरण की घोषणा की थी, जिसके बाद यह अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण के बाद व्यावसायीकरण के चरण में प्रवेश करने वाला पहला भारतीय लॉन्च व्हीकल बना. HAL और L&T कंसोर्टियम को ISRO के लिए पांच PSLV रॉकेट बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है, जबकि आने वाले समय में इस संख्या को बढ़ाने की संभावना है. रामचंदानी ने बताया कि "मेरा मानना है कि मांग आगे भी बनी रहेगी और हम 10 और PSLV लॉन्च बना सकते हैं. यह मॉडल SSLV से अलग है, जहां कंपनियों को खुद लॉन्च बेचना होता था."
निजी PSLV लॉन्च क्यों महत्वपूर्ण है?
- भारत निजी लॉन्च मार्केट में नई ऊंचाइयों तक पहुंचेगा
- भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे
- ISRO की क्षमता बढ़ेगी और लागत व समय दोनों की बचत होगी
- भारत वैश्विक अंतरिक्ष व्यापार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा





