1965 में हम आधा पाकिस्तान ले लेते तो आज पहलगाम और पुलवामा खूनी न होते - Ex IPS TR Kakkar Exclusive
22 अप्रैल 2025 को हो चुके पहलगाम नरसंहार के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुई ‘अंदरूनी-कलह’ के दौर में इस कदर खुलकर बोलने की जुर्रत, शायद ही कोई कर पा रहा है जैसी स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर-क्राइम से एक्सक्लूसिव बातचीत में भारतीय फौज के पूर्व मेजर टी आर कक्कड़ ने कही.

“1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तब मैं भारतीय फौज में जम्मू-कश्मीर में तैनात था. 1965 की लड़ाई के दौरान में पहले कैप्टन था, बाद में प्रमोशन पर मेजर बन गया. मुझे खूब अच्छे से याद है कि कैसे हम (भारतीय फौज) उस भीषण युद्ध में हाजीपीर को रौंदते हुए आगे निकल गए थे. साल 1999 से 2000 के बीच भारत के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के यहां, विशेष सचिव आंतरिक सुरक्षा के पद पर भी रहा. कह सकता हूं कि मैं लंबे समय कश्मीर घाटी में तैनात रहने की वजह से उसकी रग-रग से वाकिफ हूं.''
फौज और ब्यूरोक्रेट के अपने लंबे अनुभव से मैं ठोक कर कह सकता हूं कि, अगर 1965 में जब हम (भारतीय फौज) पाकिस्तान के भीतर जा ही घुसे थे, तो उस वक्त हमें अपने हिस्से में फंसे हुए आधे से कुछ कम पाकिस्तान को छोड़ना नहीं चाहिए था. भारत आज उसी गलती का खामियाजा पुलवामा और पहलगाम (बैसरन घाटी) को खून से रंगवाकर भुगत रहा है.” 22 अप्रैल 2025 को हो चुके पहलगाम नरसंहार के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुई ‘अंदरूनी-कलह’ के दौर में इस कदर खुलकर बोलने की जुर्रत, शायद ही कोई कर पा रहा है जैसी स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर-क्राइम से एक्सक्लूसिव बातचीत में भारतीय फौज के पूर्व मेजर टी आर कक्कड़ (IPS T R Kakkar) ने कही.
भारत-पाक युद्ध में जाबांजी का यादगार ‘इनाम’
भारत के पूर्व ब्यूरोक्रेट-पूर्व दबंग फौजी अफसर तिलक राज कक्कड़ (IPS Tilak Raj Kakkar) दिल्ली पुलिस कमिश्नर (Delhi Police Commissioner IPS TR Kakkar) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (DG National Security Guard NSG) के महानिदेशक भी रह चुके हैं. सन् 1967 में भारतीय फौज की सेवा से बाहर आने के बाद तिलक राज कक्कड़ 1968 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service IPS) बने. आईपीएस बनने से पहले भारत की हुकूमत चूंकि 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तिलक राज कक्कड़ की बहादुरी की कायल थी ही. इसलिए उन्हें 1968 में आईपीएस बनने के बाद भी, विशेष-योजना के तहत आईपीएस बैच की वरिष्ठता 1964 आईपीएस बैच वाली ही दी गई.
1965 की भारत सरकार ने ‘हाजीपीर’ क्यों छोड़ा?
1965 के उस एकतरफा मगर भीषण युद्ध की यादें स्टेट मिरर हिंदी से साथ बेबाकी से साझा करते हुए टीआर कक्कड़ कहते हैं, “उन दिनों में जम्मू कश्मीर घाटी में केसर की खेती के लिए आज भी मशहूर पम्पोर में तैनात था. जब मेरी बटालियन की बारी आई तो हम लोग पाकिस्तान से मोर्चा लेने के लिए पहले उरी पहुंचे. वहां से हाजीपीर के ऊपर जाकर जबरदस्त धावा बोल दिया. उसके बाद हम लोगों ने उरी-पुंछ को लिंक किया. हम (भारतीय फौज) उस दिन हाजीपीर पर चढ़े बैठे थे. उस लड़ाई के दौरान मगर भारत की तब की हुकूमत शायद कमजोर रही होगी. उसने हमें हाजीपीर कब्जाने की इजाजत ही नहीं दी.”
आज ‘हाजीपीर’ हमारे कब्जे में होता तो पुंछ...
भारत-पाकिस्तान के बीच उस भीषण युद्ध के खुद हिस्सा रह चुके रणबांकुरे पूर्व भारतीय फौजी तिलक राज कक्कड़ बताते है, “साल 1965 के भारत-पाकिस्तान के बीच हुए उस घमासान युद्ध के दौरान, अगर तब की हमारी भारत सरकार कमजोर पड़कर अपने कदम पीछे न खींचती तो, हिंदुस्तानी फौज तो हाजीपीर को कब्जाए हुए उसी की छाती पर बैठी हुई थी.
आज आधा-पाकिस्तान हमारे पास होता बशर्ते...
अगर यह कहूं कि 1965 की उस लड़ाई में भारत आधा पाकिस्तान भी कब्जा चुका होता, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मगर तब की हिंदुस्तानी हुकूमत ने वह जज्बा ही नहीं दिखाया, जिसकी भारतीय फौज को जरूरत थी. मेरी आजतक 54 साल बाद भी समझ में नहीं आया है कि, तब की हिंदुस्तानी हुकूमत ने आखिर भौगोलिक दृष्टिकोण से इतना अहम हाजीपीर आखिर पाकिस्तान को क्यों दे दिया? जबकि हम (भारतीय फौज) उस पर कब्जा कर चुके थे. अगर आज हाजीपीर हमारे पास होता तो हम आज पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने के दौरान सीधे पुंछ पहुंच जाते. आज हमें जम्मू होकर पुंछ पहुंचना पड़ता है. जोकि काफी फेर-देर वाला रास्ता है. अगर तब की लड़ाई में भारत की फौज के मुताबिक सब कुछ हुआ होता, तो आज पहलगाम और पुलवामा खून में न रंगे जाते.”