Begin typing your search...

बुलडोजर जस्टिस, ग्रीन पटाखे से लेकर प्रेसिडेंसियल रेफरेंस से लेकर... सीजेआई बीआर गवई ने लिए कौन से 7 बड़े फैसले?

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के कार्यकाल में कई ऐतिहासिक और दूरगामी फैसले देखने को मिले, जिनमें नागरिक अधिकारों और संविधान की गरिमा को सर्वोपरि रखा गया. उन्होंने अपने आखिरी कार्यदिवस पर खुद स्वीकार किया कि ‘बुलडोजर जस्टिस’ के खिलाफ दिया गया उनका निर्णय सबसे महत्वपूर्ण था, जिसमें अदालत ने साफ कहा कि कानून का शासन ताकत के प्रदर्शन पर आधारित नहीं हो सकता. इसी दौरान राज्यपालों की शक्तियों को सीमित करने वाला प्रेसिडेंसियल रेफरेंस पर फैसला, ग्रीन पटाखों को नियंत्रित मंजूरी, पर्यावरण स्वीकृति पर संतुलित दृष्टिकोण और न्यायिक सेवा में तीन साल प्रैक्टिस की अनिवार्यता बहाल करने जैसे महत्वपूर्ण आदेश भी गवई की विरासत का हिस्सा बने.

बुलडोजर जस्टिस, ग्रीन पटाखे से लेकर प्रेसिडेंसियल रेफरेंस से लेकर... सीजेआई बीआर गवई ने लिए कौन से 7 बड़े फैसले?
X
( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 23 Nov 2025 1:33 PM

भारत की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई का कार्यकाल भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन उनकी न्यायिक दृष्टि और उनके द्वारा लिखे गए ऐतिहासिक फैसले लंबे समय तक भारतीय न्याय व्यवस्था में गूंजते रहेंगे. उनका आखिरी कार्यदिवस सिर्फ एक औपचारिक विदाई नहीं था, बल्कि उनके न्यायिक सफर और विचारधारा की एक प्रखर घोषणा भी था. उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि उनके फैसलों की सूची में सबसे महत्वपूर्ण वह फैसला रहा जिसने बुलडोजर के जरिए न्याय लागू करने की कोशिशों को अदालत ने कठोरता से खारिज कर दिया.

सीजेआई गवई ने बार-बार यह संदेश दिया कि न्याय कानून के शासन पर चलता है, न कि ताकत के प्रदर्शन पर. उनका कार्यकाल यह साबित करता है कि सुप्रीम कोर्ट केवल आदेश देने वाली संस्था नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों की प्रहरी है. उनके फैसलों ने न सिर्फ सुर्खियाँ बटोरीं, बल्कि शासन और अधिकारों के बीच संतुलन तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आइए जानते हैं उनके बड़े फैसले...

1. ‘बुलडोजर जस्टिस’ को कठघरे में किया खड़ा

मुख्य न्यायाधीश ने साफ शब्दों में कहा कि आरोप साबित होने से पहले किसी घर को ढहा देना न्याय नहीं, प्रतिशोध है. उन्होंने इस विचार को न्यायिक सिद्धांत का केंद्र बनाया कि रहने का अधिकार संविधान प्रदत्त मूल अधिकार है और इसे किसी सज़ा की तरह छीनना कानून की अवहेलना है. इस फैसले ने राज्य सरकारों को कड़ा संदेश भेजा कि बुलडोजर प्रशासनिक शक्ति नहीं, बल्कि कानून के खिलाफ कदम हो सकता है.

2. प्रेसिडेंसियल रेफरेंस

गवई के कार्यकाल में एक बड़ा संवैधानिक सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक रोके रख सकते हैं? संविधान पीठ ने स्पष्ट कहा कि राज्यपाल को निर्णय लेना ही होगा चाहे स्वीकृति दें, राष्ट्रपति को भेजें या विधानसभा को लौटाएं. यह फैसला संघीय ढांचे में राजनीतिक अवरोधों पर महत्वपूर्ण रोक साबित हुआ और विधानमंडल की भूमिका को मजबूत किया.

3. पर्यावरण स्वीकृति पर व्यवहारिक न्याय

गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस पुराने आदेश को वापस लेकर एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जहां बाद में दी गई पर्यावरण मंजूरी को पूरी तरह अमान्य माना गया था. उन्होंने कहा कि यदि सभी ऐसी परियोजनाओं को ध्वस्त कर दिया जाए तो यह समाधान से अधिक विनाशकारी और प्रदूषणकारी होगा. यह फैसला विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन साधने का उत्कृष्ट उदाहरण रहा.

4. ग्रीन पटाखों पर तार्किक और संतुलित दृष्टिकोण

दिवाली के समय ग्रीन पटाखों पर फैसला गवई की उस न्यायिक सोच को दर्शाता है जिसमें न्याय केवल निषेध नहीं, बल्कि संतुलित आज़ादी का मूल्य समझता है. अदालत ने माना कि पूर्ण प्रतिबंध से अवैध और अधिक हानिकारक पटाखों की बिक्री बढ़ जाएगी, इसलिए सुरक्षित विकल्पों के साथ नियंत्रित उपयोग बेहतर नीति है.

5. न्यायिक सेवा में गुणवत्ता आधारित भर्ती पर जोर

गवई ने स्पष्ट किया कि सिविल जज जैसे संवेदनशील पदों पर सीधी भर्ती नहीं, बल्कि व्यावहारिक न्यायिक अनुभव आवश्यक है. तीन साल की अनिवार्य वकालत को बहाल कर उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि न्यायपालिका की पहली पायदान पर वही पहुंचे जो न्यायिक परिवेश को समझ चुका हो.

6. ओबीसी और विशेष वर्गों को न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण

कार्यकाल के अंतिम महीनों में उन्होंने एक और बड़ा फैसला लिया कि स्टाफ भर्तियों में ओबीसी सहित दिव्यांग, पूर्व सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित कर दिया. यह निर्णय न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को और मजबूत करता है.

7. अरावली संरक्षण: पर्यावरण को अदालत की ढाल

अपने अंतिम आदेशों में गवई ने अरावली पर्वतमाला को विधिक सुरक्षा प्रदान करते हुए नए खनन पट्टों पर रोक लगाई. यह फैसला न सिर्फ पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि कई राज्यों को यह संदेश भी देता है कि प्राकृतिक धरोहरों को आर्थिक लाभ से ऊपर रखा जाना चाहिए.

न्याय के नाम एक मजबूत विरासत

सीजेआई बी.आर. गवई का कार्यकाल यह साबित करता है कि अदालतें केवल कानून की किताबों से नहीं, बल्कि मानव संवेदनाओं से न्याय का रास्ता तय करती हैं. उन्होंने जाते-जाते यह सुनिश्चित कर दिया कि भारतीय न्याय व्यवस्था का भविष्य और भी संवेदनशील, संतुलित और नागरिक हितों की रक्षा करने वाला होगा.

सुप्रीम कोर्ट
अगला लेख