भारत में अब भी हो रहा लड़कियों का खतना... जानें CJI गवई ने क्यों जताई चिंता
Chief Justice BR Gavai: सीजेआई को कहा कि संविधान में दिए गए अधिकारों के बावजूद आज भी कई लड़कियों का खतना हो रहा है. गवई ने कहा, लड़कियों की यह असुरक्षा उन्हें यौन शोषण, तस्करी, कुपोषण, लिंग-चयन आधारित गर्भपात, जबरन बाल विवाह और FGM जैसी खतरनाक प्रथाओं के उच्च जोखिम में डालती है.

Chief Justice BR Gavai: भारत के सीजेआई बीआर गवई ने हाल ही में इस्लाम में खतने प्रथा पर चिंता जताई है. शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि संविधान में दिए गए अधिकारों के बावजूद देश में आज भी बेटियों का महिला जननांग विकृति (FGM) यानी खतना हो रहा है.
सीजेआई को कहा कि संविधान में दिए गए अधिकारों के बावजूद आज भी कई लड़कियों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जाता है और जीवन के लिए ज़रूरी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलतीं. उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक याचिका भी कोर्ट में पेंडिंग है.
FGM पर क्या बोले CJI?
सीजेआई गवई ने कहा, अदालत FGM पेंडिंग याचिका पर सबरीमाला, पारसी समुदाय के अगियारी और अन्य धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रति कथित भेदभावपूर्ण प्रथाओं की सुनवाई भी कर रही है. बता दें कि जस्टिस गवई 'महिलाओं की सुरक्षा- एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परामर्श कार्यक्रम में शामिल हुए थे.
CJI गवई ने कहा, लड़कियों की यह असुरक्षा उन्हें यौन शोषण, तस्करी, कुपोषण, लिंग-चयन आधारित गर्भपात, जबरन बाल विवाह और FGM जैसी खतरनाक प्रथाओं के उच्च जोखिम में डालती है. उन्होंने कहा कि तकनीक ने जहां सशक्तिकरण किया है, वहीं इसने नई चुनौतियां भी पैदा की हैं.
लड़कियों के लिए खतरे
उन्होंने बताया कि आज लड़कियों के सामने आने वाले खतरे केवल वास्तविक दुनिया तक सीमित नहीं हैं, बल्कि डिजिटल दुनिया में भी फैल गए हैं. ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर बुलिंग, डिजिटल स्टॉकिंग, निजी डेटा का दुरुपयोग और डीपफेक जैसे मामलों ने इन खतरों को और मुश्किल बना दिया है. उन्होंने संस्थानों, नीति निर्माताओं और प्रवर्तन एजेंसियों से अपील की कि वे इन नई वास्तविकताओं को समझें और तकनीक का उपयोग शोषण नहीं बल्कि स्वतंत्रता का साधन बनाने में करें.
उन्होंने कहा, आज बालिका की सुरक्षा का अर्थ है उसके भविष्य को कक्षा, कार्यस्थल और हर उस स्क्रीन पर सुरक्षित करना जिससे वह जुड़ती है. वहीं न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, भारत की एक युवा लड़की तभी वास्तव में समान नागरिक कहलाएगी, जब वह अपने पुरुष साथियों की तरह बिना किसी बाधा के सपने देख सके, उन्हें पूरा करने के लिए समान अवसर और समर्थन मिले, और उसे लिंग-आधारित कोई अवरोध न झेलना पड़े.