चंडीगढ़ पर दिल्ली का कंट्रोल प्लान! सरकार की चाल पर पंजाब-हरियाणा में खलबली, गृह मंत्रालय ने कहा- अफवाहों से बचें
चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने की चर्चाओं ने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में सियासी बवंडर खड़ा कर दिया है. विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार संविधान संशोधन की आड़ में चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने की तैयारी कर रही है, जिससे राज्य के दशकों पुराने अधिकार प्रभावित होंगे. आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल ने इसे पंजाब की अस्मिता पर हमला बताया है. विवाद बढ़ता देखकर गृह मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव अभी सिर्फ विचाराधीन है और इसमें न तो चंडीगढ़ की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था बदलने की बात है, न ही पंजाब-हरियाणा के पारंपरिक संबंधों से छेड़छाड़ की कोई योजना.
चंडीगढ़ को लेकर पिछले कुछ दिनों में अचानक सियासी माहौल तप गया. एक संवैधानिक संशोधन की चर्चा ने पंजाब और हरियाणा की राजनीति को झकझोर दिया है. आरोपों की बौछार यह कहकर शुरू हुई कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 240 के तहत चंडीगढ़ को उन केंद्र शासित प्रदेशों की श्रेणी में लाना चाहती है, जहां राष्ट्रपति सीधे प्रशासनिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सके. यह खबर फैलते ही विपक्ष ने इसे “पंजाब से चंडीगढ़ छीनने की साजिश” बताया.
राजनीतिक दबाव बढ़ा, सवालों की झड़ी लगी और माहौल इतना गरमाया कि केंद्र को सफाई देने के लिए आगे आना पड़ा. गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कहा कि अभी सिर्फ प्रस्ताव पर विचार चल रहा है, और उससे भी जरूरी बात. चंडीगढ़ की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था या पंजाब-हरियाणा के पारंपरिक रिश्तों में बदलाव की कोई योजना नहीं है.
कैसे शुरू हुआ मामला?
खबरें आईं कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक लाया जाएगा. इस अटकल ने राजनीतिक भूचाल ला दिया क्योंकि कहा गया कि चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 में शामिल करने से उसका दर्जा बदल सकता है और पंजाब की राजधानी होने का दावा कमजोर पड़ सकता है. इस एक संभावना ने ही विपक्ष को सड़कों पर ला दिया.
चंडीगढ़ पंजाब का था, है और रहेगा
अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने केंद्र पर सीधा आरोप लगाया कि यह कदम पंजाब की आत्मा पर चोट है. AAP ने इसे “फेडरल स्ट्रक्चर पर हमला” कहा, जबकि कांग्रेस ने दावा किया कि केंद्र शक्ति संतुलन को जबरदस्ती बदले बिना रुकने वाला नहीं है. चंडीगढ़ का सवाल भावनाओं और पहचान से जुड़ने लगा और राजनीतिक गरमाहट तेज हो गई.
आर्टिकल 240 से क्यों बढ़ा डर?
अनुच्छेद 240 राष्ट्रपति को अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप जैसे यूटी के लिए कानून बनाने का विशेष अधिकार देता है. विपक्ष का तर्क है कि यदि चंडीगढ़ इस सूची में आ गया, तो स्थानीय लोकतांत्रिक संरचना कमजोर पड़ सकती है. यह वही बिंदु है जिसे विपक्ष “पंजाबी अस्मिता के खिलाफ कदम” कह रहा है.
चिंता की जरूरत नहीं: गृह मंत्रालय
विवाद बढ़ा तो गृह मंत्रालय ने प्रेस स्टेटमेंट जारी कर कहा कि, यह सिर्फ कानून निर्माण प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रस्ताव है. चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं होगा, न पंजाब के दावे पर असर पड़ेगा और न हरियाणा के संबंधों पर. साथ ही कहा गया कि शीतकालीन सत्र में ऐसा कोई बिल लाने की मंशा ही नहीं है. यानी फिलहाल सरकार विवाद से दूरी बनाना चाहती है.
केजरीवाल का वार
दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने बयान जारी कर इसे गंभीर खतरा बताया. उन्होंने कहा, “जिस पंजाब ने देश के लिए अपने खून-पसीने की कुर्बानी दी, उसी के अधिकार छीने जा रहे हैं. पंजाब कभी नहीं झुकेगा.” केजरीवाल ने इसे सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि भावनात्मक-ऐतिहासिक लड़ाई करार दिया.
बैकफुट पर केंद्र?
लगातार आरोपों और सड़क के विरोध को देखते हुए केंद्र ने फिलहाल विवाद को विराम देने की कोशिश की है. स्पष्ट किया गया है कि सभी हितधारकों यानी पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के प्रतिनिधियों की सहमति से ही आगे निर्णय होगा.
तूफान टला नहीं, बस थमा है
फिलहाल विवाद शांत दिख रहा है, लेकिन चंडीगढ़ की संवैधानिक स्थिति से जुड़ी भावनाएं गहरी हैं. सरकार ने अभी कदम पीछे खींचे हैं, मगर विपक्ष मानने को तैयार नहीं, उन्हें शक है कि यह शुरुआत है, अंत नहीं. सबकी निगाहें अब संसद के शीतकालीन सत्र और केंद्र की अगली चाल पर टिकी हुई हैं.





