शादीशुदा और मैच्योर महिला का ‘शादी का वादा कर S*X’ वाला दावा नहीं चलेगा… हाईकोर्ट ने खींची नई लकीर
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी का झांसा देकर बलात्कार के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि विवाहित और परिपक्व महिला शादी के वादे के आधार पर भ्रमित नहीं हो सकती. FIR को सबूतों के अभाव में रद्द कर दिया गया. जानिए पूरा मामला और कोर्ट की विस्तृत टिप्पणी.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जो आज की जटिल रिश्तों वाली दुनिया में कानून की सीमाओं और सहमति की व्याख्या को नई दिशा देता है. अदालत ने साफ कहा कि किसी विवाहित महिला का किसी अन्य पुरुष के साथ शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाना "धोखे" की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि विवाहित होने के बावजूद ऐसा कदम उठाना खुद एक परिपक्व निर्णय है.
यह फैसला न सिर्फ "शादी का झांसा" जैसे मामलों की परिभाषा को और स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि सहमति किस स्थिति में वैध मानी जाएगी. कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा महिला अगर किसी अन्य पुरुष से शादी का दावा सुनकर संबंध बनाती है, तो इसे IPC की धारा 90 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह अपने वैवाहिक दर्जे और कानूनी स्थिति को भली-भांति समझती है.
कोर्ट ने FIR की विश्वसनीयता पर उठाए सवाल
हाईकोर्ट ने इस मामले में दर्ज FIR को रद्द कर दिया. अदालत ने पाया कि महिला शुरुआत से विवाहित थी, फिर भी वह लगभग एक वर्ष तक अभियुक्त के साथ संबंधों में रही. ऐसे में यह मानना तर्कसंगत नहीं कि उसने ‘शादी’ के नाम पर गुमराह होकर शारीरिक संबंध बनाए. कोर्ट ने कहा- यह गलतफहमी नहीं बल्कि स्वेच्छा का निर्णय था.
परिपक्व और विवाहित महिला भ्रमित नहीं हो सकती: जस्टिस नागपाल
जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि एक पढ़ी-लिखी, विवाहित और कानूनी रूप से जागरूक महिला को शादी के बहाने यौन संबंध के लिए राज़ी कर लेना संभव नहीं. अदालत के अनुसार ऐसे मामलों में “धोखे में सहमति” वाली धारा लागू नहीं होती, क्योंकि महिला अपने वैवाहिक दायित्वों और परिणामों को अच्छी तरह जानती है.
बहन की सगाई बनी विवाद का असली कारण?
अदालत ने रिकॉर्ड के आधार पर यह भी उल्लेख किया कि महिला तब तक शारीरिक संबंधों में थी, जब तक उसकी बहन की अभियुक्त से सगाई नहीं हुई. इसके बाद उसके भावनात्मक असंतुलन ने FIR दर्ज कराने की दिशा में भूमिका निभाई. फैसले में कहा गया कि यह घटना ‘झूठे वादे’ का मामला कम और ‘व्यक्तिगत असंतोष’ का मामला अधिक प्रतीत होता है.
कानूनी समझ पर सवाल नहीं
कोर्ट ने यह भी माना कि महिला स्वयं वकील है और अपने पति के साथ विवाह की कानूनी वैधता को जानती थी. अभियुक्त भी पेशे से वकील है. ऐसे में अदालत के अनुसार यह मान लेना असंभव है कि अभियुक्त ने किसी शादी के झांसे से महिला को प्रभावित किया. दोनों की पेशेवर पृष्ठभूमि इस तर्क को कमजोर करती है कि महिला कानून की गलतफहमी में थी.
धमकी के आरोप भी नहीं टिके
IPC 506 (धमकी) के आरोप पर भी हाईकोर्ट ने कहा कि FIR में कथित धमकी का न तो विवरण है, न शब्द, न कोई प्रामाणिक जानकारी. तारीख, समय और स्थान के अभाव ने इन आरोपों को और कमज़ोर किया. अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे आरोपों पर आपराधिक मुकदमा चलाना न्यायसंगत नहीं है.
मजबूरी नहीं, सहमति थी
सभी तथ्यों की समीक्षा के बाद कोर्ट ने माना कि इस रिश्ते में महिला की ओर से सहमति स्पष्ट थी और यह सहमति भ्रम, दबाव या धोखे से प्रभावित नहीं थी. इसलिए FIR रद्द कर दी गई और मामले को “दुरुपयोग” की श्रेणी में माना गया.





