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पति ने पत्नी के खिलाफ दर्ज कराया POCSO FIR, सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की SLP पर पर जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर नोटिस जारी किया है, जिसमें उसने मांग की है कि उसके खिलाफ उसके पति द्वारा POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट में दर्ज की गई FIR रद्द की जाए. उसका कहना है कि एफआईआर झूठी है और पारिवारिक विवाद के वक्त दर्ज की गई है.

पति ने पत्नी के खिलाफ दर्ज कराया POCSO FIR, सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की SLP पर पर जारी किया नोटिस
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( Image Source:  ANI )

सुप्रीम कोर्ट ने एक संवेदनशील मामले में अहम आदेश जारी किया है. यह मामला पति की ओर से अपनी पत्नी और उसके एक परिचित पुरुष पर POCSO एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराने से जुड़ा है. पति का आरोप है कि पत्नी ने नाबालिग बेटे को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया. वहीं, पत्नी ने इस FIR को झूठा बताते हुए विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) दायर की है.

अब पत्नी की एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी कर पारिवारिक विवाद और क्रिमिनल आरोपों के बीच संतुलन खोजने का संकेत दिया है.

FIR में क्या है?

पति ने अपनी पत्नी और एक पुरुष मित्र के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई है, आरोप है कि दोनों ने उनके 5-साल के बेटे के साथ यौन उत्पीड़न किया. दूसरी ओर पत्नी का दावा है कि यह एफआईआर अलगाव और कस्टडी विवाद के दौरान दर्ज की गई और वह इसे रची गई बता रही है.

हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी पत्नी की SLP

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्नी की quashing याचिका खारिज कर दी दी थी. हाई कोर्ट ने सुझाव दिया था कि उसे पहले ट्रायल कोर्ट में ‘डिस्चार्ज’ (मुकदमे से छूट) का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यह एक संवैधानिक उपाय है.

हाई कोर्ट का तर्क था कि quashing (एफआईआर रद्द करने) की शक्ति का इस्तेमाल सीमित होना चाहिए. खासकर जब अन्य कानूनी विकल्प उपलब्ध हों. इसके बाद पत्नी ने हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ अपील की. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सरकार और अभियोजन पक्ष को जवाब देने का नोटिस जारी किया है. उसे इस मामले को सुनने के लिए मिड-दिसंबर में सूचीबद्ध किया गया है.

पत्नी का पक्ष

पत्नी का कहना है कि FIR झूठी और रची हुई है. पत्नी की दलील देती है कि मामला हल करने के लिए घरेलू विवाद और 'मानसिक क्रूरता' के स्वरूप में देखना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि पारिवारिक स्थिति भी है. उसके वकील ने इस बात पर जोर दिया है कि आरोपों के बावजूद ट्रायल अभी शुरू नहीं हुआ है और वह न्याय की प्रक्रिया के माध्यम से अपनी सफाई चाहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला केवल क्रिमिनल या पारिवारिक मामला न मानते हुए कहा है कि इसे पूरे न्याय की खोज (complete justice) के नजरिए से देखना चाहिए. अदालत यह देखना चाहेगी कि क्या FIR दुरुपयोग का मामला है. खासकर नाबालिग और अभिभावक प्रतिद्वंद्विता (custody) विवादों में.

इस याचिका के माध्यम से कोर्ट और भी व्यापक सोशल-लीगल मुद्दों की व्याख्या कर सकती है. जैसे कि परिवारों में आपराधिक कानून का कैसे इस्तेमाल होता है और न्यायिक नियंत्रण की संभावना क्या है?

संभावित नतीजे और प्रभाव

यदि सुप्रीम कोर्ट quashing को मंजूरी दे देती है, तो यह मामले में पति की शिकायत को रद्द करने जैसा होगा और ट्रायल की संभावना कम हो जाएगी. इससे कानूनी मिसयूज (दुरूपयोग) के दावे मजबूत हो सकते हैं, विशेषकर उन मामलों में जहां POCSO का उपयोग पारिवारिक विवाद समाधान के हथियार के रूप में हो रहा हो.

दूसरी ओर, अगर कोर्ट केस आगे बढ़ाने का आदेश देती है, तो यह नाबालिग की सुरक्षा तथा अपराध की गंभीरता की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम होगा.

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