'मुर्दे' की शिकायत पर पुलिस ने कर लिया शख्स को गिरफ्तार, हाईकोर्ट ने राज्य से मांगा जवाब
कुरुक्षेत्र से सामने आए एक हैरान करने वाले मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. आरोप है कि पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति की शिकायत के आधार पर गिरफ्तारी की, जिसकी मौत कई महीने पहले हो चुकी थी.
कुरुक्षेत्र से सामने आए एक हैरान करने वाले मामले ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. आरोप है कि पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति की शिकायत के आधार पर गिरफ्तारी की, जिसकी मौत कई महीने पहले हो चुकी थी. 19 जून के दिन पुलिस बिना किसी चेतावनी या वारंट के शख्स के घर पहुंची और उन्हें सोते से उठा ले गई.
पुलिस का कहना था कि उनके खिलाफ मादक पदार्थों की तस्करी की शिकायत मिली है. सोचने वाली बात यह है कि क्या कोई मृत व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है? यही सवाल अब पूरे मामले को संदिग्ध बना रहा है और पुलिस की कार्रवाई कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है.
पुलिस की कार्रवाई से उठे सवाल
पाला राम का कहना है कि पुलिस ने उन्हें न तो गिरफ्तारी की वजह बताई और न ही कोई कागज़ दिखाया. उनके अनुसार, यह पूरा कदम एक सोची-समझी साजिश जैसा था. उन्होंने अदालत में तीन आदेशों को चुनौती दी है. पहला, 28 मई का प्रारंभिक हिरासत आदेश. दूसरा, 28 जुलाई को उनकी जमानत याचिका खारिज किया जाना और तीसरा, 8 सितंबर को 6 महीने की निवारक हिरासत की पुष्टि. याचिका में यह भी कहा गया है कि पाला राम ने कभी जमानत का गलत इस्तेमाल नहीं किया और न ही किसी नई आपराधिक गतिविधि में शामिल हुए. इसलिए उनकी हिरासत को पूरी तरह अनुचित बताया गया है.
मृत व्यक्ति की शिकायत पर गिरफ्तारी
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पूरी कार्रवाई राम सिंह नाम के शख्स की शिकायत पर आधारित है. लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि राम सिंह की 8 नवम्बर 2024 को मौत हो चुकी थी. उनका अंतिम संस्कार कुरुक्षेत्र की मानव सेवा समिति में हुआ था. अब सवाल यह है कि एक मृत व्यक्ति शिकायत कैसे दर्ज करा सकता है? क्या यह सम्भव है कि पुलिस ने एक झूठा दस्तावेज तैयार किया? या किसी ने राम सिंह के नाम से फर्जी शिकायत दर्ज करा दी? अदालत भी इस विरोधाभास से हैरान दिखाई दी.
अदालत में राज्य से जवाब तलब
जस्टिस सुवीर सहगल की एकल पीठ ने हरियाणा सरकार से जवाब मांगा है. अदालत ने पूछा कि यदि शिकायतकर्ता मर चुका था, तो शिकायत का सोर्स क्या था? साथ ही यह भी कि एन.डी.पी.एस. एक्ट के तहत ‘हिरासत आदेश’ जारी करने में कानूनी समय-सीमा का पालन हुआ या नहीं. यह मामला अब 18 नवम्बर को फिर सुना जाएगा.
न्याय या अन्याय?
पाला राम पहले भी एन.डी.पी.एस. मामलों का सामना कर चुके हैं. कुछ में वे दोषमुक्त ठहरे, कुछ में सजा काट चुके हैं. लेकिन अब उनकी यह नई लड़ाई केवल अपनी आज़ादी की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था के खिलाफ है जो एक मृत व्यक्ति की शिकायत को सच मानकर जीवित इंसान को जेल भेज देती है.तो सोचिए अगर मरा हुआ इंसान शिकायत कर सकता है, तो जिंदा इंसान को कौन बचाएगा?





