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बहस पूरी होने के बाद बेंच मत बदलो, यह कोर्ट है… मंत्रिमंडल नहीं, CJI का सख्त संदेश; ट्रिब्यूनल एक्ट पर टकराव तेज

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस मांग पर कड़ा एतराज़ जताया, जिसमें ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की बात सुनवाई के बीच अचानक रखी गई. मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने इसे “तकनीकी चाल” बताते हुए कहा कि सरकार बहस पूरी होने के बाद बेंच बदलने का प्रयास कर रही है. मामला अब सिर्फ एक एक्ट तक सीमित नहीं, बल्कि न्यायपालिका-कार्यपालिका टकराव, संविधान की व्याख्या और अधिकार सीमा का भी बड़ा सवाल बन गया है.

बहस पूरी होने के बाद बेंच मत बदलो, यह कोर्ट है… मंत्रिमंडल नहीं, CJI का सख्त संदेश; ट्रिब्यूनल एक्ट पर टकराव तेज
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( Image Source:  sci.gov.in )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 4 Nov 2025 12:26 PM

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही सोमवार को उस समय अप्रत्याशित मोड़ ले बैठी, जब केंद्र सरकार ने सुनवाई के बीच अचानक यह मांग रख दी कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए. यह वही कानून है, जिसने देशभर के ट्रिब्यूनल्स के चेयरपर्सन और सदस्यों की नियुक्ति व सर्विस कंडीशन को एक जैसा कर दिया है और जिसकी वैधता पर ही अब सवाल उठे हैं.

लेकिन जो बात कोर्ट को चौंका गई, वह थी टाइमिंग और रणनीति. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (काल्पनिक नाम नहीं, असली नाम बी. आर. गवई रहेगा- बस लेखन में नाटकीयता बढ़ेगी) के नेतृत्व वाली बेंच पहले ही याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुन चुकी थी और तभी सरकार ने रात के समय एप्लिकेशन दायर कर दी. कोर्ट ने इसे "तकनीकी खेल" और "देरी कराने की कोशिश" तक कहा.

ऐसी चाल की उम्मीद नहीं थी

मुख्य न्यायाधीश ने खुलकर नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार से इस तरह की रणनीति की उम्मीद नहीं थी. उन्होंने टिप्पणी की, "जब पूरा पक्ष सुन लिया जा चुका है, तब अचानक पांच जजों की बेंच की मांग करना न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का तरीका दिखता है." जस्टिस गवई ने साफ कहा कि अगर अदालत को लगेगा कि संविधान पीठ की जरूरत है तो वह खुद ऐसा आदेश देगी, सरकार के कहने पर नहीं.

कानून से जुड़े बड़े सवाल, इसलिए संविधान पीठ ज़रूरी

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने हाथ जोड़कर कहा कि सरकार की मंशा अदालत को बाधित करने की नहीं, बल्कि “संवैधानिक महत्व” के कारण मामला बड़ी पीठ को भेजने की है. सरकार ने लिखित आवेदन में दलील दी कि इसमें संविधान की व्याख्या से जुड़े “महत्वपूर्ण प्रश्न” हैं, इसलिए आर्टिकल 145(3) लागू होता है.

आधी रात की फाइलिंग पर कोर्ट की टिप्पणी

सरकार ने यह याचिका आधी रात को दाखिल की, जिससे कोर्ट और अधिक सख्त हो गया. CJI ने कहा, “मध्यरात्रि में फाइलिंग करके, और वह भी सुनवाई के ठीक पहले, यह दर्शाता है कि सरकार इस बेंच से बचने की कोशिश कर रही है.” कोर्ट का इशारा साफ था: CJI गवई 20 दिन बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और केंद्र शायद फैसला टालना चाहता है.

हम खुद तय करेंगे: कोर्ट

बेंच ने कहा कि यदि बहस से उन्हें लगेगा कि यह मामला संविधान पीठ को भेजना चाहिए, तो वे खुद आदेश देंगे. यानी न्यायिक अधिकार क्षेत्र में सरकार की दखलंदाजी स्वीकार नहीं होगी.

ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट पर असली विवाद क्या है?

यह कानून 2021 में लाया गया था, और इसमें सभी ट्रिब्यूनलों के सदस्यों की उम्र, कार्यकाल, नियुक्ति और सैलरी को केंद्र द्वारा नियंत्रित करने का प्रावधान है. याचिकाकर्ताओं का कहना है...

  • यह अदालतों की स्वतंत्रता पर प्रहार करता है
  • कार्यपालिका को अत्यधिक नियंत्रण मिलता है
  • पहले के सुप्रीम कोर्ट फैसलों का उल्लंघन है

सरकार ने उठाया बड़ा संवैधानिक सवाल

केंद्र ने एक और बड़ी बात रखी कि क्या सुप्रीम कोर्ट सरकार या संसद को यह आदेश दे सकता है कि “कानून ऐसे बनाओ, और किसी और तरह नहीं बनाओ”? यानी यह पूरा विवाद विधायिका बनाम न्यायपालिका की सीमा पर भी खड़ा है.

7 नवंबर को अगली सुनवाई

बहस के बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 7 नवंबर तय की है. अब नजर इस बात पर होगी कि...

  • क्या बेंच खुद केस को संविधान पीठ को भेजती है?
  • या सीधे इस एक्ट पर फैसला दे देती है?
  • और क्या यह मामला एक्ट की वैधता के साथ-साथ “न्यायपालिका-कार्यपालिका के पावर बैलेंस” को भी निर्णायक रूप से प्रभावित करेगा?
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