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50 रुपये की रिश्‍वत के आरोप में 37 साल बाद मिला इंसाफ, मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने TTE को झूठे आरोप से किया बरी

37 साल पुराने 50 रुपये की रिश्वत केस में सुप्रीम कोर्ट ने मृत रेलवे टीटीई को बरी कर दिया. 1988 में नागपुर के इस टीटीई पर यात्रियों से रिश्वत मांगने का आरोप लगा था और 1996 में उसे बर्खास्त किया गया था. परिवार ने कानूनी लड़ाई जारी रखी और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने कहा - आरोप साबित नहीं हुए थे. अदालत ने रेलवे को तीन महीने में सभी पेंशन व लाभ देने का आदेश दिया.

50 रुपये की रिश्‍वत के आरोप में 37 साल बाद मिला इंसाफ, मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने TTE को झूठे आरोप से किया बरी
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( Image Source:  sci.gov.in )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 30 Oct 2025 10:38 AM IST

कहते हैं, न्याय में देरी कभी-कभी इंसाफ़ से भी बड़ी सज़ा बन जाती है और यह कहानी उसी कड़वे सच की मिसाल है. लगभग 37 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एक रेलवे टिकट चेकर (TTE) को 50 रुपये की रिश्वत के आरोप से पूरी तरह बरी कर दिया. अफसोस की बात यह है कि जब यह फैसला आया, तब वह कर्मचारी अब इस दुनिया में नहीं था - लेकिन उसकी इज़्ज़त, जिसे एक झूठे आरोप ने दागदार किया था, आखिरकार आज़ाद हो गई.

यह मामला 31 मई 1988 का है, जब सेंट्रल रेलवे, नागपुर में कार्यरत एक टीटीई पर आरोप लगा कि उसने तीन यात्रियों से सीट देने के बदले 50 रुपये की रिश्वत मांगी. रेलवे की सतर्कता टीम ने अचानक जांच की, और उसके पास से ₹1,254 अतिरिक्त नकद मिलने का दावा किया गया. साथ ही उस पर ड्यूटी कार्ड पास की तारीख़ को ग़लत तरीके से बढ़ाने का भी आरोप था.

1996 में नौकरी से निकाला गया

1989 में उसे रेलवे सर्विस (कंडक्ट) रूल्स के तहत चार्जशीट दी गई और 1996 में विभागीय जांच के बाद उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. उसने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) में अपील की - जहां 2002 में ट्रिब्यूनल ने उसके पक्ष में फैसला देते हुए बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और रेलवे को उसकी बहाली व पेंशन लाभ देने का आदेश दिया.

सुनवाई के दौरान आरोपी की हुई मौत

रेलवे ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी. मुकदमे की इस लंबी लड़ाई के दौरान वह टीटीई गुजर गया, लेकिन उसकी कानूनी लड़ाई उसकी पत्नी और बच्चों ने जारी रखी. 2017 में, हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को पलटते हुए रेलवे के पक्ष में निर्णय दिया. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ - जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा - ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि आरोप साबित नहीं हुए थे और जांच रिपोर्ट भ्रामक थी.

अब घरवालों को मिलेंगी पेंशन और बाकी सुविधाएं

अदालत ने कहा, “सीएटी ने दंड आदेश को सही ढंग से निरस्त किया था. कोई ठोस साक्ष्य नहीं था जो यह साबित करे कि कर्मचारी ने रिश्वत मांगी थी.”

कोर्ट ने यह भी बताया कि जिन तीन यात्रियों से रिश्वत मांगने का दावा किया गया था, उनमें से एक की गवाही हुई ही नहीं, और बाकी दो यात्रियों ने आरोपों का समर्थन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उस टीटीई का नाम साफ़ किया बल्कि निर्देश दिया कि उसकी सभी पेंशन और मौद्रिक सुविधाएं तीन महीने के भीतर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को दी जाएं.

यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन हजारों कर्मचारियों की आवाज़ है जो सिस्टम की धीमी न्याय प्रक्रिया में अपनी ज़िंदगी गंवा देते हैं. उस टीटीई का नाम शायद अब भी अनजान रहेगा, लेकिन उसकी बेगुनाही का फैसला अब इतिहास में दर्ज हो गया है - 37 साल बाद, देर से ही सही, इंसाफ़ आखिर मिल ही गया.

सुप्रीम कोर्ट
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