EXCLUSIVE: भारत के न्यायालयों में ‘न्याय’ के सिवाय सब मिलता, कोर्ट ‘मंदिर’ और जज ‘देवता’ नहीं हैं, 'जूता-कांड' पर बेबाक जस्टिस ढींगरा
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने सुप्रीम कोर्ट के ‘जूता कांड’ पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि भारत के न्यायालय अब न्याय देने की जगह “औपचारिक मंदिर” बन गए हैं, जहां जज खुद को भगवान समझने लगे हैं. उन्होंने कहा कि जजों की निजी टिप्पणियां और न्याय प्रणाली की बदहाली आम जनता के विश्वास को खत्म कर रही हैं. ढींगरा ने चेतावनी दी कि अगर हालात नहीं सुधरे तो न्यायपालिका का पतन तय है.

“भारत में देर-सवेर भी न्याय पाने की उम्मीद आम-आदमी ने कई साल पहले ही छोड़ दी थी. अब आज के मौजूदा हालातों में यह हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं. जो लोग भारत के न्यायालयों को मंदिर और जज-न्यायामूर्तियों-न्यायाधीशों को न्याय का भगवान या देवता कहते हैं, मैं उनसे भी सहमत नहीं हूं. जो दुर्गति-दुर्दशा आज भारतीय न्यायायिक प्रणाली हो चुकी है उसमें, न्याय की उम्मीद करना सरासर खुद को धोखा देने जैसा है.
जहां तक अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के कक्ष में वकील राकेश किशोर द्वारा जो जूता कांड अंजाम दिया गया, मैं उसकी भी तरफदारी नहीं करुंगा. क्योंकि यह भी गलत है. हां, इस जूता कांड ने हमारी न्याय-व्यवस्था के नंबरदारों के सामने यह सवाल जरूर खड़ा कर दिया है, कि आखिर किसी वकील को देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता उछालने का मौका दिया किसने और क्यों? इन हालातों पर अगर विचार करके न्यायपालिका ने अब भी खुद को नहीं संभाला-सुधारा, तो फिर तो आगे इससे भी बुरा और कुछ देखने को कब और क्या मिल जाए, इसका तो मुझे भी नहीं पता है.”
यह तमाम दो टूक खरी खरी बेबाक बातें दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एस एन ढींगरा (Justice SN Dhingra Delhi High Court) ने कहीं. जस्टिस शिव नरायण ढींगरा (Justice Shiv Narayan Dhingra) 7 अक्टूबर 2025 को स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से देश के सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई के सामने हुए “सुप्रीम जूता कांड” पर एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे.
''जाओ और भगवान से खुद करने को कहो''
यहां जिक्र करना जरूरी है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने 16 सितंबर 2025 को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐसी मौखिक या कहिए कि निजी टिप्पणी कर दी थी, जिससे सनातन के अनुयायियों में खासा रोष व्याप्त हो गया था. यह याचिका मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ी हुई थी. याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा था कि, “जाओ और भगवान से खुद करने को कहो. तुम कहते हो कि भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो तो उन्हीं से जाकर प्रार्थना करो.” मुख्य न्यायाधीश की उसी वाहियात-बेतुकी मौखिक व निजी टिप्पणी से सुलगी आग का धुंआ और उसकी कालिख कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. नतीजा दुनिया के सामने है. मुख्य न्यायाधीश की उस टिप्पणी ने सनातन के अनुयायियों को इस कदर आक्रोषित कर डाला कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) के ही बेकाबू बुजुर्ग वकील राकेश किशोर ने भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (CJP B R Gavai) के सामने ‘जूता’ उछालकर दुनिया भर में कोहराम मचा दिया.
जूता फेंकने वाले वकील के समर्थन में आए लोग
भले ही इस शर्मनाक घटना के बाद मुख्य न्यायाधीश के धैर्य-सब्र का लोहा मानते हुए उनकी पीठ ठोंकने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी क्यों न बी आर गवई की पीठ ठोंकी हो. इसके बाद भी मगर इस मुद्दे पर जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गईं. कई धड़ों में बंटे लोगों ने कुछ को सनातन का अपमान न बर्दाश्त कर पाने पर आरोपी वकील राकेश किशोर के साथ खुलकर खड़े होने का ऐलान कर दिया. तो वहीं सर-ए-बाजार नीलाम होती सुप्रीम कोर्ट और उसके मुख्य न्यायाधीश की गरिमा को बचाए रखने की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने आरोपी वकील का लाइसेंस रद्द कर दिया.
जस्टिस ढींगरा का सवाल - ऐसी नौबत ही क्यों आई?
जबकि इस घटना की क्षतिपूर्ति यानी डैमेज कंट्रोल के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी आरोपी जूता-मार वकील राकेश किशोर की वकालत का लाइसेंस रद्द कर दिया है. उन्हें 15 दिन के भीतर ही शो-कॉज नोटिस जारी किए जाने की बात चल रही है. इस बवाल के बीच स्टेट मिरर हिंदी ने विशेष और लंबी बात करना मुनासिब समझा दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस एन ढींगरा से. वही जस्टिस शिव नारायण ढींगरा जिनका दिल्ली न्यायायिक सेवा का पूरा कार्यकाल बेदाग रहा है. देश की न्यायायिक प्रणाली, उसमें मौजूद खामियों पर हमेशा बेहद संतुलित मगर खुलकर बेबाक बोलने के लिए पहचाने जाने वाले जस्टिस ढींगरा, सुप्रीम जूता कांड के आरोपी वकील राकेश किशोर की तरफदारी तो नहीं कर रहे हैं, मगर उनका सवाल यह जरूर है कि आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों जिसके चलते किसी वकील की इतनी ज्यादा हिम्मत हो गई कि उसे, सुप्रीम कोर्ट के भीतर ही भारत के मुख्य न्यायाधीश के ऊपर जूता उछालने में कोई शर्मिंदगी ही महसूस नहीं हुई. या कानून के जानकार वकील राकेश किशोर भूल गए कि वे किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं?
डरावना है देश की बदतर न्याय प्रणाली का कड़वा सच
विशेष-बातचीत के दौरान जस्टिस एस एन ढींगरा कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ हुआ मैं उस पर चर्चा ही नहीं करना चाहता हूं. हां, इतना जरूर है कि मैंने जितने करीब से और जो कुछ कड़वा सच दिल्ली व देश की बदतर न्याय प्रणाली का देखा है वह डरावना है. आज नहीं बीते कई दशक से भारत में न्याय, न्यायालय और न्यायमूर्ति आम आदमी से दूर हो चुके हैं. न्याय पाने की आम आदमी तो उम्मीद ही छोड़े बैठा है. तीस्ता सीतलबाड़ हों या फिर कोई और पैसे वाला धन्नासेठ. उसे जमानत देने के लिए और उसकी अर्जियों पर तत्काल सुनवाई करने के लिए आधी रात को भी अदालतें बैठा या सजा ली जाती हैं. जबकि गरीब आदमी वकीलों की मोटी भारी भरकम फीस, और फिर कई कई दशक तक अदालतों में न्याय की आस में भटकते हुए कई कई पीड़ित पीढ़ियों का मर-खप कर खतम हो जाना. यह सब आज की भारत की न्याय प्रणाली का कुरुप होता डरावना चेहरा नहीं तो फिर क्या है?”
खुद को भगवान से कम नहीं समझते जज
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जबाव में जस्टिस एस एन ढींगरा बोले, “पता नहीं कौन-कैसे हैं वे लोग जो भारत की अदालतों को न्याय का मंदिर और न्यायाधीशों को न्याय का देवता कहते हैं. मेरी नजर में तो जो बदतर हालत देश के न्यायाधीशों, न्यायालयों और न्याय-प्रणाली सामने मौजूद है, जिसे जमाना खुली आंखों से देख रहा और न्याय पाने की आस में आम आदमी जिस तरह से आज कोर्ट-कचहरियों की देहरियों पर मारा-मारा फिर रहा है, बदहाली के इस आलम में कैसे किसी जज को न्याय का देवता और अदालतों को मैं न्याय का मंदिर कहूं या मानूं. और वैसे भी धरातल पर देखता हूं तो भी न तो न्यायालय मंदिर हैं न ही न्यायाधीश देवता. यह भी इंसानों की दुनिया में इस धरती पर हमारी आपकी ही तरह आम इंसान हैं. हां, यह अलग बात है कि आज “स्वत: शांति सुखाय” की राह पर दौड़ रहे भारत के न्यायालय और उनमें मौजूद अधिकांश न्यायाधीश खुद को कुर्सी पर बैठकर भगवान से कम नहीं समझते हैं. मगर मैं इससे बिलकुल सहमत नहीं हूं.”
'किसी न्यायाधीश को निजी टिप्पणी करने का कोई ह़क नहीं'
आज न्यायाधीशों में निजी टिप्पणियां करने की कुरीति पैदा होती जा रही है. इससे आप सहमत हैं? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल पर दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शिव नारायण ढींगरा ने कहा, “नहीं बिलकुल सहमत नहीं हूं. मैं इस तरह की किसी बेहूदगीपूर्ण परिपाटी या संस्कृति का समर्थन कैसे कर सकता हूं. आज जजों की हालत यह हो गई है कि वे मुकदमे की सुनवाई, जल्दी या समय से फैसलों पर उतना ध्यान नहीं देते हैं कि जितना की खुलकर निजी टिप्पणियां करने में रखते हैं. किसी न्यायाधीश को निजी टिप्पणी करने का कोई ह़क नहीं है. जज को अगर कुछ कहना है तो वह फैसले में या कागज पर लिखकर कहे जो नजीर बन जाए.
देख लीजिए न निजी टिप्पणियों का नतीजा दुनिया के सामने मौजूद है. जब जब किसी भी जज ने आम आदमी की बात छोड़िए, किसी जज ने जज के ही ऊपर टिप्पणी की है, तब तब यह निजी टिप्पणियां बवाल ही बनी हैं.''
निजी टिप्पणियां करने वाले जज तमाशा ही बनकर रह जाएंगे
''किसी जज को इन निजी टिप्पणियों से कुछ हासिल हुआ हो, मैंने तो नहीं देखा. हां, इन निजी टिप्पणियों से समस्याएं ही पैदा हुई हैं. कई मामलों में तो न्यायपालिका को इन बेतुकी बे-सिर पैर की जजों की निजी टिप्पणियों से न केवल न्यायाधीशों को ठेस पहुंचती रही है, अपितु इससे टिप्पणियां करने वाले न्यायाधीश की अपनी छवि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. जब तक और जो भी जज इस तरह की निजी टिप्पणियां करते रहेंगे, आम आदमी से ज्यादा इन निजी टिप्पणियों का खामियाजा जजों और न्यायपालिका को ही झेलना पड़ेगा. जजों को कम और मतलब का बोलकर, अपने मन की बात कागज पर उतारनी चाहिए जो नजीर बन जाए. वरना इस तरह की निजी टिप्पणियां सिर्फ तमाशा ही बनेंगी और ऐसी निजी टिप्पणियां करने वाले जज भी तमाशा ही बनकर रह जाएंगे. रह क्या जाएंगे अब तो सब कुछ सामने होता हुआ दिखाई दे रहा है. मैं कोई अलग से खास नहीं बता रहा हूं. मैं सुप्रीम कोर्ट में घटी जूता फेंकने की घटना का समर्थन तो कतई नहीं करता हूं, हां मगर इसके कांड के पीछे भी निजी टिप्पणी ही मुख्य वजह मुझे लगती है. अगर यह कहूं तो भी मैं गलत नहीं हूं.”