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पूर्व नौकरशाह, जज, सैन्य अफसरों ने राहुल के खिलाफ खोला मोर्चा; भड़की अलका लांबा, बोलीं- 'सत्ता के दलाल और कायर'

राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं की छवि खराब करने के प्रयासों के खिलाफ देश के पूर्व न्यायाधीशों, नौकरशाहों,पूर्व राजदूतों और सैन्य अफसरों ने मोर्चा खोल दिया है. इन सेवाओं के 272 नागरिकों ने कांग्रेस नेता के इस रुख को लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला करार दिया है. साथ ही कहा है कि यह गंभीर चिंता का विषय है. जानें क्या है पूरा मामला?

पूर्व नौकरशाह, जज, सैन्य अफसरों ने राहुल के खिलाफ खोला मोर्चा; भड़की अलका लांबा, बोलीं- सत्ता के दलाल और कायर
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( Image Source:  ANI )

राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने के बाद देश के कई पूर्व न्यायाधीश, आईएएस, आईपीएस, पूर्व राजदूत और सैन्य अधिकारी खुलकर सामने आए गए हैं. उन्होंने एक संयुक्त बयान में कहा कि संवैधानिक संस्थाओं को कठघरे में खड़ा करना बेहद खतरनाक है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करता है. विपक्ष इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहा है. जबकि सत्ता पक्ष इसे “राष्ट्र के संस्थानों पर संगठित हमला” बता रहा है. अब यह विवाद विवाद तेजी से बढ़ रहा है. क्या है पूरा मामला, 10 प्वाइंट में जानें सब कुछ.

अलका का पलटवार, जानें क्या कहा...

जैसे ही देश के 272 प्रतिष्ठित नागरिकों ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को ओपन लेटर लिखकर चुनाव आयोग पर गड़बड़ी करने के आरोप लगाने की आलोचना की, उसके तत्काल बाद कांग्रेस की नेता अलका लांबा भड़क उठीं. लांबा ने ऐसे लोगों के लिए बिना नाम लिए बेशर्म, बिकाऊ, भ्रष्ट, कायर जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. अलका लांबा ने एक्स पर एक न्यूज वेबसाइट की खबर शेयर करते हुए कहा कि जिस तरह से राहुल को लेटर लिखे जाने की खबर साझा की है, उससे साफ है कि उनका निशाना उन्हीं 272 लोगों पर है.

10 प्वाइंट में जानें सब कुछ

1. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे और कहा था कि आयोग जनादेश को प्रभावित करने में विफल रहा तथा सरकारी दबाव में काम कर रहा है.

2. चुनाव आयोग के खिलाफ राहुल गांधी का बयान आने के बाद लगभग दर्जनों पूर्व जज, नौकरशाह और सैन्य अफसरों ने ओपन लेटर जारी किया है. पत्र में राहुल गांधी की टिप्पणी को लोकतांत्रिक संस्थाओं में अविश्वास फैलाने की कोशिश बताया गया है.

3. देश के अलग-अलग विभागों के पूर्व अधिकारियों का कहना है कि राजनीतिक बयानबाजी अब सीधे संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को निशाना बना रही है, जो बेहद चिंताजनक है.

4. वरिष्ठ न्यायाधीशों और नौकरशाहों ने अपने वक्तव्य में कहा गया कि चुनाव आयोग भारत की लोकतांत्रिक रीढ़ है और उसके खिलाफ बार-बार की जाने वाली टिप्पणी नागरिकों में अविश्वास पैदा करती है.

5. सेना के कई सेवानिवृत्त अफसरों ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने से सुरक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ता है और ऐसे बयान 'राष्ट्रीय एकता को नुकसान' पहुंचा सकते हैं.

6. पत्र में दावा किया गया है कि सशस्त्र बलों, न्यायपालिका, संसद और अन्य संवैधानिक प्राधिकारियों को निशाना बनाने के बाद, अब चुनाव आयोग पर भी इसी तरह के व्यवस्थित और षड्यंत्रकारी हमले किए जा रहे हैं. हस्ताक्षरकर्ताओं का आरोप है कि विपक्ष के नेता ने बिना कोई विश्वसनीय सबूत पेश किए, आयोग पर वोट चोरी के दावों सहित गंभीर कदाचार का बार-बार आरोप लगाया है.

7. पत्र में राजनीतिक हस्तियों और संबद्ध समूहों के एक बड़े समूह पर चुनाव आयोग पर हमलों को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया है. हस्ताक्षरकर्ताओं के अनुसार वरिष्ठ कांग्रेस नेता, अन्य दलों के सदस्य, वामपंथी एनजीओ, विचारधारा से प्रेरित टिप्पणीकार और ध्यान आकर्षित करने वाले लगातार आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहां तक कि आरोप लगा रहे हैं कि आयोग भाजपा की बी-टीम बन गया है. अफसरों के मुताबिक लोकतंत्र में आलोचना जरूरी है, लेकिन उसे व्यवस्था तोड़ने वाले हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

8. पत्र में तर्क दिया गया है कि इस तरह की बयानबाजी जांच के दायरे में बेमानी हो जाती है, क्योंकि चुनाव आयोग ने अपनी एसआईआर पद्धति को सार्वजनिक रूप से समझाया है, अदालत द्वारा अनुमोदित सत्यापन प्रक्रियाओं का पालन किया है, अयोग्य नामों को हटाया है और वैध मतदाताओं को जोड़ा है. हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि ये आरोप राजनीतिक हताशा को एक संस्थागत संकट के रूप में पेश करने के उद्देश्य से लगाए गए हैं.

9. पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि चुनाव आयोग की आलोचना तब गायब हो जाती है जब नतीजे विपक्ष के नेतृत्व वाले राज्यों के पक्ष में आते हैं, लेकिन जब नतीजे उनके खिलाफ जाते हैं तो यह फिर से उभर आती है, जिससे दृढ़ विश्वास के बजाय चुनिंदा आक्रोश का पता चलता है. वरिष्ठ नागरिकों ने सलाह दी है कि राहुल गांधी अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने या नीतिगत विकल्प पेश करने के बजाय, कुछ राजनीतिक नेता संस्थानों पर हमला करना पसंद करते हैं, राजनीति को प्रदर्शन में बदल देते हैं. इससे उन्हें बचने की जरूरत है.

10. चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई आधिकारिक कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी है, परन्तु यह विवाद आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस का मुख्य हिस्सा बन सकता है. हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि वे 'नागरिक समाज के वरिष्ठ नागरिक' हैं और राजनीतिक बयानबाजी के जरिए लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बढ़ते हमले से चिंतित हैं.

272 प्रमुख नागरिकों के एक समूह ने जिनमें 16 पूर्व न्यायाधीश, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह (जिनमें 14 पूर्व राजदूत भी शामिल हैं) और 133 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं, एक खुला पत्र जारी किया है जिसमें उन्होंने विपक्ष के नेता और कांग्रेस पार्टी द्वारा संवैधानिक संस्थाओं विशेष रूप से भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को कमजोर करने के लगातार प्रयासों की आलोचना की है.

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