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BJP की 'ट्राइबल इंजीनियरिंग' फेल? घाटशिला उपचुनाव में बेटे को जीत नहीं दिला पाए चंपई सोरेन- JMM का किला हुआ और मजबूत

झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व सीएम चंपई सोरेन से भाजपा को आदिवासी वोट खींचने की बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन एक साल बाद भी वे पार्टी के लिए उपयोगी साबित नहीं हो पाए. 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ती गई जबकि झामुमो ने 28 में से 27 सीटें जीत लीं. घाटशिला उपचुनाव में चंपई के पुत्र को टिकट देने के बावजूद भाजपा को करारी हार मिली, जिससे चंपई की राजनीतिक प्रभावशाली छवि पर सवाल खड़े हो गए. इसके बावजूद चम्पाई आदिवासी अधिकारों और पहचान की लड़ाई जारी रखने की बात कर रहे हैं.

BJP की ट्राइबल इंजीनियरिंग फेल? घाटशिला उपचुनाव में बेटे को जीत नहीं दिला पाए चंपई सोरेन- JMM का किला हुआ और मजबूत
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( Image Source:  ANI )

Champai Soren: झारखंड की राजनीति में कभी झामुमो के प्रथम पंक्ति के नेता रहे और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को बीजेपी ने पिछले वर्ष बड़ी रणनीति के तहत अपने दल में शामिल कराया था. पार्टी का स्पष्ट लक्ष्य था- चम्पाई के प्रभाव और आदिवासी समाज में उनकी पकड़ का उपयोग कर झामुमो के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाना. हालांकि, एक वर्ष बीतने के बावजूद परिणाम भाजपा की अपेक्षा के विपरीत रहे.

न सिर्फ झामुमो का आधार वोट अडिग रहा, बल्कि पार्टी ने 2024 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन के साथ मिलकर अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 28 में से 27 आदिवासी सुरक्षित सीटें अपने नाम कर लीं. यह परिणाम साफ संकेत था कि चंपई के भाजपा जॉइन करने का झामुमो के जनाधार पर कोई खास असर नहीं पड़ा.


घाटशिला उपचुनाव में बड़ी उम्मीद, लेकिन बड़ा झटका

भाजपा ने हाल ही में संपन्न घाटशिला सुरक्षित सीट उपचुनाव में चम्पाई सोरेन के बेटे, बाबूलाल सोरेन को टिकट दिया. पार्टी को उम्मीद थी कि चंपई की छवि और प्रभाव से बाबूलाल यहां मुकाबले को पलट देंगे... लेकिन यह रणनीति सफल नहीं हुई. चुनाव परिणामों ने दिखा दिया कि चम्पाई की राजनीतिक विरासत भाजपा के लिए कोई निर्णायक फैक्टर साबित नहीं हुई. बाबूलाल सोरेन को हार का सामना करना पड़ा, जो न सिर्फ भाजपा बल्कि चम्पाई सोरेन के लिए भी एक व्यक्तिगत झटका माना जा रहा है.


भाजपा की बड़ी रणनीति और उसका उलटा असर

सितंबर 2024 में चंपई के भाजपा में आने को पार्टी ने अपनी 'लॉन्ग-टर्म ट्राइबल स्ट्रेटेजी' का हिस्सा बताया था. भाजपा को यकीन था कि झामुमो में वर्षों तक सक्रिय रहे चंपई का आदिवासी समाज पर प्रभाव उन्हें संताल और कोल्हान क्षेत्र में मजबूत बनाएगा, लेकिन चुनाव नतीजों ने विपरीत तस्वीर पेश की- भाजपा आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ गई, चम्पाई केवल अपनी सरायकेला सीट बचा सके, और झामुमो ने चम्पाई के जाने के बावजूद अपने जनाधार को और मजबूत किया.


घाटशिला उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा जैसे बड़े नेताओं ने प्रचार किया. इसके बावजूद भाजपा जीत नहीं सकी. झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने तो चम्पाई के भाजपा में जाने को 'राजनीतिक आत्महत्या' तक कह दिया.

आदिवासी मुद्दों पर अब भी मुखर चम्पाई

गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने के बाद भी चम्पाई सोरेन भूमि अधिकार, जनसांख्यिकी बदलाव जैसे मुद्दों पर मुखर बने हुए हैं. घाटशिला उपचुनाव में हार के बाद उन्होंने कहा, "हमारी लड़ाई जनजातीय समाज की रक्षा के लिए जारी रहेगी." लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस हार ने चम्पाई की व्यक्तिगत प्रभावशीलता और राजनीतिक भविष्य पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं, जबकि झामुमो पर उनके दलबदल का लगभग कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा.

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