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ऑस्‍ट्रेलिया-डेनमार्क ने 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए सोशल मीडिया यूज करने पर लगाया बैन, क्‍या भारत में ऐसा करना मुमकिन है?

ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क ने 16 और 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है, ताकि उन्हें साइबरबुलिंग और मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों से बचाया जा सके. वहीं भारत में ऐसा बैन लागू करना व्यावहारिक रूप से मुश्किल माना जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक, देश की डिजिटल निर्भरता, बड़ी आबादी और ऑनलाइन शिक्षा को देखते हुए पूर्ण प्रतिबंध की बजाय स्मार्ट रेगुलेशन और डिजिटल लिटरेसी बेहतर विकल्प होंगे.

ऑस्‍ट्रेलिया-डेनमार्क ने 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए सोशल मीडिया यूज करने पर लगाया बैन, क्‍या भारत में ऐसा करना मुमकिन है?
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( Image Source:  ANI )

Australia Denmark social media ban, India social media policy: हाल ही में ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और ऑनलाइन सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सख्त प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. ऑस्ट्रेलिया की संसद ने एक विधेयक पेश किया है जिसके तहत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर खाता बनाने से रोका जाएगा. वहीं, डेनमार्क सरकार ने घोषणा की है कि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सामाजिक मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की योजना है. माता-पिता 13-14 वर्ष के बच्चों को विशेष अनुमति दे सकते.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि भारत में ऐसी कार्रवाई संभव है और अगर है तो उसे लागू करने में क्या-क्या चुनौतियां आएंगी.. लेकिन उससे पहले आइए जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क ने क्या कदम उठाए हैं...


ऑस्ट्रेलिया

दिसंबर 2024 में ऑस्ट्रेलिया की संसद ने दुनिया का पहला ऐसा कानून पारित किया, जिसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया (जैसे Instagram, TikTok, Facebook, Snapchat, X, Reddit) पर पूरी तरह बैन लगा दिया गया. प्लेटफॉर्म्स को उम्र सत्यापन (जैसे फेशियल रिकग्निशन या ID चेक) के जरिए इसे लागू करना होगा. उल्लंघन पर 50 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 25 करोड़ रुपये) तक का जुर्माना लग सकता है. यह बैन 10 दिसंबर 2025 से पूरी तरह लागू होगा. सरकार का कहना है कि यह बच्चों को हानिकारक कंटेंट, साइबरबुलिंग और एडिक्शन से बचाने के लिए जरूरी है.

डेनमार्क

नवंबर 2025 में डेनमार्क की सरकार ने 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया एक्सेस पर बैन लगाने का राजनीतिक समझौता किया. यह यूरोप में सबसे सख्त कदमों में से एक है. यहां 13-14 साल के बच्चों के लिए माता-पिता की विशेष अनुमति (असेसमेंट के बाद) का प्रावधान है. एनफोर्समेंट के लिए नेशनल ई-ID सिस्टम और ऐप-बेस्ड उम्र वेरिफिकेशन का इस्तेमाल होगा. डेनिश डिजिटलाइजेशन मिनिस्टर कैरोलाइन स्टेज ने कहा कि टेक जायंट्स के बिजनेस मॉडल बच्चों के लिए 'बहुत ज्यादा दबाव' डाल रहे हैं. यह बैन तुरंत लागू नहीं होगा, बल्कि सही रेगुलेशन बनाने के बाद...



भारत में ऐसा बैन लगाना मुमकिन है?

भारत में अभी ऑस्ट्रेलिया या डेनमार्क जैसा पूरा बैन नहीं है, लेकिन बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर काम चल रहा है. हालांकि, विशेषज्ञों और सरकार के बयानों से लगता है कि पूर्ण बैन लगाना बहुत मुश्किल और व्यावहारिक रूप से असंभव हो सकता है. आइए विस्तार से देखें:

भारत में वर्तमान स्थिति

  • डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 के ड्राफ्ट रूल्स (जनवरी 2025): 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिए माता-पिता की वेरिफायबल कंसेंट जरूरी होगी. यह डेटा प्रोटेक्शन के लिए है, न कि पूरा बैन. सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज (जैसे Meta, TikTok) को बच्चों के डेटा को सख्ती से हैंडल करना होगा.
  • अपवाद: कानूनी जरूरतें, गवर्नमेंट बेनिफिट्स या बच्चों को हानिकारक कंटेंट से बचाने के लिए.
  • अन्य नियम: IT रूल्स 2021 के तहत प्लेटफॉर्म्स को हानिकारक कंटेंट (बुलिंग, एक्सप्लॉइटेशन) रिपोर्ट करना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में 13 साल से कम बच्चों पर बैन की याचिका खारिज कर दी, कहते हुए कि यह पॉलिसी इश्यू है, कोर्ट का मामला नहीं.
  • सोशल मीडिया यूज: भारत में 46 करोड़ एक्टिव यूजर्स हैं, जिनमें 32% पॉपुलेशन शामिल. बच्चों में स्मार्टफोन यूज तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन शिक्षा के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स भी जरूरी हैं.


क्या बैन संभव है? चुनौतियां और विशेषज्ञ राय

भारत में बैन लगाने की बहस तेज है (ऑस्ट्रेलिया के बाद), लेकिन IT सेक्रेटरी एस. कृष्णन ने जनवरी 2025 में कहा कि ऑस्ट्रेलिया जैसा पूरा बैन नहीं होगा, क्योंकि:

  • लर्निंग का महत्व: भारत में ऑनलाइन शिक्षा (जैसे YouTube, एजुकेशनल ऐप्स) बहुत कॉमन है. बैन से बच्चों का एक्सेस सीमित हो जाएगा.
  • एनफोर्समेंट की समस्या: 1.4 अरब आबादी, 75 करोड़ इंटरनेट यूजर्स। उम्र वेरिफिकेशन (बायोमेट्रिक या ID) लागू करना महंगा और जटिल होगा. बच्चे VPN, फेक अकाउंट्स से बायपास कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे 'पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी' माना, लेकिन पॉलिसी पर छोड़ा.
  • सोशियो-इकोनॉमिक फैक्टर्स: ग्रामीण इलाकों में स्मार्टफोन शेयरिंग कॉमन है. बैन से प्राइवेसी ब्रेक (ID चेक से) या डिजिटल डिवाइड बढ़ सकता है.
  • पेरेंट्स के लिए चैलेंज: बच्चे इसे स्टेटस सिंबल मानते हैं, बैन से विद्रोह हो सकता है.


वैकल्पिक सुझाव

  • 'चाइल्ड मोड' फीचर: प्लेटफॉर्म्स पर सेफ कंटेंट, लिमिटेड टाइम.
  • डिजिटल लिटरेसी: स्कूलों में प्रोग्राम्स से बच्चों को रिस्क सिखाना.
  • पेरेंटल कंट्रोल: ऐप्स पर मजबूत टूल्स.


ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क के कदम सराहनीय हैं, लेकिन भारत का संदर्भ अलग है. यहां डिजिटल ग्रोथ तेज है, इसलिए पूर्ण बैन की बजाय स्मार्ट रेगुलेशन (जैसे कंसेंट और एजुकेशन) ज्यादा फिट बैठेगा. सरकार अगर बैन लाती है, तो पहले पायलट टेस्ट और इंटरनेशनल लर्निंग (ऑस्ट्रेलिया से) जरूरी है. अभिभावकों को भी फोन मॉनिटरिंग और ओपन बातचीत के जरिए रोल प्ले करना चाहिए.

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