प्रोफेसर महमूदाबाद को जमानत मिलने के बाद BNS की धारा 152 की क्यों हो रही चर्चा?
अशोका यूनिवर्सिटी के अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को अंतरिम जमानत दी, लेकिन सार्वजनिक बयानबाज़ी से रोकते हुए मामले की निष्पक्ष जांच के लिए SIT बनाने का आदेश दिया. इस पूरे मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 का उल्लेख प्रमुखता से हुआ है. यह धारा अब चर्चा में है, क्योंकि इसे पूर्ववर्ती राजद्रोह कानून (IPC 124A) का नया संस्करण माना जा रहा है. विशेषज्ञों और नागरिक समाज ने आशंका जताई है कि इसका उपयोग असहमति की आवाज़ें दबाने के लिए किया जा सकता है.

Ashoka University professor Ali Khan Mahmudabad case: अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ हाल ही में दो एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें उन पर भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने तथा विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने के आरोप लगाए गए हैं.
18 मई को हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया और बीजेपी युवा मोर्चा के सदस्य योगेश जठेड़ी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में प्रोफेसर महमूदाबाद पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के संदर्भ में सोशल मीडिया पर एक विवादास्पद पोस्ट किया, जिसमें दो महिला सैन्य अधिकारियों की भूमिका पर टिप्पणी की गई थी. इस पोस्ट को महिलाओं की गरिमा का अपमान और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को दी अंतरिम जमानत
21 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद को अंतरिम जमानत प्रदान की, लेकिन एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने उन्हें दो-दो लाख रुपये के मुचलके पर रिहा किया और निर्देश दिया कि वे सोशल मीडिया पर इस मामले से संबंधित कोई भी टिप्पणी न करें. साथ ही, हरियाणा पुलिस को निर्देश दिया गया कि वे राज्य से बाहर के आईपीएस अधिकारियों की एक तीन सदस्यीय विशेष जांच टीम (SIT) गठित करें, जिसमें एक महिला अधिकारी भी शामिल हो, ताकि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके.
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को जमानत मिलने के बाद भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 चर्चा का केंद्र बन गई है, क्योंकि यह धारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर में प्रमुख रूप से शामिल है.
BNS की धारा 152 क्या है?
BNS की धारा 152 'राज्य के विरुद्ध अपराध' अध्याय के अंतर्गत आती है. इसका उद्देश्य भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को दंडित करना है.
प्रमुख प्रावधान
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या जानकर, बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य प्रतिनिधित्व, इलेक्ट्रॉनिक संचार, या वित्तीय साधनों के माध्यम से विच्छेदन (secession), सशस्त्र विद्रोह (armed rebellion), उपद्रवी गतिविधियों (subversive activities) को भड़काता है या प्रयास करता है, या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, तो उसे आजीवन कारावास या सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है.
क्यों हो रही है धारा 152 की चर्चा?
- धारा 152 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (राजद्रोह) के स्थान पर लाया गया है. हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह केवल नाम का परिवर्तन है. इसकी भाषा और उद्देश्य पूर्ववर्ती कानून से मिलते-जुलते हैं.
- इस धारा की व्यापक और अस्पष्ट परिभाषा के कारण, यह चिंता जताई जा रही है कि इसका उपयोग सरकार के आलोचकों, शिक्षाविदों और पत्रकारों के खिलाफ किया जा सकता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लग सकता है.
- प्रोफेसर महमूदाबाद के सोशल मीडिया पोस्ट, जिसमें उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के संदर्भ में शांति और समावेशिता की बात की थी, को इस धारा के तहत दर्ज किया गया, जिससे यह बहस छिड़ गई कि क्या ऐसे बयानों को देश की संप्रभुता के लिए खतरा माना जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद को अंतरिम जमानत प्रदान की, लेकिन उनके शब्दों की पसंद पर आपत्ति जताई, इसे 'डॉग व्हिस्लिंग' कहा, और उन्हें मामले पर सार्वजनिक टिप्पणी करने से रोका.
धारा 152 की व्यापक परिभाषा और इसकी संभावित दुरुपयोग की संभावना के कारण यह वर्तमान में कानूनी और सामाजिक बहस का विषय बनी हुई है. प्रोफेसर महमूदाबाद का मामला इस बहस को और गहरा करता है कि कैसे नए कानूनों का उपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है.
प्रोफेसर महमूदाबाद को जेल से किया गया रिहा
प्रोफेसर महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोनीपत जेल से रिहा कर दिया गया है. उनकी रिहाई के दौरान अशोका यूनिवर्सिटी के संकाय सदस्य और उनके सहयोगी मौजूद थे. कोर्ट ने उन्हें जांच में पूर्ण सहयोग देने और मीडिया से दूर रहने की सलाह दी है.
प्रोफेसर महमूदाबाद कौन हैं?
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् हैं और महमूदाबाद के अंतिम राजा के पोते हैं. वे भारतीय मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर अपने विचारों के लिए जाने जाते हैं.