Emergency @50: सत्ता गई-सबक मिला, आपातकाल में किसी को भी जेल में ठूंसने को ‘FIR’ का फिक्स-फ्रेम था: EX DGP प्रकाश सिंह
भारत में लगाए गए आपातकाल को 50 साल पूरे होने पर पूर्व डीजीपी और बीएसएफ महानिदेशक प्रकाश सिंह ने यादें साझा कीं. उन्होंने बताया कि कैसे झांसी में एसपी रहते हुए उन्हें बेकसूरों को भी गिरफ्तार करने के आदेश मिले. इंदिरा गांधी का यह फैसला लोकतंत्र पर काला धब्बा था, लेकिन इसने देश को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया, जो आज की पीढ़ी भूल चुकी है.

“आपातकाल (1975 Emergency in India) काला ही था. वो न गोरा था न उसे कभी गोरा किया जा सकता है. बेशक वह आजाद भारत में लोकतंत्र के माथे पर कलंक था. इसके बाद भी हर चीज के सकारात्मक-नकारात्मक दो पहलू होते हैं. आपातकाल (June 1975 Emergency) अगर 99 जगह गलत था तो एक जगह मेरे निजी अनुभव मेरी निजी सोच से वह सही था. सही इस मायने में कि अब से 50 साल पहले 25 जून 1975 को श्रीमति इंदिरा गांधी ने भले ही आपातकाल निजी स्वार्थ-सिद्धि के लिए क्यों न लगाया हो मगर, 21 महीने के उस आपातकाल ने भारत को अनुशासन में रहना सिखा दिया था. ऐसा नहीं है कि मैं आपातकाल की तरफदारी कर रहा हूं. हां, आपातकाल में भारतीयों को हासिल अनुशासन का अभ्यास बेहद काम का था.
उस वक्त मेरी उम्र यही रही होगी करीब 39 साल.1959 बैच का भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी बन चुका था. 25 जून 1975 को देश में जब श्रीमति इंदिरा गांधी ने आपातकाल (25 June 1975 Emergency) की घोषणा की तब मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले का पुलिस अधीक्षक बना ही था. उससे पहले तक मैं केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भारतीय खुफिया विभाग (Intelligence Bureau of India IB) में पदासीन था. आपातकाल में अच्छा कम और बुरा ज्यादा देखने को मिला. वह सब बुरा देखने को मिला उस दौर में, जिसकी एक पुलिस अधिकारी (आईपीएस) होने के चलते मैंने कभी भी देखने की कल्पना भी नहीं की थी.”
“आपातकाल” जबरन थोपा गया था
यह तमाम बेबाक बातें 1959 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के वरिष्ठ अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल (DG BSF) के रिटायर्ड महानिदेशक और उत्तर प्रदेश (DGP UP) व आसाम (DGP Assam) के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहीं. प्रकाश सिंह 25 जून 2025 को स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से, भारत में आपातकाल को लगे हुए 50 साल पूरे होने के मौके पर एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, “अपने हाथों से सत्ता का सिंहासन जाता देख कांग्रेस की तब सर्वेसर्वा रहीं (Congress Leader Indira Gandhi) श्रीमति इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल देश के ऊपर जबरिया थोपा गया था.”
“आपातकाल” इंदिरा गांधी को ही ले डूबा
आपातकाल कानून के एकदम खिलाफ रहने वाले प्रकाश सिंह कहते हैं, “श्रीमति इंदिरा गांधी को उम्मीद थी कि वह आपातकाल लगाकर देश की जनता और विरोधी राजनीतिक पार्टियों को दबा-डराकर अपने पक्ष में कर लेंगीं. हुआ मगर उनकी सोच के एकदम उलटा. 21 मीहने का देश में आपातकाल लगाने के बाद भी वह (मिसेज इंदिरा गांधी) अपनी सत्ता का सिंहासन बचा पाने में नाकाम रहीं. अगर कहूं कि जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाने का फैसला उन्हीं के खिलाफ चला गया. केंद्र से उनकी सरकार गई सो अलग. उल्टे वह जिन विरोधियों को ठिकाने लगाकर सत्ता पर काबिज होने की मैली मंशा पाले हुए थीं. आपातकाल के बाद जनता ने इंदिरा गांधी से सत्ता छीनकर, उनके विरोधियों को भारत के सिंहासन पर ले जाकर बैठा दिया.”
50 साल पहले आपातकाल में पुलिस की नई-नई नौकरी कर चुके प्रकाश सिंह विशेष लंबी बातचीत के दौरान बताते हैं, “मैंने झांसी पुलिस अधीक्षक का कार्यभार ग्रहण ही किया था. एक राज्य मुख्यालय (लखनऊ) से संदेश आया कि देश में आपातकाल लग चुका है. उस मनहूस संदेश के साथ ही सूबे के सभी जिला, रेंज पुलिस अफसरों के पास एक एफआईआर का एक फिक्स-फार्म भी आया था. जिसमें कानून की धाराएं तो पहले से ही लिखी हुई थीं. बस जिसे जबरिया गिरफ्तार करके जेल में ठूंसना था. उसका नाम, पिता का नाम, पता, उम्र आदि पुलिस को उस एफआईआर फार्म में भर देना था. वह एफआईआर फार्म मैंने भी जिले के सभी थानाध्यक्षों तक पहुंचवा दिया.
तब मेरी समझ आया ओह यह है आपातकाल
जिला पुलिस को लखनऊ पुलिस महानिदेशालय से मिले आदेश या हुकूम की तामील कैसे करनी है? यह भी थाना-प्रभारियों को समझा दिया था. मुझे हैरत तब और ज्यादा हुई जब सभी जिला पुलिस कप्तानों को विशेष सूचियां भेजी गईं. जिनमें उन लोगों के नाम पते उम्र दर्ज थे जिन्हें हर हाल में उनके बेकसूर होने के बाद भी गिरफ्तार करके जेल भेजना था. तब मुझे लगा कि ओह यही होता है आपातकाल का चाबुक या डंडा, जिसके तहत गुंडों- बदमाशों के साथ साथ बेदाग-बेकसूरों को भी पुलिस को जबरन गिरफ्तार करके जेल में ठूंसना होगा. चूंकि सरकारी नौकरी थी वह भी पुलिस की. जिसके कंधों पर कानून और व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जिम्मेदारी होती है. आपातकाल में उसी पुलिस को घरों-दफ्तरों, चौपालों, खेत-खलिहानों, गली-मुहल्लों में मौजूद हजारों लाखों बेकसूरों को जबरिया खींचकर-गिरफ्तार करके जेल में बंद करना था.”
ताकि पुलिस पर आपातकाल का “पाप” न लगे
आपातकाल की कभी याद न करने वाली तारीखों के पीले पड़कर फटने के कगार पर पहुंच चुके पन्ने पलटते हुए देश के वरिष्ठतम पूर्व पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह बोले, “आपातकाल लागू तो मिसेज इंदिरा गांधी ने किया था. मगर उस पर अमल पुलिस को करना-कराना था. सो मैंने तय किया कि जब बेकसूरों-बेगुनाहों को जबरिया गिरफ्तार करके जेल में ठूंसना ही है तो कम से कम पुलिस को तो किसी तरह इस पाप से दूर रख लिया जाए. ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसके लिए मैंने जिले के सभी थानाध्यक्षों से कहा था कि देखिए हम तमाम रसूखदार, इज्जतदार और बेगुनाह लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजने के बेजा अभियान में जबरन ही जुटाए गए हैं.
बेकसूर को गिरफ्तार करने से पहले.....
लिहाजा हमें राज्य मुख्यालय (लखनऊ) से मिली सूची के मुताबिक गिरफ्तारियां तो बेगुनाह-बेकसूरों की भी करनी ही होंगी. पुलिस होने के नाते हम अगर ऐसा करने से इनकार करेंगे तो हम, कानून और शासन की अवहेलना करने के आरोप में फंस सकते हैं. लिहाजा जिस भी बेकसूर-बेगुनाह (जिन्हें हर हाल में गिरफ्तार करके जेल भेजने की सूची में शामिल किया गया था) को पुलिस गिरफ्तार करने जाएगी. उस इनसान को पहले पुलिस ब-इज्जत नमस्कार करेगी. उसके बाद पुलिस उस इंसान को इज्जत देते हुए बताएगी कि बेगुनाह होते हुए भी उसे गिरफ्तार करके जेल भेजने में, दोष पुलिस का नहीं हुकूमत का है. जिसने जबरन ही बेकसूरों को भी जेल में ठूंसने के लिए आपातकाल जैसा बुरा कानून लागू किया है. आप (जिसकी गिरफ्तारी करनी होती वह) अच्छे आदमी हैं. मगर दोष पुलिस का भी नहीं है. पुलिस तो सरकार के आदेश का पालन कर रही है. मेरा यह फार्मूला पुलिस और उन बेकसूरों को बेहद पसंद आया, जो आपातकाल के दौरान पुलिस को बेलगाम या हौवा समझ रहे थे.”
आपातकाल में व्यापक स्तर पर चाबुक चला
उस मनहूस और बदरंग ‘आपातकाल’ का चर्चा करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह मानते हैं कि, “मैंने झांसी जिले में कैसे बेकसूरों को जेल ले जाने के लिए मैनेज किया? उस बदतर हालात को भी सरलता से निकाल जाने के लिए मैंने झांसी में जो फार्मूला अपनाया वह मेरे जिले तक सीमित रहा था. हां, यह सत्य है कि आपातकाल में बाकी पूरे देश में खूब खुलकर चाबुक चला था. इसमें शक नहीं है. सभी मौलिक अधिकार आपातकाल के दौरान सस्पेंड कर डाले गए. राजनीतिक विद्वेष के चलते अनाप-शनाप गिरफ्तारियां हुईँ. जबरन नसबंदी अभियान देश में छेड़ दिया गया. प्रेस को पाबंद कर डाला गया. न मालूम आपातकाल की आड़ लेकर कितने कुंवारे युवाओं की ही नसबंदी करवा डाली गई.
आपातकाल इंदिरा गांधी के गले की हड्डी बन गया
बकौल प्रकाश सिंह, इसीलिए तो कह रहा हूं न कि जल्दबादी में अपने खिसकते सिंहासन को बचाने के फेर में फंसी इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल उन्हीं के गले की फांस बन गया. और वे खुद तो अगला चुनाव बुरी तरह हारी हीं. आपातकाल के बाद वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की भी देश के मतदाताओं ने तबियत से धुलाई कर डाली. अगर कहूं कि आपातकाल के चक्कर में इंदिरा गांधी को माया मिली न राम. तो गलत नहीं होगा. आज तक देश की जनता ने आपातकाल के लिए कांग्रेस और इंदिरा गांधी को माफ नहीं किया है.”
“अंधा बांटै रेबड़ी बार-बार अपने को दे”
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में सीमा सुरक्षा बल के रिटायर्ड महानिदेशक और अब से पचास साल पहले देश में लगाए गए आपातकाल के चश्मदीद रहे प्रकाश सिंह कहते हैं, “आपातकाल के दौरान आलम यह था कि पता नहीं चलता था कब सरकार किसे इनाम दे दे और कब किसे दंड दे डाले. जो आपातकाल में सरकार के लिए ही उसके इशारे पर नाचकर काम कर रहे थे, वे उस काले दौर में भी बेलगाम हुकूमत की ओर से पुरस्कृत किए गए. जिन्होंने सरकार की हां में हां न मिलाने की हिमाकत की, वह बेकसूर होने के बाद भी लंबे समय तक सरकारी चाबुक की चोटों से लहुलुहान किए जाते रहे.”
“आपातकाल” के बाद के नफा-नुकसान
बेबाक बातचीत में प्रकाश सिंह कहते हैं, “बेशक आपातकाल बुरा रहा हो. मगर गुंडा-बदमाशों-अपराधियों ने आपातकाल में ऐसे दुम दबा ली थी मानो वे सब भारत में जिंदा ही न बचे हों. सब अपने अपने बिलों में दुबक गए थे. सार्वजनिक परिवहन सेवा बस, ट्रेन इत्यादि एकदम राइट टाइम चलने लगी थीं. कोई भी किसी के साथ दुर्व्यवहार करने से पहले 100 बार अपनी खैर के बारे में सोचता था. मतलब आपातकाल ने अगर अत्याचार किए तो बेगलामों को लगाम लगा पाने का काम भी आपातकाल की ही सख्ती के चाबुक से संभव हो सका था. अब 50 साल से तो आपातकाल देश में नहीं है. अब सड़क पर खड़ा वाहियात इंसान भी प्रधानमंत्री को चोर कहकर भाग जाता है. आज पुलिस, मीडिया, राजनीति, आमजन कोई भी वर्ग हो. सबके सब बेलगाम हो चुके हैं. इन्होंने अगर आपाताकाल का कुर्रा देखा होता, तो आज हम सबको सलीके से जीना आ चुका होता. आज जब आपातकाल नहीं है तो लोग लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की बैसाखियों के ऊपर खड़े होकर, जब जहां जो चाहते हैं बोलते-बड़बड़ाते रहते हैं.”
उन RSS पदाधिकारी की ‘डायरी’ याद आती है
आपातकाल की कड़वाहट से भरी सच्ची कहानियां बयान करने के दौरान ही बीएसएफ के पूर्व महानिदेश प्रकाश सिंह एक यादगार किस्सा बयान करते हैं. वह कहते हैं, ‘आपातकाल के दौरान जब मैं झांसी का पुलिस कप्तान था और दिन-रात बेकसूरों-बेगुनाहों की गिरफ्तारियां करवा रहा था. तो एक दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस (RSS Leader) के नेता गिरफ्तार किए गए. उनकी एक डायरी भी पुलिस ने जब्त की. जब उन्हें जेल भेजा जा रहा था. तब मैंने उनके कब्जे से बरामद उनकी हस्तलिखित डायरी पढ़ी.
विश्वास कीजिए कि उस डायरी में जो कुछ दर्ज था वह तो बेशकीमती था ही. उनकी हैंड-राइटिंग और उस डायरी को बेहद तहजीब से संभाल कर उनके द्वारा रखे जाने की बात भी मेरे दिल में उतर गई. भले ही आपातकाल को लग कर खतम हुए 50 साल क्यों न बीत चुके हों. उन गिरफ्तार आर एस एस नेता की वह कीमती डायरी, उस डायरी में मौजूद अनमोल बातों और खूबसूरत हस्तलिपि को मैं आज भी नहीं भूल सका हूं. अब 89 साल की उम्र में अगर कुछ मुझे याद नहीं आ पा रहा है तो उस डायरी के मालिक-लेखक उन लाजवाब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नेता का नाम.’