Bihar Shilpi Jain Murder: जंगलराज में हुआ 'शिल्पी जैन मर्डर', जिसमें पुलिस - CBI के सामने 'फॉरेंसिक साइंस' तक पानी मांगने लगा!
पटना के चर्चित शिल्पी जैन-गौतम सिंह हत्याकांड को 26 साल बाद भी न्याय नहीं मिल पाया. दो लाशें, संदिग्ध हालात और कथित राजनीतिक हस्तक्षेप के बावजूद, न पुलिस कुछ साबित कर पाई, न सीबीआई. फॉरेंसिक सबूतों की अनदेखी और डीएनए जांच से इनकार ने केस को ‘सुसाइड’ बता कर दफना दिया. लेकिन कई सवाल आज भी जिंदा हैं.

जो कहते हैं कि पुलिस के आगे भूत भागते हैं, या कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, बिहार के बदनाम शिल्पी जैन-गौतम सिंह (Bihar Patna Shilpi Jain Gautam Singh Murder) हत्याकांड में तो कालांतर से लेकर अब तक, यह सब बातें-कहावतें झूठी और थोथी ही साबित हुईं. क्योंकि बिचारी बिहार (Patna Bihar Police) पुलिस और खुद को दुनिया की सबसे बड़ी जांच एजेंसी होने का रोना रोती रहने वाली सीबीआई (CBI), घटनास्थल से ऐसा कोई सबूत ही नहीं ढूंढ सकीं जो, अब से 26 साल पहले यानी 3 जुलाई 1999 को पटना में, एक कार के भीतर मिली दो 'लाशों' की कहानी को ‘दोहरे-कत्ल’ का मामला साबित कर पातीं.
जबकि अब से करीब सवा या डेढ़ सौ साल पहले फॉरेंसिक साइंस के जन्मदाता डॉ. एडमंड लोकार्ड यह साबित करके दुनिया से जा चुके हैं कि, “किसी भी आपराधिक घटनास्थल पर जब भी दो वस्तुओं के बीच संपर्क होता है, तब उनके बीच किसी न किसी सामग्री का आदान-प्रदान सौ प्रतिशत हुआ होता है. फॉरेंसिक साइंस की दुनिया में इस सिद्धांत की पुष्टि करते हैं घटनास्थल पर मौजूद तमाम मूक सबूत और गवाह. यह मूक गवाह और सबूत जो अपराध के किसी भी घटनास्थल पर छोड़े तो अपराधी द्वारा ही गए होते हैं, मगर उसको ही अपने खिलाफ खुद के ही द्वारा घटनास्थल पर छोड़े गए यह मूक और छिपे हुए सबूत नजर नहीं आते. इन सबूतों को मौके से जुटाने की जिम्मेदारी पुलिस या सीबीआई या एनआईए, एफबीआई जैसी जांच एजेंसियों की होती है.
पुलिस-सीबीआई के सामने सिसकती ‘फॉरेसिंक साइंस’
अब से करीब 26 साल पहले बिहार सहित पूरे देश को हिला देने वाले पटना के शिल्पी जैन गौतम सिंह हत्याकांड में मगर, सीबीआई और पटना (बिहार) पुलिस के सामने, फॉरेंसिक साइंस के जन्मदाता डॉ. एडमंड लोकार्ड का सवा सौ साल पुराना वह सिद्धांत भी रोता-सिसकता दिखाई पड़ा, जिस सिद्धांत की धुरी पर दुनिया भर के अपराधों की जांच आज तक हो रही है. सीबीआई और पटना पुलिस को मगर ऐसा कोई मूक-अप्रत्यक्ष गवाह या सबूत ही शिल्पी जैन-गौतम सिंह की लाशों के पास से नहीं मिला, जो उन दोनों लाशों को लोमहर्षक दोहरा हत्याकांड और गैंगरेप का मामला साबित हो पाता.
मतलब यह तो सही है कि उस जमाने में पटना के मशहूर व्यापारी की बेटी और मिस पटना रही शिल्पी जैन और, उसके कथित प्रेमी गौतम सिंह की लाशें संदिग्ध हालत में कार में पड़ी मिलीं. मौके के हालातों से प्रथम दृष्टया वह मामला गैंगरेप के बाद डबल मर्डर का भी लग रहा था. चूंकि उसमें उस वक्त सूबे की मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी के भैय्या और बिहार में 1990 के दशक में 'जंगलराज' के जन्मदाता (पटना हाईकोर्ट के मुताबिक), लालू प्रसाद यादव के साले दबंग सफेदपोश साधू यादव की भी ‘नस’ पर कहीं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कानूनी हथौड़े का वजन पड़ रहा था. सो शिल्पी जैन हत्याकांड में बिहार पुलिस (पटना) और सीबीआई ने वक्त के साथ ऐसी पल्टी मारी कि, दुनिया को फॉरेंसिक साइंस के जनक डॉ. एडमंड लोकार्ड का अचूक सिद्धांत भी सिसकता-बिलबिलाता नजर आने लगा.
पुलिस-CBI से 'भूतों' ने डरना बंद कर दिया
पुलिस के सामने भूत भी भागते हैं या फिर कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड में ये दोनों जुमले भी आपस में ही 'झूठ-झूठ' खेलते नजर आने लगे. मतलब, बिहार की राजनीति को झकझोर देने वाले और राबड़ी देवी के भैय्या व लालू यादव के साले साधु यादव के पीछे, तब से आज तक भी किसी बुरे-डरावने साए की मानिंद मंडरा रहे शिल्पी जैन हत्याकांड का सच 26 साल बाद भी सरकार, पुलिस-सीबीआई और कानून की फाइलों के पंजों से खोदी गई ‘कब्र’ में दफन है! और इस इंसानी दुनिया को फॉरेंसिंक साइंस देने वाले डॉ. एडमंड लोकार्ड का 'विनिमय-सिद्धांत' बिहार पुलिस और सीबीआई के दफ्तरों में किसी कोने में गुमसुम सा खड़ा आज भी ‘सिसक-बिलबिला’ रहा होगा. शिल्पी जैन हत्याकांड के अतीत से परदा हटाने पर उसका दिखाई देने वाला हश्र, साफ कर देता है कि ‘जंगलराज’ में न तो कानून के हाथ अगर “बौने” हैं तो पुलिस को देखकर अब भूतों ने भी भागना बंद कर दिया है.
रातों-रात पटना पुलिस ने पल्टी क्यों मारी...?
“एक थी बदनसीब शिल्पी जैन....और एक था बदकिस्मत गौतम सिंह.. जिनकी लाशों को भी न्याय नहीं मिल सका आखिर क्यों?” स्टेट मिरर हिंदी द्वारा पूछे जाने पर बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड के अपराध, पुलिस, सत्ता-राजनीति की नस-नस से वाकिफ वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण कुमार (Bihar Patna Senior Journalist Indra Bhushan Kumar) कहते हैं, “शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशें जैसे ही कार में मिलीं. तो शुरूआती दौर में या कहिए शुरुआती गरमा-गरमी में तो पटना (बिहार) पुलिस ने हवा में मानना शुरू कर दिया था कि, घटनास्थल और लाशों का हालत देखने से साफ है कि, लड़की के साथ गैंगरेप को अंजाम देकर, उसे और उसके बॉयफ्रेंड गौतम सिंह को कत्ल किया गया होगा.
मामला अचानक तब पलट गया या कहूं कि जैसे ही पुलिस को पता चला कि शिल्पी जैन गौतम हत्याकांड में तो, बिहार में जंगलराज के जन्मदाता लालू प्रसाद यादव के साले और उनकी पत्नी तथा उन दिनों (साल 1999 में) बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भैय्या साधु यादव कहीं अटक सकते हैं! साधु यादव के नाम की घटना में बदबू आते ही, पुलिस ने अपने मुंह कानों और आंखों को गांधी जी के तीन बंदरों की तरह से ढक लिया. बाद में खूब शोर-शराबा हुआ. शिल्पी जैन कांड लालू और राबड़ी देवी व साधु यादव के गले की फांस बनता दिखाई दिया तो, मामले को ठंडा करने के लिए, उसकी जांच सीबीआई के उस अंधेरे काले-थैले में डाल दी, जिसका मुंह किसी भी ऐसे सनसनीखेज कांडों की जांच को अपने अंदर समाने के बाद, फिर शायद ही कभी कहीं खुलता हो.”
पटना (बिहार) जिन बेहद सुलझे मगर मंझे हुए वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण कुमार ने 1990 के दशक में, पटना हाईकोर्ट की देहरी पर लालू प्रसाद यादव के जंगलराज को अपनी आंखों से नंगा होता देखा था. वह आगे कहते हैं, “अगर शिल्पी जैन कांड में लालू यादव के साले और राबड़ी देवी के भैय्या साधु यादव पाक दामन थे, तब फिर शिल्पी जैन हत्याकांड को लेकर दुनिया भर में अपने नाम की भद्द पिटवाने वाले, साधु यादव ने समाज के सामने खुद को बेकसूर-बेदाग साबित करने के लिए, सीबीआई को अपना 'डीएनए' सैंपल क्यों नहीं दिया? बस, यही वह कांटा था जो आज भी बिहार की जनता की आंखों में और खुद साधु यादव के पांव में चुभकर उन्हें सत्ता के गलियारों में बेफिक्री के आलम में नहीं चलने दे रहा है.”
CBI ने कौन सा तीर चला डाला...?
जब मामले की जांच बिहार पटना पुलिस की ओछी-घटिया संदिग्ध हरकतों को देखते हुए उससे छीनकर, सीबीआई को दे ही दी थी तब फिर सीबीआई (Patna Shilpi Jain Gautam Singh Murder CBI) ने कौन सा तीर चला लिया? सीबीआई ने भी तो तीन चार साल बाद यही कहकर कोर्ट में फाइल दाखिल कर दी कि, बिहार पुलिस की तरह ही उसे भी (सीबीआई को) मामला हत्या का न होकर आत्महत्या का लगता है. सवालों के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण कुमार उस कांड की इनसाइड स्टोरी को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “सीबीआई कौन सी आसमान से उतरी हुई कोई फरिश्ता है. जो इस मायावी इंसानी दुनिया से एकदम अलग और पाक-दामन होगी. सीबीआई और पुलिस हैं तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे.
हाईप्रोफाइल मामले CBI को ही क्यों दिए जाते?
अपनी बात को बल देते हुए वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, विशेषकर बिहार राज्य के आपराधिक मामलों में सीबीआई की एंट्री कराई ही तब या उन मामलों में जाती है जब, बवाल का फंदा किसी नेता मंत्री या हाईप्रोफाइल के गले से निकाल कर फेंकना होता है. सीबीआई को केस की जांच देने का मतलब यह कतई नहीं है कि दूध का दूध और पानी का पानी ही हो जाएगा. सीबीआई के हाथों में फेंके गए विशेषकर बिहार के हाईप्रोफाइल मामलों की जांच में तो कालांतर में ज्यादातर यही देखने को मिला है कि, सीबीआई के पास गए मामले वक्त के साथ जमींदोज या कफन-दफन कर दिए जाते हैं. या कहूं कि बिहार राज्य में सीबीआई को वही केस दिए जाते हैं कि जिसमें किसी बड़े आदमी या नेता की गर्दन फंस रही हो और पब्लिक उस नेता के खून की प्यासी हो चुकी हो. सीबीआई को मामले की जांच दे दिए जाने से सीधी-साधी जनता या पीड़ित पक्ष समझता है कि बड़ी एजेंसी (सीबीआई) अब बेहतर जांच करेगी. जबकि सीबीआई की जांच में वही होता है जो हश्र शिल्पी जैन-गौतम सिंह हत्याकांड का हुआ!”
CBI तातकवर अपराधी को बचाने का टूल तो नहीं!
मतलब आप यह कह रहे हैं कि अगर शिल्पी जैन गौतम सिंह हत्याकांड में साधु यादव सी ताकतवर हैसियत वाली शख्शियत का नाम न उछला होता तो, उस लोहमर्षक डबल मर्डर के सच के ऊपर से परदा जरूर उठा दिया जाता और कई बड़े नाम जमाने के सामने नंगे हो जाते? स्टेट मिरर हिंदी द्वारा पूछे जाने पर पत्रकार इंद्र भूषण कुमार बोले, ''नहीं ऐसा नहीं है. साधु यादव की जगह अगर कोई और भी बड़ा या ताकतवर इंसान फंसता तो उसे भी उतने ही बचाने के प्रयास किए जाते जितने साधु यादव के लिए किए गए.''
साधू यादव को DNA सैंपल देने में क्या ऐतराज था?
''मैं यह नहीं कह रहा हूं कि साधु यादव का शिल्पी जैन हत्याकांड या फिर सुसाइड के मामले से कोई वास्ता रहा ही होगा. और जब सीबीआई व पटना पुलिस ने ही फाइलों में लिखकर भर दिया है कि, शिल्पी जैन गौतम सिंह की मौत हत्या नहीं सुसाइड थी. तब फिर मैं कौन होता हूं यह कहने वाला कि वो मर्डर था. और उसमें साधु यादव की कोई प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष संलिप्तता भी रही होगी? मैं तो यह कह रहा हूं कि अगर साधु यादव बेदाग थे तो फिर उन्हें अपना डीएनए टेस्ट कराने में आपत्ति क्यों थी? क्यों नहीं साधु यादव ने अपना डीएनए सैंपल जांच एजेंसियों को दिया? यह मैं नहीं कह रहा हूं बिहार का बच्चा-बच्चा आज भी पूछता है कि, बेगुनाह इंसान होते हुए भी भला साधु यादव क्यों डीएनए सैंपल देने से कन्नी काटते रहे? बिहार की गली गली में आज भी चर्चा है कि दाढ़ी को वही बार-बार टटोल कर देखता है जिसकी दाढ़ी में तिनका होता है.”
दो लाशों के ऊपर आज भी सुलगते सवाल...
चलिए कोई बात नहीं जरूरी नहीं है कि आम आदमी की नजर में दोहरा हत्याकांड दिखाई देने वाला हर मामला मर्डर का ही हो. मर्डर भी आत्महत्या और आत्महत्या सा दिखाई देने वाला अपराध मर्डर में बदल सकता है. मतलब जैसे गवाह और सबूत होंगे वैसी ही तफ्तीश आगे बढ़कर कोर्ट-कचहरी तक पहुंचेगी. शिल्पी जैन-गौतम सिंह की संदिग्ध मौत में कुछ सवाल आज भी अनसुलझे ही हैं... जो न केवल पटना पुलिस को बेलगाम साबित करने के लिए काफी हैं... अपितु सीबीआई की साख को बट्टा लगाने के लिए भी यह सवाल कम नहीं हैं...मसलन
- अगर शिल्पी जैन और गौतम सिंह ने सुसाइड किया तो फिर, उनकी लाशें अधनंगी या नंगी किसने की?
- क्या मुर्दे भी जमाने में कहीं कभी अपने कपड़े उतारा करते हैं?
- मौके से मिले वीर्य की जांच जब उसी बिहार की प्रयोगशाला में हुई जहां की मुख्यमंत्री के भाई की ओर उंगिलयां उठने लगी थीं, तो क्या वीर्य की जांच करने वाली सरकारी प्रयोगशाला अपनी ही मुख्यमंत्री के भाई के खिलाफ रिपोर्ट दाखिल करने की औकात रखेगी?
- शिल्पी जैन और गौतम सिंह अपनी मौत से पहले आखिर क्यों साधु यादव से मिले थे...?
- जब वे दोनों अपनी संदिग्ध मौत से पहले साधु यादव से मिले ही थे. तो फिर साधु यादव ने खुद यह बात क्यों नहीं बताई कि, उन दोनों का उनसे मिलने का मकसद क्या था?
- दोनो की लाशों को लेकर आखिर साधु यादव का नाम आया ही क्यों? और अगर नाम आया था तो फिर बिहार (पटना) पुलिस व सीबीआई ने साधु यादव की डीएनए जांच क्यों नहीं कराई?
- साधु यादव ने सीबीआई को अपने डीएनए का नमूना देने से इनकार कर दिया. ऐसे में सीबीआई ने साधु यादव से इस सवाल का जवाब क्यों नहीं लिया कि जब वे बेगुनाह हैं तब फिर उन्हें अपना डीएनए सैंपल देने में संकोच क्यों हो रहा है?
26 साल बाद भी अनसुलझा सा लोमहर्षक कांड!
कुल जमा जो भी हो, यह तो तय है कि अब से करीब 26 साल पहले बिहार की राजधानी पटना में मिली, शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशों के रहस्य से परदा आज 26 साल बाद भी नहीं उठा है. सिर्फ सीबीआई या पुलिस के राग अलाप देने भर से कि यह मामला सुसाइड का था, से जनमानस के जेहन में उफनते सवालों का जवाब नहीं मिल जाता है, यह तो तय है. सवाल यह भी पैदा होता है कि कहीं किसी दवाब में तो पटना पुलिस या सीबीआई ने शिल्पी जैन गौतम सिंह की संदिग्ध मौत को 'कत्ल' की बजाये कफन दफन करने की नीयत से “सुसाइड” में तो नहीं बदल डाला होगा?
मगर यह तो शंकाएं और आशंकाएं हैं. कोई भी जांच एजेंसी शंका-आशंकाओं पर नहीं चला करती है. मुकदमा तो सबूत और गवाहों के कंधों पर लदकर कानून की देहरी तक पहुंचता है. ऐसा भी कह देना सही नहीं होगा कि शिल्पी जैन की संदिग्ध मौत सुसाइड नहीं हो सकती है. और यह भी कहना सरासर अनुचित हो सकता है कि शिल्पी जैन का कत्ल नहीं किया गया होगा? लेकिन अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से हासिल कुछ नहीं होगा. क्योंकि 'जांच पूरी और मुकदमा आत्महत्या का निकला' लिखकर सीबीआई तो केस को दाखिल कर चुकी है. अब किसकी जुर्रत जो सीबीआई की लिखी फाइल को टस से मस कर जाए.
संदिग्ध मौतों ने किसी की किस्मत खोल दी...!
क्या शिल्पी जैन लोमहर्षक कांड का असर लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और साधु यादव पर भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा है? सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण कुमार कहते हैं, “असर तो इतना ज्यादा पड़ गया होगा कि, नीतीश कुमार तभी से सूबे के मुख्यमंत्री की सीट पर जमे हुए हैं जब से, लालू-राबड़ी परिवार की पकड़ उनके अपने ही जंगलराज ने बिहार में ढीली कराई है. लालू यादव और राबड़ी देवी की पकड़ अगर बिहार की जनता पर ढीली न पड़ी होती तो भला क्या मजाल जो नीतीश कुमार सूबे के सिंहासन पर मुख्यमंत्री बनकर बैठ पाते. उन्होंने (लालू राबड़ी Lalu Prasad Yadav Rabari Devi) जो मौका दिया उसे मौकापरस्त नीतीश बाबू (Bihar Chief Minister Nitish Kumar) ने पलक झपकते ही लपक लिया. जबसे बिहार के शासन की बागडोर नीतीश कुमार ने झटकी है, तब से देख लीजिए लालू यादव राबड़ी देवी कहां हैं और कहां विराजे हुए हैं नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar). इसमें हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या? बिहार की राजनीति का हर हाल आज जमाने के सामने खुले में बजबजा रहा है.”