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Mir Osman Ali Khan: दौलत इतनी कि अंबानी-अडानी भी लजा जाएं, पीता था मेहमानों की छोड़ी सिगरेट; कहानी हैदराबाद के आखिरी निजाम की...

हैदराबाद के सातवें निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान, जिनकी संपत्ति 17.47 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा थी, दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते थे. फिर भी वो बेहद सादा और कंजूस जीवन जीते थे. वे मेहमानों की अधजली सिगरेट पीते, 35 साल एक ही टोपी पहनते और टिन की थाली में खाना खाते थे. लेकिन उन्होंने हैदराबाद को कई ऐतिहासिक इमारतें दीं.

Mir Osman Ali Khan: दौलत इतनी कि अंबानी-अडानी भी लजा जाएं, पीता था मेहमानों की छोड़ी सिगरेट; कहानी हैदराबाद के आखिरी निजाम की...
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 19 Jun 2025 3:44 PM

मीर उस्मान अली ख़ान, हैदराबाद के सातवें और अंतिम निज़ाम, जिनकी दौलत कभी इतनी थी कि आज अंबानी और अडानी भी लजा जाएं. जी हां, एक दौर में उनकी दौलत 17 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा आंकी गई थी और वो दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में शुमार रहे. उस दौर के 17 लाख करोड़ रुपयों की अगर आज से तुलना की जाए तो जो नंबर आएगा उससे गिनने में कई कैलकुलेटर भी शायद फेल हो जाएं.

लेकिन उनकी ज़िंदगी, इस अकूत धन-दौलत के बावजूद, बेहद सादगी और ताज्जुब से भरी थी. वही शख्स जो जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी तक फंडिंग दे सकता था, खुद टिन की थाली में खाना खाता था, मेहमानों की छोड़ी हुई सिगरेट के टुकड़े पीता था, और 35 साल तक एक ही फटी हुई टोपी पहनता रहा.

लेकिन उस्मान अली ख़ान सिर्फ दौलत या तंगी के प्रतीक नहीं थे, वो हैदराबाद की तालीम, इन्साफ, अस्पतालों, और बुनियादी ढांचे के निर्माता भी थे. उन्होंने शहर को महलों से नहीं, पुलों, स्कूलों, यूनिवर्सिटियों और इंसाफ की इमारतों से सजाया. एक सुल्तान जिसने अपनी विरासत को पत्थरों में नहीं, शहर की रगों में जिंदा रखा. उनसे जुड़े कई ऐसे किस्‍से हैं जिनपर यकीन करना मुश्किल है. ऐसे ही कुछ किस्‍से हम आपके लिए यहां लेकर आए हैं.

दौलत से लबालब, ज़िंदगी से फकीर

मीर उस्मान अली खान - नाम सुनते ही एक भव्य महल, शाही भोज और बेशुमार हीरे-जवाहरात की तस्वीर दिमाग में उभरती है. लेकिन, हकीकत इससे बिल्कुल जुदा है. दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में शुमार होने के बावजूद मीर उस्मान अली खान का जीवन था एक फकीर जैसा - सादा, संकोची और कभी-कभी तो अजीब हद तक कंजूस. उन्होंने भारत की रियासत हैदराबाद पर 1911 से 1948 तक हुकूमत की और अपनी संपत्ति को उस ऊंचाई पर पहुंचाया, जो उस दौर में कल्पना से परे थी - 17.47 लाख करोड़ रुपये (230 अरब डॉलर)!

शाही ताज, मगर दिल से सूफ़ी

उनके पास था दुनिया का सबसे बड़ा 185 कैरेट का जैकब डायमंड, जो आज 1350 करोड़ रुपये से ज्यादा का है. उनके खज़ाने में 400 मिलियन डॉलर की ज्वेलरी, सैकड़ों किलो सोना और चांदी, दर्जनों Rolls-Royce कारें, और इतना धन था कि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में उनका नाम ऊपर आता. लेकिन...वह पहनते थे 35 साल तक वही घिसी हुई टोपी, खाते थे टिन की थाली में, और न कभी कपड़े प्रेस करवाए, न कभी नए खरीदे.

मेहमानों की अधजली सिगरेट, यही थी उनकी ‘शाही’ आदत

Dominique Lapierre और Larry Collins की मशहूर किताब Freedom at Midnight में लिखा है कि नवाब अक्सर मेहमानों की छोड़ी हुई सिगरेट स्टब्स को इकट्ठा करके पीते थे. ऐसा करते समय उन्हें कोई शर्म नहीं होती, बल्कि वो इसे अपनी 'सादगी' मानते थे. वो खुद कभी नए सिगरेट नहीं खरीदते थे. उनके लिए तंबाकू भी रियासत से 'उधार' ली गई चीज़ थी.

Rolls Royce खड़ी रही, वो खुद खटारा गाड़ी में घूमे

निज़ाम के पास दर्जनों लग्ज़री गाड़ियां थीं. मगर वो अकसर एक पुरानी, खटारा सी गाड़ी में घूमते थे. कई बार जब किसी को अच्छी गाड़ी में घूमते देखते, तो हंसते हुए कह देते - 'ये गाड़ी मुझे दे दो'. लोग डर के मारे दे भी देते थे. मगर नवाब उस गाड़ी को कभी इस्तेमाल नहीं करते.

5000 किलो सोना दान देने का मशहूर किस्‍सा, लेकिन...

मीर उस्मान अली ख़ान को लेकर एक कहानी जो सबसे ज्‍यादा मशहूर है, वा है कि 1965 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, जब भारत की अर्थव्यवस्था संकट में थी, तब मीर उस्मान अली खान ने 5 टन सोना दान में दे दिया था. हालांकि बाद में यह केवल कहानी ही नकिली क्‍योंकि साल 2020 में आरटीआई से जो नई जानकारी सामने आई उसने इस कहानी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया. RTI दस्तावेज़ों के मुताबिक, निज़ाम ने कोई दान नहीं दिया था, बल्कि नेशनल डिफेंस गोल्ड स्कीम के तहत 425 किलो सोने का निवेश किया था, जिस पर उन्हें 6.5% सालाना ब्याज भी मिला. यानी यह एक आर्थिक योगदान नहीं बल्कि लाभकारी निवेश था. इस बात की पुष्टि 2020 में खुद मीर उस्मान अली ख़ान के पोते नवाब नजफ अली खान ने भी की, जिससे वर्षों से चली आ रही "सोने का दान" वाली कथा एक राजनीतिक और भावनात्मक मिथक साबित हुई.

धार्मिक आस्था और अनुशासन

मीर उस्मान अली खान एक कड़े अनुशासित और धार्मिक मुसलमान थे. वो दिन में पांच वक्त नमाज़ पढ़ते, ज़मीन पर बिछे एक छोटे से चटाई पर सोते और कभी शानो-शौकत को अपनी इबादत के बीच नहीं आने देते थे. The Guardian में पत्रकार Luke Harding ने उन्हें 2001 में "A frail, tiny man… who sat cross-legged in his room surrounded by overflowing wastebaskets" कहा.

आखिरी दिन तक ‘कंजूस’ की उपाधि नहीं गई

मीर उस्मान अली खान की ज़िंदगी की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इतनी अकूत दौलत होने के बावजूद, वो आख़िरी सांस तक उस दौलत से जुड़े नहीं रहे. उनकी मौत 1967 में हुई, और तब भी वो उसी कमरे में रहते थे जहां चारों ओर फटी पुरानी किताबें, अखबारों की कतरनें और कूड़े के ढेर थे.

इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के क्षेत्र में किए गए उनके कामों को कभी भी भूलाया नहीं जा सकता. चाहे वो हैदराबाद हाईकोर्ट हो या उस्‍मानिया यूनिवर्सिटी. हैदराबाद का मशहूर ओस्मानिया अस्पताल भी उनकी ही देन है. आइए उनके ऐसे ही कुछ कामों पर नजर डालते हैं...

उस्मान सागर और हिमायत सागर: बाढ़ से सुरक्षा की दूरदर्शिता

1908 की भयानक मूसी नदी की बाढ़ के बाद, मीर उस्मान अली ख़ान ने सिटी इम्प्रूवमेंट बोर्ड की स्थापना की. इसी के तहत उस्मान सागर और हिमायत सागर जैसे दो प्रमुख बांध बनाए गए (1913–1927). ये बांध न केवल हैदराबाद को बाढ़ से बचाने के लिए बनाए गए, बल्कि दशकों तक पीने के पानी का मुख्य स्रोत भी रहे.

ओस्मानिया अस्पताल और निज़ामिया यूनानी अस्पताल

1920 के दशक में बनाए गए ओस्मानिया जनरल हॉस्पिटल और सरकारी निज़ामिया यूनानी हॉस्पिटल आज भी हैदराबाद की स्वास्थ्य व्यवस्था के स्तंभ हैं. ओस्मानिया अस्पताल भारत के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में से एक है और यूनानी चिकित्सा के लिए निज़ामिया अस्पताल आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

हैदराबाद हाईकोर्ट और ओस्मानिया यूनिवर्सिटी

1919 में बनाए गए हैदराबाद हाईकोर्ट की स्थापना भी मीर उस्मान अली ख़ान की ही देन है. उस दौर में यह भारत के कुछ गिने-चुने रियासतों में से एक था, जहां उच्च न्यायालय की व्यवस्था थी. यह न केवल कानून व्यवस्था का प्रतीक बना, बल्कि पुरानी हैदराबाद की पहचान का भी हिस्सा बन गया. 1918 में स्थापित ओस्मानिया यूनिवर्सिटी मीर उस्मान अली ख़ान की सबसे बड़ी बौद्धिक देन मानी जाती है. इसका आर्ट्स कॉलेज 1935 में पूरा हुआ और आज भी अपनी Indo-Saracenic शैली में स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है. यह यूनिवर्सिटी भारत की सबसे बड़ी शैक्षणिक संस्थाओं में शामिल है.

काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन और बेगमपेट एयरपोर्ट

1916 में बना काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन और 1938 में स्थापित बेगमपेट एयरपोर्ट, हैदराबाद को शेष भारत से जोड़ने वाले दो अहम स्तंभ थे. बेगमपेट एयरपोर्ट भले अब पुराना हो चुका हो, लेकिन उस समय यह भारत के सबसे पहले एयरोड्रोम में से एक था. वहीं काचीगुड़ा स्टेशन आज भी रेल नेटवर्क का मुख्य केन्द्र बना हुआ है.

राजनीतिक विवाद और ऑपरेशन पोलो

1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तो निज़ाम उस्मान अली ख़ान ने हैदराबाद को स्वतंत्र रियासत बनाए रखने की कोशिश की. इस निर्णय के कारण उन्हें दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा बार-बार निशाना बनाया गया. 1948 में ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया. हालांकि, इस राजनीतिक निर्णय के बावजूद, उनके वास्तविक योगदान को नकारना मुश्किल है. आज भी ओस्मानिया यूनिवर्सिटी में हजारों छात्र पढ़ते हैं, सड़कों पर काचीगुड़ा स्टेशन गूंजता है, और ओस्मानिया अस्पताल लाखों की जान बचाता है.

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