ISI के पुराने दोस्त ने ही कैसे खोदी पाकिस्तान की कब्र? तहरीक-ए-लब्बैक को फिर किया बैन

पाकिस्तान एक बार फिर अपने ही बनाए जाल में फंस गया है. जिस संगठन को कभी आईएसआई और सत्ता प्रतिष्ठान ने सियासी औजार की तरह इस्तेमाल किया था, वही अब राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है. तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP), वह कट्टरपंथी संगठन, जो कभी सरकारों को झुकाने की ताकत रखता था, आज पाकिस्तान की स्थिरता को निगलने पर आमादा है.;

( Image Source:  x-@FarazPervaiz3 )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 24 Oct 2025 12:41 PM IST

इस्लामाबाद की गलियों में एक बार फिर वही पुराना मंजर लौट आया. नारों की गूंज, पत्थरों की बरसात, और पुलिस की गोलियों की आवाज़. फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार विरोध का सामना कोई विदेशी ताकत नहीं, बल्कि पाकिस्तान की अपनी ही सरकार कर रही थी. तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान, वही संगठन, जिसे कभी सेना और खुफिया एजेंसी ISI ने अपने राजनीतिक हित साधने के लिए पाल-पोसकर बड़ा किया था, आज उसी पाकिस्तान के लिए आंतरिक खतरे में बदल चुका है.

फेडरल कैबिनेट ने आखिरकार आतंकवाद-रोधी अधिनियम 1997 के तहत टीएलपी को प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया है. सरकार ने माना कि संगठन की हिंसक गतिविधियां और भड़काऊ प्रदर्शन देश की स्थिरता और कानून-व्यवस्था के लिए सीधा खतरा बन चुके हैं.

कैसे हुई तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान की शुरुआत

टीएलपी की कहानी पाकिस्तान की उस विफल नीति का आईना है, जिसमें राज्य ने कट्टरपंथ को सियासी औजार बना लिया. 2015 में ख़ादिम हुसैन रिज़वी ने इस संगठन की नींव रखी. एक धार्मिक मौलवी, जो ईशनिंदा के मुद्दे को भड़काकर जनता में धर्म की आड़ में आक्रोश पैदा करता था. उस दौर में पाकिस्तान की सेना और आईएसआई के लिए टीएलपी एक रणनीतिक संपत्ति  थी. एक ऐसा संगठन, जो नवाज़ शरीफ़ जैसे लिबरल राजनेताओं को कमजोर करने में मददगार साबित हो.

2017 में सरकार को टेकने पड़े घुटने

2017 में जब टीएलपी ने इस्लामाबाद में सरकार के खिलाफ विशाल धरना दिया, तो उसने साबित कर दिया कि वह सिर्फ एक धार्मिक संगठन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक शक्ति बन चुका है. उस समय सरकार झुक गई, सेना ने मध्यस्थ बनकर उसे वैधता दे दी. लेकिन जो संगठन भीड़ की ताकत से फैसले करवाने की क्षमता रखता हो, वह एक दिन काबू से बाहर हो ही जाता है और वही आज पाकिस्तान भुगत रहा है.

जब सरकार खुद निशाने पर आ गई

समय के साथ टीएलपी की भूमिका बदल गई. जिस संगठन को कभी “धार्मिक भावनाओं का रक्षक” बताया गया था, उसने अब राज्य को ही दुश्मन घोषित कर दिया. साल 2021 में इसके प्रदर्शनों में कई पुलिसकर्मियों की जान गई, सरकारी संपत्तियां जलीं, और देशभर में हिंसा फैल गई. टीएलपी ने फ्रांस के खिलाफ आंदोलन चलाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान को शर्मिंदा किया. उसके बाद सरकार ने अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाया, लेकिन कुछ महीनों में ही वह हटा लिया गया. इस शर्त पर कि संगठन भविष्य में हिंसा नहीं करेगा. मगर कट्टरपंथ की राजनीति का इतिहास बताता है कि ऐसे वादे सिर्फ कागज़ों पर टिकते हैं, जमीन पर नहीं.

सरकार की मजबूरी, सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी

अब जब हालात बेकाबू हो चुके हैं, तो सरकार ने टीएलपी पर दोबारा प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार की सिफारिश और सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि टीएलपी आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है. बैठक में बताया गया कि संगठन के प्रदर्शनों में न केवल आम लोग बल्कि सुरक्षा बलों के जवान भी मारे गए. फेडरल कैबिनेट ने सर्वसम्मति से फैसला लिया कि टीएलपी को राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी प्राधिकरण (NACTA) की सूची में जोड़ा जाए. उसी सूची में, जिसमें पहले से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और बलूच लिबरेशन आर्मी जैसे आतंकी संगठन शामिल हैं. यानी अब टीएलपी औपचारिक रूप से पाकिस्तान के अपने बनाए आतंकवाद के क्लब का हिस्सा बन गई है.

जब पालने वाला खुद शिकार बन गया

पाकिस्तान की सत्ता व्यवस्था ने पिछले कई दशकों से कट्टरपंथ को नियंत्रित करने के बजाय उसे पोषित किया. सेना ने धार्मिक ताकतों को कभी भारत के खिलाफ, कभी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया.  परंतु आज वही ताकत राज्य की नींव हिला रही है. टीएलपी इसका सबसे ताजा और सबसे खतरनाक उदाहरण है. विश्लेषकों के अनुसार, पाकिस्तान आज “भस्मासुर सिंड्रोम” से जूझ रहा है, जिस राक्षस को उसने खुद बनाया, वही अब उसे निगलने लगा है और यह सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक विनाश का संकेत है, क्योंकि टीएलपी की जड़ें अब साधारण जनता के दिलों में उतर चुकी हैं. मदरसे, मस्जिदें और सोशल मीडिया, तीनों उसके विचारों के वाहक बन चुके हैं.

क्या प्रतिबंध से मिटेगा कट्टरपंथ का ज़हर?

सरकार का यह प्रतिबंध प्रतीकात्मक कदम है, लेकिन कट्टर विचारधारा पर ताले नहीं लगते. टीएलपी का नेटवर्क इतना गहरा है कि उसे सिर्फ कानूनी आदेशों से खत्म करना नामुमकिन है. इसके लिए पाकिस्तान को अपने राजनीतिक डीएनए में बदलाव करना होगा.  उस सोच को त्यागना होगा, जो धार्मिक उन्माद को सत्ता के लिए साधन मानती रही है. जब तक पाकिस्तान कट्टरपंथ और सत्ता की साठगांठ खत्म नहीं करेगा, तब तक टीएलपी जैसे संगठन एक के बाद एक जन्म लेते रहेंगे. यह प्रतिबंध शायद सरकार की मजबूरी है, पर यह उस आत्मघाती नीति की स्वीकारोक्ति भी है, जिसने देश को बारूद के ढेर पर बैठा दिया है.

Similar News