भूकंप का कहर या तालिबान का जुल्म? पुरुष रेस्क्यू वर्कर्स महिलाओं को छू नहीं सकते, घायलों की अनदेखी; कपड़ों से घसीटकर निकाले गए शव

अफगानिस्तान भूकंप ने न सिर्फ़ हज़ारों जानें लीं बल्कि तालिबान शासन के लैंगिक नियमों ने महिलाओं को मौत और जीवन के बीच तड़पने को मजबूर कर दिया. बचावकर्मी उन्हें छू तक नहीं सके, शवों को कपड़ों से घसीटकर निकाला गया. शिक्षा, नौकरी और आज़ादी से वंचित अफगानी महिलाएं अब आपदाओं में भी “अदृश्य ज़िंदगी” जीने को मजबूर हैं.;

( Image Source:  sora ai )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 6 Sept 2025 10:05 AM IST

अफगानिस्तान में आए भीषण भूकंप ने न सिर्फ़ हज़ारों जानें ले लीं, बल्कि सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक और धार्मिक मान्यताओं ने महिलाओं को मौत और जीवन के बीच तड़पने के लिए छोड़ दिया.

6 तीव्रता वाले इस भूकंप और उसके बाद आए आफ्टरशॉक्स ने कम से कम 2,200 लोगों की जान ले ली, लेकिन मलबे में फंसी महिलाओं की पीड़ा और भी भयावह थी. वजह - तालिबानी ‘जेंडर नियम’ जिनके चलते पुरुष बचावकर्मी महिलाओं को छू तक नहीं सकते.

"हमसे पूछा तक नहीं गया"

न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से कुनार प्रांत की बीबी आयशा ने बताया, “उन्होंने हमें एक कोने में बैठा दिया और हमें पूरी तरह भुला दिया.” आयशा और उनकी गांव की अन्य महिलाएं मलबे में घायल और खून से लथपथ बैठी रहीं, लेकिन किसी ने उन्हें पानी तक नहीं दिया. पुरुष और बच्चों को तुरंत बाहर निकाला गया, लेकिन महिलाओं को छूने से बचने के लिए उन्हें अलग-थलग कर दिया गया.

कपड़ों से घसीटकर निकाले गए शव

स्वयंसेवक तहेज़ीबुल्लाह मुहाज़ेब ने बताया कि बचाव दल की मेडिकल टीम के पुरुष सदस्य महिलाओं को मलबे से निकालने में हिचक रहे थे. “ऐसा लग रहा था जैसे महिलाएं अदृश्य हों… पुरुषों और बच्चों को प्राथमिकता दी गई, जबकि महिलाएं खून बहाते हुए एक ओर इंतज़ार करती रहीं.” जिन महिलाओं की मौत हो गई, उनके शवों को पुरुषों ने केवल कपड़ों से खींचकर बाहर निकाला, ताकि उनकी त्वचा को छूना न पड़े.

तालिबान शासन और महिलाओं की अदृश्य ज़िंदगी

भूकंप ने अफगानी महिलाओं की वह हकीकत उजागर कर दी है, जिसे दुनिया शायद देखना ही नहीं चाहती. तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से महिलाओं की आज़ादी लगातार छीनी जा रही है.

  • लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने की अनुमति नहीं.
  • बिना पुरुष साथी (मेहरम) के लंबी दूरी की यात्रा पर रोक.
  • गैर-सरकारी संगठनों और मानवीय संगठनों में महिलाओं के काम पर प्रतिबंध.
  • संयुक्त राष्ट्र से जुड़े संगठनों की महिला कर्मचारियों को तक धमकियां मिल चुकी हैं.

भूकंप और पितृसत्ता का दोहरा बोझ

अफगानिस्तान की पहाड़ी धरती हिलने से हजारों घर मलबे में तब्दील हो गए. सड़कें कट गईं और गांव दुनिया से कट गए. लेकिन इस आपदा ने यह भी दिखा दिया कि वहां महिलाएं बचाव योजनाओं में कहीं दर्ज ही नहीं हैं. मलबे में सांस ले रही महिलाओं को छूना “हराम” मानने की सोच ने दर्जनों को जिंदा दफना दिया. जिनके शव मिले, उन्हें भी मानव गरिमा से नहीं, बल्कि “शरीर को छुए बिना” घसीट कर निकाला गया.

आंकड़े और हकीकत

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 2,200 से अधिक मौतें और 3,600 से अधिक घायल दर्ज किए जा चुके हैं. लेकिन महिला पीड़ितों का अनुपात कोई बताने को तैयार नहीं. क्योंकि इस व्यवस्था में महिलाएं आंकड़ों का हिस्सा ही नहीं हैं - वे “अनकही मौतों” का प्रतीक बन चुकी हैं.

भूकंप की तबाही से कहीं बड़ा ज़ख्म अफगानी महिलाओं की अदृश्य ज़िंदगी है. न शिक्षा, न नौकरी, न आज़ादी - और अब न ही बचने का हक़. धरती के हिलने से टूटे मकान तो कभी दोबारा बनाए जा सकते हैं, लेकिन तालिबानी सोच से टूटी महिलाओं की उम्मीदों का पुनर्निर्माण आसान नहीं होगा.

Full View

Similar News