तुर्की में क्यों नहीं हो पाई पाकिस्तान-अफगानिस्तान की सुलह, आखिर क्यों नहीं झुका तालिबान?
र्की की राजधानी इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच दूसरी उच्चस्तरीय राजनीतिक वार्ता करीब नौ घंटे तक चली. बातचीत का मकसद दोनों देशों के बीच बढ़ती तनाव की आग को शांत करना और सीमा-पार हो रहे सुरक्षा और मानवीय मामलों पर किसी तरह की सहमति बनाना था. हालांकि कोई ठोस, कागज़ी समझौता सामने नहीं आया.;
तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में शनिवार की शाम पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधि आमने-सामने बैठे. बातचीत का माहौल भले ही ठंडा-तनावपूर्ण था, लेकिन दोनों देशों ने तय किया कि वार्ता जरूरी है. करीब नौ घंटे चली इस बैठक में दोनों देशों ने सीमा पर तनाव घटाने और व्यापार बहाली जैसे मुद्दों पर बातचीत तो की, लेकिन किसी ठोस समझौते तक नहीं पहुंच सके.
असल टकराव तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों को लेकर रहा, जहां तालिबान सरकार अपने रुख से ज़रा भी नहीं झुकी. पाकिस्तान चाहता था कि अफगान धरती से आतंकी घुसपैठ पर सख्त कार्रवाई हो, लेकिन काबुल ने इसे अपनी संप्रभुता का मामला बताते हुए संयुक्त निगरानी व्यवस्था से इनकार कर दिया.
आतंकवाद और सीमा सुरक्षा पर हुई बात
वार्ता के दौरान सबसे कड़ा और संवेदनशील मुद्दा सीमा पार आतंकी गतिविधियों का था. पाकिस्तान का आरोप था कि अफगान धरती से ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ (TTP) की गतिविधियां उसके अंदरूनी इलाकों को अस्थिर कर रही हैं. इसीलिए पाकिस्तान ने मांग की कि एक ऐसी निगरानी प्रणाली बने जो हर सीमा पार हलचल पर नजर रख सके. लेकिन अफगानिस्तान ने इस पर सख्त रुख अपनाया. काबुल का कहना था कि ‘जॉइंट बॉर्डर पेट्रोल’ उसकी संप्रभुता में दखल जैसा होगा. हालांकि, कुछ राहत की बात यह रही कि दोनों देशों ने “खुफिया जानकारी साझा करने के लिए आपसी सहमति वाले रास्ते” तलाशने पर हामी भरी. यह संकेत था कि दरवाज़ा बंद नहीं हुआ, बस आधा खुला छोड़ा गया है.
मानवाधिकार और व्यापार के मुद्दे भी रहे प्रमुख
बात सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं रही. सीमा पर फंसे लगभग 1,200 ट्रकों का मुद्दा भी गर्माया, जो दोनों देशों के बीच व्यापार रुका होने का सबूत बन गए हैं. पाकिस्तान ने व्यापारिक नुकसान का हवाला देते हुए सीमाओं को सीमित तौर पर खोलने और चरणबद्ध वापसी की योजना रखी. लेकिन अफगानिस्तान ने चेतावनी दी.
सुरक्षा टास्क ग्रुप पर बात
अगर “अफगान शरणार्थियों” की जबरन वापसी की कोशिश हुई तो इससे न केवल मानवीय संकट गहराएगा, बल्कि पहले से ही कमजोर अफगान अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा. बैठक के दौरान यह बात भी सामने आई कि तुर्की और कतर मिलकर एक संयुक्त व्यापार और सुरक्षा टास्क ग्रुप बनाने पर विचार कर रहे हैं, जो धीरे-धीरे सीमा पर व्यापार बहाली और सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करेगा.
सख्त बयान, लेकिन फिलहाल शांति
इस वार्ता के बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने एक कड़ा बयान भी दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर बातचीत बेअसर रही और समझौता नहीं हुआ तो पाकिस्तान के पास सैन्य विकल्प भी मौजूद हैं और सीमावर्ती संघर्ष की नौबत आ सकती है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल दोनों पक्ष कतर में हुए युद्धविराम का पालन कर रहे हैं और उसके बाद कोई बड़ी झड़प दर्ज नहीं हुई.