'आतंक पर चुप्पी नहीं, जवाब जरूरी है’, ऑक्सफोर्ड में भारतीय छात्र ने पाक को कहा 'नापाक'

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक डिबेट में एक भारतीय छात्र ने पाकिस्तान को करारा जवाब देते हुए कहा कि मुंबई आतंकी हमले का दर्द आज भी याद है, इसलिए आतंक के खिलाफ भारत के रुख पर मुझे गर्व है. भावनात्मक तर्कों और तथ्यों के साथ दी गई यह प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई है. भानुशाली के इस जवाब को सुनकर लोग तरह तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं.;

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जब भारत के आतंक-विरोधी रुख को ‘लोकलुभावनवाद’ कहकर हल्का करने की कोशिश होती है, तब इतिहास की पीड़ा बोल उठती है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक बहस में भारतीय छात्र की आवाज इसी पीड़ा की गवाही बनी. भारतीय छात्र ने कहा, 'मुंबई आतंकी हमले के बाद मां की कांपती आवाज़, पिता के जख्मी जबड़े और मुंबईकरों की तीन रातों की बेनिद्रा आज भी उसकी स्मृति में जिंदा हैं. ऐसे में अगर कोई पाकिस्तान के प्रति भारत के सख्त रुख को ‘पॉपुलिज़्म’ कहे, तो उस पर चुप रहना संभव नहीं. यह बयान भावनात्मक अपील भर नहीं था, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति का नैतिक बचाव भी था.

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दरअसल, मुंबई में जन्मे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लॉ स्टूडेंट विरांश भानुशाली हाल ही में ब्रिटेन के प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनियन में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर एक हाई-प्रोफाइल डिबेट में अपने दमदार भाषण सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं. उनके डिबेट का विषय था: "पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति सुरक्षा नीति के लिए एक लोकप्रिय दिखावा है." इस प्रस्ताव के खिलाफ तर्क देते हुए, भानुशाली ने मजबूती से तर्क दिया कि इस्लामाबाद के प्रति नई दिल्ली का दृष्टिकोण राजनीतिक लोकलुभावनवाद के बजाय वास्तविक राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं पर आधारित है. यह डिबेट 27 नवंबर को हुई, जो मुंबई आतंकी हमले की बरसी के एक दिन बाद था.

मूसा के दावों की हवा उड़ा दी

भारतीय छात्र ने पाकिस्तानी ऑक्सफोर्ड यूनियन के अध्यक्ष मूसा हरराज ने अपने तर्कों के आधार पर किया था कि भारत की पाकिस्तान नीतियां चुनावी दिखावे से प्रेरित हैं. जवाब में, भानुशाली ने भारत पर हुए कई आतंकी हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रियाओं को गिनाते  26/11 मुंबई हमलों के बाद राजनयिक संयम से लेकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद सोची-समझी सैन्य कार्रवाई तक का हवाला देते हुए मूसा के दावों की हवा उड़ा दी.

आतंक को पनाह देने वाला नैतिक कैसे?

भानुशाली ने कहा कि ये हमले चुनाव चक्र के साथ नहीं हुए, जिससे लोकलुभावनवाद का तर्क कमजोर पड़ता है. उन्होंने पठानकोट, उरी और पुलवामा सहित अन्य बड़े हमलों का जिक्र किया और जोर देकर कहा कि जो देश आतंकी नेटवर्क को पनाह देता है, वह नैतिक श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकता.

कभी-कभी पाक की नाकामी का हमें देना पड़ता है

भानुशाली ने पठानकोट, उरी और पुलवामा सहित अन्य बड़े हमलों का ज़िक्र करते हुए कहा, "हमने यह मुश्किल तरीके से सीखा है, आप ऐसे देश को शर्मिंदा नहीं कर सकते जिसे कोई शर्म नहीं है." भानुशाली ने हरराज के साथ एक हल्के-फुल्के पल भी साझा किए और बताया कि उनके चीफ ऑफ स्टाफ के तौर पर उन्होंने उन्हें अपना भाषण लिखने में मदद की थी. उन्होंने कहा, "मैं खुशी-खुशी यह मानूंगा कि कभी-कभी एक पाकिस्तानी की नाकामी को ठीक करने के लिए एक भारतीय की जरूरत पड़ती है."

मुंबई निवासी भानुशाली ने अपने भाषण की शुरुआत 26/11 मुंबई हमले के अपने व्यक्तिगत अनुभव से की. उन्होंने याद किया कि आतंकवादियों के लक्ष्यों में से एक छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) था, जहां से उनकी चाची लगभग हर शाम गुजरती थीं. "इत्तेफाक से या किस्मत से, उस रात उसने घर जाने के लिए दूसरी ट्रेन ली और उन 166 लोगों की किस्मत से बाल-बाल बच गई जो नहीं बच पाए. दूसरा टारगेट ताज महल पैलेस होटल था, जहां मेरे सबसे अच्छे दोस्त के पिता, जो नेशनल सिक्योरिटी गार्ड में मेजर थे, जलती हुई आग में रस्सी के सहारे उतरने वाले पहले कमांडो में से एक थे."

जब तीन रात लगातार मुंबई और मैं सो नहीं पाया

उन्होंने याद किया कि उस समय वह स्कूल में पढ़ते थे, "जब मेरा शहर जल रहा था, तो मैं टीवी से चिपका हुआ था. मुझे अपनी मां की आवाज में फोन पर डर याद है, मेरे पिता के कसे हुए जबड़े में तनाव याद है. तीन रातों तक मुंबई नहीं सोया, और न ही मैं."

आप समझ सकते हैं मुझे गुस्सा क्यों आता है?

भानुशाली ने आगे बताया कि उनके घर से सिर्फ 200 मीटर दूर एक सबअर्बन रेलवे स्टेशन पर 1993 के सीरियल ब्लास्ट में बमबारी हुई थी, जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे. "मैं इन त्रासदियों की छाया में बड़ा हुआ हूं. इसलिए, जब कोई कहता है कि पाकिस्तान के प्रति भारत का कड़ा रुख सिर्फ सुरक्षा नीति के नाम पर लोकलुभावनवाद है, तो आप समझ सकते हैं कि मुझे गुस्सा क्यों आता है."

पाकिस्तान से तुलना

भारतीय छात्र ने भारत के कामों की तुलना पाकिस्तान के कामों से भी की. आगे कहा, 'अगर आप सुरक्षा के नाम पर असली लोकलुभावनवाद देखना चाहते हैं, तो रैडक्लिफ लाइन के उस पार देखें. जब भारत युद्ध लड़ता है, तो हम पायलटों से जानकारी लेते हैं. पाकिस्तान में वे कोरस को ऑटोट्यून करते हैं. आप अपने लोगों को रोटी नहीं दे सकते, इसलिए आप उन्हें सर्कस दिखाते हैं. यही वह जादू है जिससे युद्ध के डर से मास पोवर्टी निजी शक्ति में बदला जाता है."

भानुशाली ने जोर देकर कहा कि दिल्ली युद्ध नहीं चाहता. "हम शांत पड़ोसी बनना चाहते हैं. हम प्याज और बिजली का व्यापार करना चाहते हैं, लेकिन जब तक वह देश जो खुद का बचाव करता है, आतंकवाद को विदेश नीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना बंद नहीं कर देता, तब तक हम अपनी तैयारी रखेंगे. अगर यह लोकलुभावनवाद है, तो मैं एक लोकलुभावनवादी हूं."

कौन हैं विरांश भानुशाली?

भानुशाली अभी सेंट पीटर कॉलेज ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ज्यूरिस्प्रूडेंस (LLB), इंग्लिश लॉ विद लॉ स्टडीज इन यूरोप में BA कर रहे हैं. वह NES इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई के पूर्व छात्र भी हैं. वह ऑक्सफोर्ड यूनियन के प्रेसिडेंट के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में काम करते हैं और यूनियन में इंटरनेशनल ऑफिसर और डिप्टी रिटर्निंग ऑफिसर जैसे पदों पर भी रह चुके हैं. साथ ही उन्होंने भारत के सॉलिसिटर जनरल के ऑफिस में इंटर्नशिप भी की है. बहस में उनकी टिप्पणियों के वीडियो को सोशल मीडिया पर लाखों व्यूज के साथ्ज्ञ भारत और विदेश में दर्शकों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं

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