Nobel Peace Prize: क्या नोबेल प्राइज को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का बदल गया मन?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीबीसी के अमेरिकी सहयोगी सीबीएस न्यूज की ओर से नोबेल प्राइज को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में कहा कि मुझे अब इस मामले में कोई रुचि नहीं है. लेकिन जो लोग यह पूछते हैं कि क्या ट्रम्प का नोबेल पुरस्कार को लेकर मन बदल गया है? तो इसका जवाब है, उन्होंने अपना मन नहीं बदला है, कहने का अपना तरीका बदल लिया है.;
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नोबेल प्राइज को लेकर कई सालों से समय समय पर सुर्खियों में बने रहते हैं. मई और जून 2025 में उनकी ये महत्वाकांक्षा एक बार फिर उस समय जाग उठी, जब पहलगाम हमले के खिलाफ भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सीएम के अंदर घुसकर 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया था. उस समय ट्रंप ने दोनों देशों के बीच युद्ध को रोकने के लिए मध्यस्थता का दावा किया था. जबकि भारत सरकार ने उनके इस बयान को पूरी तरह से खारिज कर दिया था. उसके बाद कुछ समय तक चर्चा में रहने के बाद यह मामला शांत हो गया था, लेकिन ट्रंप ने बीबीसी के अमेरिकी सहयोगी सीबीएस न्यूज की ओर से नोबेल प्राइज को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में कहा, मुझे अब इस मामले में कोई रुचि नहीं है.
डोनाल्ड ट्रंप ने सीबीएस न्यूज को आगे बताया, "मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है. मैं, बस युद्धों को रोक सकता हूं. मैं, किसी का इस ओर ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहता. मैं बस लोगों की जान बचाना चाहता हूं."
अमेरिकी राष्ट्रपति यह टिप्पणी उनकी इस मसले पर पहले दिए गए बयान से मेल नहीं खाती. जब उन्होंने कहा था कि कई संघर्षों को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए उन्हें नोबेल जैसा प्रतिष्ठित सम्मान दिया जाना चाहिए.
वे मुझे कभी नहीं देंगे प्राइज - ट्रंप
फरवरी 2025 में भी ट्रंप ने दुख जताया था, "वे (नोबेल पीस प्राइज कमेटी) मुझे कभी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं देंगे. मैं इसका हकदार हूं, लेकिन वे इसे कभी नहीं देंगे." न्यूज विक रिपोर्ट के अनुसार जून में ट्रंप ने स्वयं कहा था कि: “मैं चाहे कुछ भी कर लूं, मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा.”
द गार्जियन के मुताबिक ट्रंप ने ट्रूथ पर अपने पोस्ट में कहा, "नहीं, मैं चाहे कुछ भी करूं, चाहे रूस-यूक्रेन हो या इजरायल-ईरान, मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा... लेकिन लोग जानते हैं, और यही मेरे लिए मायने रखता है!"
अमेरिका के 4 राष्ट्रपति पा चुके हैं नोबेल सम्मान
सीबीएस से टेलीफोनिक साक्षात्कार में ट्रंप ने बताया, "वह रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता कराने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. कुछ तो होगा. हम इसे पूरा करेंगे. दरअसल, नॉर्वेजियन नोबेल समिति द्वारा 10 अक्टूबर 2025 को नोबेल शांति पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाएगी. अभी तक अमेरिका के चार पूर्व राष्ट्रपतियों को यह सम्मान दिया जा चुका है, जिनमें ट्रंप के राजनीतिक प्रतिद्वंदी बराक ओबामा भी शामिल हैं.
किसे मिले नोबेल पीस प्राइज, कौन करता है तय?
नोबेल प्राइज का नाम तय करने के लिए पैनल के पांच सदस्यों की नियुक्ति नॉर्वे की संसद द्वारा की जाती है. खबरों के अनुसार ट्रंप ने नॉर्वे के वित्त मंत्री जेन्स स्टोलटेनबर्ग के साथ अपनी पुरस्कार जीतने की उम्मीदों पर चर्चा की थी. उनकी यह चर्चा अप्रत्याशित थी. हालांकि, स्टोलटेनबर्ग ने इसकी पुष्टि नहीं की.
किस, किसने रखा ट्रंप के नाम का प्रस्ताव
द आस्ट्रेलिया इंस्टीट्यूट, World Crunch और द इकोनॉमिस्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने 21 जून 2025 को ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था. पाकिस्तान ने अपने प्रस्ताव में यह दावा किया है कि ट्रंप ने भारत-पाक युद्ध के दौरान मध्यस्थता की. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया है. उन्होंने मध्य पूर्व कूटनीतिक प्रयास खासकर अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के आधार पर यह दावा किया है.
ट्रंप ने वास्तव में बदल लिया अपना मन!
इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा बिल्कुल नहीं है. ट्रंप ने अपना रुख नहीं बदला है. वे नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर अपनी उम्मीदों और निराशाओं को व्यक्त करना जारी रखे हुए हैं. उन्होंने कई बार कहा है कि उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिलेगा. चाहे वे कितनी भी कूटनीतिक उपलब्धियां हासिल कर लें. और अब भी वह नोबेल पुरस्कार की चाह छोड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं.
कब कहा, नोबेल प्राइज मिलना चाहिए
डोनाल्ड ट्रंप एक बार नहीं बल्कि कई बार नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) का जिक्र कर चुके हैं. 2018–2019 के दौरान उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उन्हें नोबेल प्राइज मिलना चाहिए. खासकर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया को बातचीत की मेज पर लाने और अब्राहम समझौते (Abraham Accords) में उनकी भूमिका के लिए. ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया था कि मीडिया और नोबेल कमेटी उनके योगदान को नजरअंदाज कर रही है, जबकि उनका कहना था कि “दूसरे नेताओं को कम काम के लिए भी पुरस्कार मिल जाते हैं.”
सितंबर 2020 में इजराइल–यूएई समझौते के बाद उन्हें नॉर्वे के एक सांसद ने आधिकारिक रूप से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया था. उस समय ट्रंप ने कहा था कि “अगर निष्पक्ष हो तो उन्हें नोबेल प्राइज मिलना चाहिए.” यानी ट्रंप ने कई बार कहा कि वे नोबेल प्राइज डिजर्व करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उनके बयानों की 2018 से 2020 के बीच हुई थी.
द इकोनॉमिक टाइम्स, द टाइम्स और का मानना है कि ट्रंप की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. वे अभी भी पुरानी शैली में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नोबेल पुरस्कार के बारे में बयान दे रहे हैं और अपनी महत्वाकांक्षा को उजागर कर रहे हैं. हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि उन्होंने अपनी नीति या दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं किया है. वे फिर से कह रहे हैं कि चाहे कुछ भी करें, पुरस्कार उन्हें नहीं मिलेगा, लेकिन वह इसकी चाह पूरी तरह नहीं छोड़ रहे हैं.
नोबेल प्राइज को लेकर ट्रंप से जुड़ा विवाद क्या है?
17 जून 2025 को एक फोन कॉल में ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन का समर्थन मांगा. उन्होंने दावा किया कि अमेरिका ने भारत–पाक सीमा पर शांति दिलाने में भूमिका निभाई है, लेकिन मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह पूरी तरह से भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बात थी, जिसमें अमेरिका का कोई योगदान नहीं था. इससे दोनों नेताओं के बीच संबंधों में खटास आ गई. इसके बाद ट्रंप की ओर से भारत पर भारी शुल्क (tariffs) लगाए जाने की खबरें सामने आईं, जिसने तनाव को और बढ़ा दिया.
द वाशिंगटन पोस्ट और द डेली बीस्ट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार नोबेल समिति के लगभग तीन सदस्यों ने सार्वजनिक तौर पर ट्रंप की आलोचना की है. विशेषकर उनकी मीडिया विरोधी टिप्पणियों और अमेरिकी लोकतंत्र को कमजोर करने की धारणा को लेकर.