बाटी-चोखा का प्रोग्राम या बड़ा सियासी संकेत! ठाकुरों के बाद ब्राह्मण विधायकों की बैठक से UP की राजनीति गरम, जानें कौन हैं पीएन पाठक
उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान लखनऊ में भाजपा विधायक पी.एन. पाठक के आवास पर हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सियासी हलचल तेज कर दी. करीब 40–50 ब्राह्मण और भूमिहार विधायक इस सहभोज में शामिल हुए. हालांकि पीएन पाठक और भाजपा नेताओं ने इसे गैर-राजनीतिक, सामाजिक संवाद और आत्ममंथन की बैठक बताया, लेकिन इससे पहले हुई ठाकुर विधायकों की बैठक, 2027 चुनाव की आहट, योगी सरकार में सत्ता-संतुलन और विपक्षी बयानों ने इस बैठक को ब्राह्मण–ठाकुर समीकरण से जोड़ दिया. ओम प्रकाश राजभर और सपा नेता शिवपाल यादव के बयानों ने इस मुद्दे को और राजनीतिक रंग दे दिया. भले ही भाजपा इसे साधारण सहभोज बता रही हो, लेकिन यूपी की राजनीति में ब्राह्मण बनाम ठाकुर का अदृश्य पावर गेम एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है.;
UP Thakur vs Brahmin Politics: उत्तर प्रदेश विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सियासी हलचल बढ़ा दी. यह बैठक लखनऊ में कुशीनगर से विधायक पीएन पाठक के आवास पर आयोजित हुई, जिसमें करीब 40–50 ब्राह्मण और भूमिहार ब्राह्मण समाज के विधायक और नेता शामिल हुए. हालांकि, बैठक के सामने आते ही इसे ठाकुर विधायकों की हालिया बैठक और 2027 विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा, लेकिन बैठक के सूत्रधार पीएन पाठक ने इन सभी अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
पीएन पाठक का दावा, “कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई”
पीएन पाठक ने कहा, “इस बैठक को 2027 से जोड़कर देखना पूरी तरह गलत है. क्षत्रिय समाज की बैठक के बाद इसे जोड़ना भी गलत है. हम आगे भी बैठेंगे, बाकी समाज के लोग भी जुड़ेंगे.” पाठक ने स्पष्ट किया कि यह बैठक अचानक एक दिन पहले तय हुई, जिसमें तय हुआ कि साथ बैठकर बाटी-चोखा खाया जाए और आपसी संवाद हो. उन्होंने कहा, “जो लोग व्रत पर थे, उनके लिए फलाहार रखा गया था. कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हुई. SIR (Special Intensive Revision) जैसे सामान्य विषयों पर और घर-परिवार की चर्चा हुई.”
नाराज़गी की अटकलों पर जवाब
जब पीएन पाठक से पूछा गया कि क्या अधिकारियों या सरकार से कोई नाराज़गी है, तो पीएन पाठक ने साफ कहा, “हमारी सारी मदद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करते हैं. कहीं कोई नाराज़गी नहीं है.”
रत्नाकर मिश्रा बोले, “यह समाज के आत्ममंथन की बैठक थी”
इस सहभोज बैठक पर भाजपा नेता रत्नाकर मिश्रा ने कहा, “समाज में जो भी विसंगतियां हैं, उन्हें दूर करने के लिए बैठक हुई. ब्राह्मण समाज दिशा देता है, और हमें खुद में सुधार लाकर समाज में सुधार करना है.” उन्होंने बताया कि बैठक में करीब चार दर्जन लोग शामिल थे और इसके कोई राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाने चाहिए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर रत्नाकर मिश्रा ने कहा, “ऐसा मुख्यमंत्री न पहले था, न आगे होगा. किसी भी बिरादरी की बैठक होना अच्छी बात है.”
'बैठक का उद्देश्य किसी भी तरह की राजनीति नहीं, बल्कि सामाजिक चिंतन था'
रत्नाकर मिश्रा ने कहा कि बैठक का उद्देश्य किसी भी तरह की राजनीति नहीं, बल्कि सामाजिक चिंतन था. उन्होंने कहा कि पहले तीन पीढ़ियां एक ही छत के नीचे रहती थीं, लेकिन आज एक पीढ़ी का साथ रहना भी मुश्किल हो गया है. पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से समाज बिखर रहा है, बच्चे विदेशों में बस रहे हैं और बुजुर्ग माता-पिता एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं. मिश्रा ने कहा कि ब्राह्मण समाज का दायित्व है कि वह संस्कार दे और नई पीढ़ी को राम-कृष्ण के मार्ग पर वापस लाने का प्रयास करे. इसी विषय पर बैठक में चिंतन-मनन किया गया.
'देश पहले कृषि प्रधान था, लेकिन अब जाति प्रधान होता जा रहा है'
इस बैठक पर प्रतिक्रिया देते हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख और मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि देश पहले कृषि प्रधान था, लेकिन अब जाति प्रधान होता जा रहा है. यदि किसी समाज को परेशानी है तो उसे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी बात रखनी चाहिए, ताकि समाज की पीड़ा का समाधान निकल सके.
'ब्राह्मण समाज के खिलाफ दुराग्रह फैलाया जा रहा है'
उधर, निषाद पार्टी के विधायक अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि ब्राह्मण समाज का मूल स्वभाव सबके कल्याण का रहा है. उन्होंने कहा कि ब्राह्मण पूजा-पाठ और अनुष्ठान केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए करता है. हालांकि उन्होंने यह भी चिंता जताई कि प्रदेश और देश में राजनीतिक कारणों से ब्राह्मण समाज के खिलाफ दुराग्रह फैलाया जा रहा है और हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है.
ब्राह्मण–ठाकुर एंगल: क्यों बढ़ी चर्चा?
दरअसल, इससे पहले ठाकुर विधायकों की बैठक हुई थी, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई कि भाजपा के भीतर सामाजिक संतुलन को लेकर मंथन चल रहा है. ब्राह्मण विधायकों की इस बैठक को उसी कड़ी में देखा गया, हालांकि पार्टी के भीतर से इसे सिर्फ सामाजिक संवाद बताया जा रहा है. इसी बीच हलचल तब और बढ़ गई जब योगी आदित्यनाथ के OSD सरवन बघेल के कॉल किए जाने की खबरें और शिवपाल यादव का बयान “सपा में आइए, सम्मान मिलेगा” सामने आया. इन घटनाओं ने बैठक को लेकर राजनीतिक अटकलों को और हवा दे दी.
शिवपाल यादव ने क्या कहा?
शिवपाल यादव ने कहा कि बीजेपी लोगों को जाति में बांटती है. जो भी विधायक बीजेपी से नाराज हैं, उन्हें सपा में आ जाना चाहिए. यहां उन्हें पूरा सम्मान मिलेगा.
कौन हैं पीएन पाठक? (Profile)
पीएन पाठक कुशीनगर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक हैं. उनकी सामाजिक पहचान ब्राह्मण नेता के तौर पर है. वे संगठन से जुड़े अनुभवी नेता हैं. ब्राह्मण समाज में उनकी मजबूत पकड़ है. वे योगी सरकार के भरोसेमंद विधायकों में गिने जाते हैं. पाठक को संतुलित बयानबाजी, संगठनात्मक समझ और समाज के बीच संवाद कायम करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है. यही वजह है कि ब्राह्मण विधायकों की इस बैठक के आयोजक की भूमिका उन्होंने निभाई.
भले ही पीएन पाठक और भाजपा नेता इस बैठक को गैर-राजनीतिक सहभोज बता रहे हों, लेकिन यूपी की राजनीति में ब्राह्मण–ठाकुर समीकरण हमेशा से अहम रहा है. ऐसे में इस तरह की बैठकें आने वाले समय में सियासी चर्चा का केंद्र बनी रहेंगी-खासतौर पर जब 2027 का चुनाव धीरे-धीरे नज़दीक आ रहा है.
ब्राह्मण बनाम ठाकुर समीकरण: यूपी की सत्ता का अदृश्य पावर गेम
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं. ब्राह्मण (लगभग 10-12% आबादी) और ठाकुर (राजपूत, लगभग 7-8% आबादी) दोनों ऊपरी जातियां हैं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस और बाद में भाजपा का कोर वोट बैंक रही हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ (ठाकुर) के मुख्यमंत्री बनने के बाद से 'ठाकुरवाद' का आरोप लगता रहा है, जिससे ब्राह्मणों में असंतोष बढ़ा है. यह 'अदृश्य पावर गेम' सत्ता के वितरण, टिकट बंटवारे और प्रशासनिक नियुक्तियों में दिखता है, जो 2027 विधानसभा चुनावों की दिशा तय कर सकता है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- स्वतंत्रता के बाद का दौर (1950-1989): ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा. कई मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे (जैसे गोविंद बल्लभ पंत). ठाकुर भी प्रभावी थे, लेकिन ब्राह्मण प्रमुख.
- मंडल के बाद (1990-2017): ओबीसी और दलितों का उदय (कल्याण सिंह, मुलायम सिंह, मायावती, अखिलेश यादव). ऊपरी जातियों की हिस्सेदारी घटी.
- 2017 से अब तक: भाजपा की सत्ता में ठाकुर मुख्यमंत्री (योगी) होने से ठाकुरों को प्रशासन और पुलिस में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलने का आरोप. ब्राह्मणों ने 2017 और 2022 में भाजपा को भारी समर्थन दिया, लेकिन सत्ता में हिस्सेदारी कम मिलने से नाराजगी
वर्तमान तनाव (2025 की ताजा घटनाएं)
दिसंबर 2025 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान बड़ा घटनाक्रम हुआ. पहले ठाकुर विधायकों ने 'कुटुंब भोज' के नाम पर जुटान की (मानसून सत्र में)... इसके जवाब में 23 दिसंबर 2025 को लखनऊ में भाजपा विधायक पी.एन. पाठक के घर पर 45-52 ब्राह्मण विधायकों (भाजपा और अन्य दलों के) का 'सहभोज' हुआ. इसमें योगी के करीबी नेता जैसे शलभमणि त्रिपाठी और रत्नाकर मिश्रा शामिल थे. चर्चा का विषय ब्राह्मणों की राजनीतिक उपेक्षा, समाज में बिखराव, और आगे की रणनीति रहा. सूत्रों के अनुसार, ब्राह्मणों को लगता है कि जातीय राजनीति में ठाकुर, ओबीसी और दलित मजबूत हो रहे हैं, जबकि ब्राह्मण पीछे छूट रहे.
भाजपा के लिए चुनौती
यूपी विधानसभा में 52 ब्राह्मण विधायक हैं (46 भाजपा के). ब्राह्मण वोट 100+ सीटों पर प्रभावी हैं. 2025 में अखिलेश यादव (सपा) ने पुलिस पोस्टिंग में ठाकुरों को तरजीह देने का डेटा शेयर किया और ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की. विपक्ष 'ठाकुर बनाम ब्राह्मण' नैरेटिव को गरमाता रहा है.
जातीय आंकड़े और प्रभाव (अनुमानित)
जाति | आबादी (%) | मुख्य समर्थन (हालिया) | प्रभावित सीटें |
ब्राह्मण | 10-12 | भाजपा (पर असंतोष) | 100+ |
ठाकुर | 7-8 | भाजपा (मजबूत) | पूर्वांचल, बुंदेलखंड |
यादव | 10-12 | सपा | अवध क्षेत्र |
दलित (जाटव) | 12 | बसपा/सपा | पूरे राज्य |
अन्य ओबीसी | 40+ | विभाजित (भाजपा-सपा) | ग्रामीण क्षेत्र |
आगे क्या?
भाजपा के लिए ब्राह्मण नाराजगी 2027 में नुकसान पहुंचा सकती है. पार्टी को संतुलन बनाना होगा, जैसे ज्यादा ब्राह्मण चेहरों को आगे लाना. वहीं, विपक्ष के लिए सपा ब्राह्मणों को PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) में जोड़ने की कोशिश कर रही है. बसपा का 2007 मॉडल (ब्राह्मण-दलित गठजोड़) फिर चर्चा में है. यह गेम 'अदृश्य' इसलिए है क्योंकि दोनों जातियां भाजपा की कोर हैं, लेकिन आंतरिक प्रतिस्पर्धा सत्ता के खेल को जटिल बनाती है. यूपी की सत्ता हमेशा जातीय संतुलन पर टिकी है – ब्राह्मण-ठाकुर टकराव इसे और रोचक बना रहा है.