पुलिस अफसर कान में तेल डालकर सोएंगे तो, दारोगा-हवलदार सिपाही ड्यूटी से ‘गायब’ होने में क्यों शर्माएं - पूर्व DG विक्रम सिंह

कानपुर पुलिस कमिश्नरेट के 161 पुलिसकर्मी पिछले छह महीने से ड्यूटी से गायब हैं. पूर्व यूपी DGP विक्रम सिंह ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता बताते हुए कहा कि ऐसे पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर जेल भेजना चाहिए. उन्होंने उच्च अधिकारियों की लापरवाही को भी जिम्मेदार ठहराया और छुट्टी मंजूर करने वालों पर भी कार्रवाई की मांग की. विक्रम सिंह ने कहा कि अगर ईमानदारी से जांच हो, तो इन पुलिसवालों और संबंधित अधिकारियों से करोड़ों रुपये की वसूली होनी चाहिए.;

( Image Source:  Sora AI )

‘सेना हो या फिर पुलिस. वर्दी में हर फोर्स सख्त अनुशासन से बंधी होती है. होना भी यही चाहिए. क्योंकि फोर्स अगर अनुशासनहीन हो जाएगी तो उसमें अराजकता व्याप्त होने से कोई नहीं रोक सकता. ऐसा होने पर पब्लिक और फोर्स या पुलिस के बीच अंतर ही बाकी क्या रह जाएगा? किसी भी राज्य की सिविल-पुलिस को तो और भी ज्यादा अनुशासन में रहने की जरूरत है. क्योंकि उसकी सीधे-सीधे जवाबदेही जनता और कानून के प्रति है. ब-वर्दी पुलिस हर वक्त कानून और आमजन के बीच मौजूद रही है.

हां, पुलिस में अनुशासन की हवा नीचे यानी सिपाही-हवलदार-दारोगा की तरफ से नहीं, बल्कि ऊपर से यानी पुलिस महानिदेशक से एडीजी, आईजी, डीआईजी, एसएसपी, एसपी, डिप्टी एसपी सीओ, इंस्पेक्टर, दारोगा-थानेदार, हवलदार और सिपाही तक बहती हुई पहुंचती है. अफसर जितना सख्त होगा पुलिस वाले उतने ही अनुशासन के पाबंद होंगे. यह तो रहा पुलिस में अनुशासन की तस्वीर का एक पहलू. अब इसका दूसरा मानवीय-प्रैक्टिकल पहलू भी देखना जरूरी है. जब सिपाही हवलदार-दारोगा इंस्पेक्टर को पुलिस की नौकरी में हर वक्त अनुशासन में रहने का बोझ राज्य पुलिस मुख्यालय में बैठे पुलिस मुखिया यानी पुलिस महानिदेशक को ही उठाना पड़ेगा, तब तो समझो चल गई पुलिस में अनुशासन व्यवस्था. किसी भी राज्य पुलिस में अनुशासन का चाबुक सीधे तौर पर जिला पुलिस अधिकारियों का होना चाहिए. वे ही मातहत पुलिस वालों की हर अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार हैं.’

गायब पुलिसकर्मी पहले हैं ‘जिम्मेदार’

यह तमाम बेबाक बातें 1974 बैच के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डॉ. विक्रम सिंह ने बयान की. उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह मंगलवार (22 जुलाई 2025) को नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से एक्सक्लूसिव बात कर रहे थे. पूर्व पुलिस महानिदेशक से पूछा गया था कि, कानपुर पुलिस कमिश्नरेट के अधीन तैनात/कार्यरत 161 ऐसे पुलिस कर्मचारियों का पता चला है, जो बीते करीब 6 महीने से अपनी ड्यूटी से नदारद हैं. इसके लिए सीधे तौर पर कौन जिम्मेदार है? सवाल के जवाब में पूर्व पुलिस महानिदेशक ने कहा, “जो पुलिस कर्मचारी इतने लंबे समय से गायब हैं. वे ही सब पहले खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं.”

 

कानपुर कमिश्नर को जानता हूं, बख्शेंगे नहीं

स्टेट मिरर हिंदी से बात करते हुए डॉ. विक्रम सिंह आगे बोले, “161 पुलिसकर्मियों का एक ही (कानपुर पुलिस कमिश्नरेट) जगह से 6 महीने गायब रहना. पुलिस महकमे के उच्चाधिकारियों ही कार्यशैली में शिथिलता-निष्क्रियता का सबसे से बड़ा और शर्मनाक नमूना है. छह महीने से इतनी बड़ी संख्या में मातहत गायब हों, और 6 महीने तक आला- पुलिस अफसरान को पता ही न चले. हैरत में यह बात सुनकर. हां, यहां मैं इतना जरूर कहूंगा कि पुलिस कर्मियों के इतनी बड़ी तादाद में 6 महीने से गायब रहने का मामला या घोटाला पकड़ा मौजूदा तेज-तर्रार आईपीएस अखिल कुमार (मौजूदा पुलिस आयुक्त कानपुर) ने ही होगा. बाकी नीचे वाले ने तो मिली-भगत से यह सब करवा कर नाक कटवाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है. और जिस तरह से अखिल कुमार पुलिसिंग करते हैं. उससे मैं बखूबी वाकिफ हूं. जब यह भांडा फूट ही गया है, तो आरोपी पुलिसकर्मी अब लाख कोशिशों के बाद भी अपनी खाल तो नहीं बचा सकेंगे. यह तय मानकर चलिए.”

कानपुर पुलिस के मास्टरमाइंडों का 'कमाल'

यहां जिक्र करना जरूरी है कि कानपुर पुलिस कमिश्नरेट में तैनात उत्तर प्रदेश पुलिस के 161 कर्मचारी छुट्टी लेकर गए थे. लंबे समय तक जब ड्यूटी पर वापस नहीं लौटे. तो उनकी छानबीन शुरू हुई. संबंधित कर्मचारियों के पते पर महकमे ने पत्राचार किया. जवाब शून्य रहा. तब कानपुर पुलिस अफसरों के कान खड़े हुए. गहन छानबीन में खुलासा हुआ कि इन मास्टरमाइंड गायब पुलिस वालों में तमाम तो बीते तीन से लेकर छह महीने की लंबी अवधि से भी ड्यूटी से नदारद हैं. अब बेहाल कानपुर पुलिस आयुक्त मुख्यालय ने ऐसे ब्लैक-लिस्टिड पुलिस कर्मियों के बाबत डिटेल रिपोर्ट राज्य पुलिस महानिदेशालय (लखनऊ) भेजी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'डिस्लोकेट' की ब्लैक-लिस्ट में दर्ज इन मास्टरमाइंड पुलिस वालों में कानपुर कमिश्नरेट के चारों जोन, पुलिस लाइन, पुलिस कार्यालयों, ट्रैफिक में तैनात हैं.

IPS अफसर अपने पांव कुल्हाड़ी नहीं मारेगा

आखिर इतनी बड़ी संख्या में छह-छह महीने से मातहत पुलिसकर्मी क्या बिना आला पुलिस अफसरों की मिली-भगत से गायब रह सकते हैं? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह कहते हैं, “हर मामले में नहीं, इस मामले में कह सकता हूं कि, सीधे जिला या कमिश्नरेट स्तर का इसमें शायद ही कोई अफसर शामिल रहने की गलती करके अपने पांव अपनी आईपीएस सर्विस पर कुल्हाड़ी मारेगा. हां, इसकी पूरी संभावना है कि इस शर्मनाक कांड में कानपुर के क्षेत्राधिकारी कार्यालय, पुलिस लाइन, थाना इंचार्ज, पुलिस कार्यालय, पुलिस बाबू, लेखा-विभाग के में तैनात इमिडेएट अफसर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जरूर शामिल रहे होंगे.

छुट्टी मंजूर करने वाले भी पकड़े जाएंगे

क्योंकि इस तरह के घोटालों और गड़बड़झाला के लिए कोई सिपाही-हवलदार-दारोगा सीधे जिला पुलिस कप्तान एसपी एसएसपी या पुलिस कमिश्नर से तो जाकर छुट्टी मांगेगा नहीं. छुट्टी तो नीचे वाले वे ही संबंधित दफ्तर ही देते हैं जिनका मैं ऊपर उल्लेख कर चुका हूं. मैं बताऊं इस बड़े खुलासे में भी यही सब जिम्मेदार मिलेंगे आइंदा होने वाली जांच में, जिनका मैं उल्लेख कर रहा हूं. अगर कानपुर के मौजूदा पुलिस आयुक्त अखिल कुमार ने यह मामला न पकड़ा होता, शायद अब भी यह गोरखधंधा नीचे वाले पुलिसकर्मी मिल-बांटकर चलाते रहते.”

बार-बार का झंझट खतम हो जाएगा

कानपुर पुलिस में इस बड़े अवकाश घोटाले पर बेबाक बातचीत के दौरान पूर्व पुलिस महानिदेशक आगे कहते हैं, “मैं अगर सूबे का पुलिस महानिदेशक होता तो तीन दिन के अंदर इन गायब पुलिस कर्मचारियों के जांच रिपोर्ट मंगवाता. मुकदमा दर्ज कराता और उन्हें निलंबित करने के कुछ दिन बाद, नौकरी से ही बर्खास्त कर देता. ताकि यूपी पुलिस से तो इस तरह के नालायक पुलिस कर्मियों की भीड़ कम हो जाती. और जो बाकी इनकी तरह में बचते वे सुधर जाते. ऐसे बिगड़े हुए पुलिसकर्मियों को सुधारने के लिए एक बार सख्ती बरत ली जाए, तो बार बार का झंझट पुलिस महकमे का खत्म हो जाता है.”

राज्य पुलिस मुख्यालय अगर ईमानदार होगा...

बात जारी रखते हुए विक्रम सिंह कहते हैं, “जो पुलिस वाले गायब मिले हैं, उनकी छुट्टियां मंजूर करने वालों के खिलाफ भी वही कार्रवाई होनी चाहिए, जो इन गायब पुलिस वालों के खिलाफ हो. मेरे हिसाब से एक सिपाही हवलादर पर महीने का 30 हजार रुपया अनुमानित खर्चा भी मान लिया जाए, तो इस हिसाब से महीने की इन गायब 161 पुलिस वालों के ऊपर अनुमानित 50 लाख रुपया खर्च हुआ होगा. इस हिसाब से अगर 3 से छह महीने का गुणा-भाग-जोड़ घटाव कर लिया जाए, तो यह धनराशि करोड़ों में पहुंचेगी. यह तमाम सरकारी खजाने की रकम इन्हीं आरोपी पुलिस वालों से वसूली जानी चाहिए. और अगर कानपुर पुलिस व राज्य पुलिस मुख्यालय में बैठे अफसरों में ईमानदारी व दृढ़-इच्छाशक्ति होगी, तो यही सब वे कर भी लेंगे जो मैं कह रहा हूं.”

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