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Ghaziabad Gangster Qadir Manta: ‘पाला-पोसा’ गुंडा कादिर मंटा ‘पुलिस’ पर ही भारी पड़ा!

नोएडा के सिपाही सौरभ कुमार की हत्या ने यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 23 साल का हिस्ट्रीशीटर कादिर उर्फ मंटा, जिस पर 24 केस दर्ज हैं, ने सिपाही को गोली मारी. Ex-DGP विक्रम सिंह ने लोकल पुलिस को ऐसे गैंगस्टर्स के पनपने का जिम्मेदार ठहराया और "हाफ-एनकाउंटर" पर नाराज़गी जताई. गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर से संपर्क की कोशिश नाकाम रही, जिससे पुलिस की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है.

Ghaziabad Gangster Qadir Manta: ‘पाला-पोसा’ गुंडा कादिर मंटा ‘पुलिस’ पर ही भारी पड़ा!
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 31 May 2025 6:12 PM IST

दो दिन से जरायम की दुनिया में गोलीबाज गैंगस्टर/हिस्ट्रीशीटर (Gangster) का ही चर्चा हो रहा है. क्योंकि खाकी के खौफ से बेखौफ गैंगस्टर कादिर उर्फ मंटा (Gangster Qadir alias Manta) ने, नोएडा (उत्तर प्रदेश पुलिस के) पुलिस के सिपाही सौरभ कुमार (Noida Police Constable Saurabh Kumar Killed) को गोली मारकर शहीद कर डाला है. आखिर इस कदर कोई गैंगस्टर महज 23 साल की उम्र में इस कदर का खूंखार कैसे हो गया? जिसके हाथ उस पुलिस के सिपाही पर गोली चलाने से पहले कांपे तक नहीं, जिस पुलिस के नाम से अपराधियों की रुह फनाह हो जाती है? या जिस पुलिस के नाम से बदमाश क्या भूत भी भाग जाते हैं.

इस अहम सवाल के ठोस जवाब के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर (क्राइम इनवेस्टीगेशन) ने गाजियाबाद पुलिस आयुक्त (Police Commissioner Ghaziabad) आईपीएस जे रविंद्र गौड़ (IPS J. Ravindra Gaur) से बात करनी चाही. तो उनके पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि पुलिस कमिश्नर मीटिंग में हैं. आप (स्टेट मिरर) पुलिस उपायुक्त (ग्रामीण) सुरेंद्र नाथ तिवारी से बात कर लीजिए. स्टेट मिरर हिंदी ने पुलिस उपायुक्त ग्रामीण से बात करने की हरसंभव कोशिश की. उधर से मगर घंटों बाद तक जब कोई रिस्पांस नहीं मिला.

Ex DGP UP विक्रम सिंह ही पुलिस से खफा

तब ऐसे में सिपाही सौरभ कुमार के कत्ल जैसे खौफनाक मुद्दे पर हमने बात की यूपी कैडर 1974 बैच के वरिष्ठ आईपीएस (IPS) अधिकारी डॉ. विक्रम सिंह (Ex IPS DGP UP Vikram Singh) से. डॉ. विक्रम सिंह (IPS Vikram Singh) जिस मेरठ रेंज में कभी गाजियाबाद (जिला पुलिस) आता था साल 1995 से 1998 तक उसी मेरठ रेंज के पुलिस उप-महानिरीक्षक (DIG Meerut Range) और साल 1999 से 2001 तक पुलिस महानिरीक्षक (IG Meerut Range) भी रहे हैं. साल 2007 में डॉ. विक्रम सिंह को मायावती (बसपा) की सरकार में राज्य का पुलिस महानिदेशक बनाया गया था. सन् 2009 में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DG UP Police Vikram Singh) पद से रिटायर हो चुके विक्रम सिंह गौतमबुद्ध नगर जिला पुलिस (नोएडा) के सिपाही सौरभ कुमार की, गैंगस्टर कादिर उर्फ मंटा द्वारा गोली मारकर की गई हत्या से न केवल हतप्रभ थे. वह आज की पुलिस की कार्य-प्रणाली पर हावी होते अपराधियों, को लेकर भी पुलिस से खासे खफा दिखाई दिए.

शर्म आती है पुलिस की दुर्गति-दुर्दशा देखकर

स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक ने कहा, “अब जो हाल पुलिस और अपराधियों के बीच गठजोड़ का देख रहा हूं. उसे देखकर सोचता हूं कि आखिर पुलिस की कार्य-प्रणाली जा किस अंधी दिशा की ओर रही है? पुलिस की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि अपराधियों से दिमाग से उसका खाकी और कानून का खौफ ही खतम हो चुका है. जब देखता हूं मीडिया में तो देश में कहीं न कहीं कोई न कोई पुलिसकर्मी, अपराधियों का शिकार बन जा रहा है. पुलिस और कानून नहीं हुआ, बदमाशों के हाथों की कठपुतली हो गये हैं. जैसे बदमाश चाहे वैसे पुलिस चले तो ठीक वरना, पुलिस ही कादिर उर्फ मंटा जैसे गली-कूचों के बदमाशों-गैंगस्टर्स के निशाने पर आ जा रही है.”

लोकल-पुलिस तैयार करती है कादिर मंटा!

गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) पुलिस की मानें तो, 23 साल की उम्र में कादिर उर्फ मंटा (नोएडा पुलिस के सिपाही सौरभ कुमार का हत्यारोपी) जैसे कम-उम्र गैंगस्टर पर 24 आपराधिक मुकदमे दर्ज मिले हैं. मंटा को इलाका पुलिस (थाना मसूरी जिला गाजियाबाद पुलिस) अगर वक्त रहते कानूनन काबू कर लेती तो, क्या मंटा इस कदर का खूंखार अपराधी बन पाता जो वह, सिपाही सौरभ कुमार की गोली मारकर जान लेने की जुर्रत भी कर पाता? सवाल के जवाब में उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह बोले, “कादिर मंटा जैसे गली-कूचों के आवारागर्दों को सौरभ जैसे रणबांकुरों का कातिल बनने के काबिल बनाने में लोकल पुलिस का बहुत बड़ा हाथ होता है.”

सिपाही के कातिलों का हाफ-एनकाउंटर क्यों?

नोएडा के सिपाही सौरभ कुमार हत्याकांड से खासे खफा सूबे के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह बोले, “पुलिस के ऊपर जरा-जरा से बदमाश मिलकर हमला बोल दें. एक सिपाही को मार डालें. इसमें तौहीन बदमाशों की नहीं, पुलिस की है. सिपाही सौरभ की जान लेने वाले बदमाश तो अब इलाके में और भी सीना चौड़ा करके चलेंगे कि, उन्होंने पुलिस पार्टी पर हमला करके सिपाही मार डाला. हां, इतना जरूर है कि मैं गाजियाबाद के मौजूदा पुलिस कमिश्नर आईपीएस जे. रविंद्र गौड़ को जरूर बधाई देना चाहता हूं जिनके नेतृत्व वाली गाजियाबाद पुलिस ने, सिपाही सौरभ के कत्ल का बदला, दो हमलावर बदमाशों का हाफ-एनकाउंटर करके ले लिया है. मेरे ख्याल से तो सौरभ सिपाही के हत्यारों का ‘फुल-एनकाउंटर’ ज्यादा सही होता ताकि, आधे जिंदा बचे हमलावर बदमाश इलाके में यह कहने के लिए बचते ही नहीं कि, उन्हें पुलिस का कोई खौफ नहीं है.”

कादिर मंटा जैसों का एक ही इलाज है कि...

गाजियाबाद के मसूरी थानांर्गत जिस नाहल गांव का बदमाश कादिर उर्फ मंटा रहने वाला है उसके गांव के बारे में पूर्व डीजीपी ने कहा, ‘नाहल गांव समझिए हरियाणा का बदनाम नूह है. जहां आएदिन कानून व्यवस्था और पुलिस की इज्जत दांव पर लगी रहती है. क्योंकि दोनो ही इलाके अपराध-बाहुल्य हैं. जहां पुलिस और कानून अक्सर लाचारी-बेबसी के आलम में सिसकते ही दिखाई पड़ते हैं. कादिर मंटा जैसों को लाइन पर लाने का एक ही तरीका है कि, जरायम की दुनिया में जैसे ही यह नई उम्र के लड़के गर्दन उठाकर देखना शुरू करें, इनकी गर्दन पुलिस तोड़ डाले. यह मगर हो नहीं सकता है.

पुलिसिया ‘कमजोरी’ कादिर मंटा जैसों की ‘ताकत’

क्योंकि इलाका पुलिस (स्थानीय थाना-चौकी पुलिस स्टाफ) के ऊपर मंटा जैसे छोटे-मोटे नौसिखिए अपराधियों का हमेशा वर्चस्व रहता है. पुलिस के भी इसके पीछे अपने स्वार्थ होते हैं. पहले कादिर मंटा जैसों को चंद स्वार्थों की खातिर पालती-पोसती है, उसके बाद बीते कल के यही छोटे-मोटे कादिर-मंटा भविष्य के बड़े गैंगस्टर बनकर खूंखार हो जाते हैं. उनके मन-मष्तिष्क से कानून-पुलिस का खौफ चला जाता है. जिसकी परिणति नोएडा के सिपाही सौरभ कुमार हत्याकांड के रूप में सामने निकल कर आती है. इससे पुलिस को जान-माल का तो नुकसान होता ही है. खाकी की बदनामी भी इससे बहुत होती है. और अपाराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं.”

सिपाही की मौत पर गाजियाबाद पुलिस-अफसर ‘चुप’!

नोएडा पुलिस के सिपाही सौरभ कुमार हत्याकांड में मसूरी थाना पुलिस के खूंखार बदमाश हिस्ट्रीशीटर-गैंगस्टर, कादिर उर्फ मंटा (Gangster Qadir Manta) द्वारा अंजाम दिए गए, इस जघन्य कांड पर स्टेट मिरर हिंदी ने गाजियाबाद पुलिस आयुक्त जे. रविंद्र गौड़ और गाजियाबाद (ग्रामीण) उपायुक्त सुरेंद्र नाथ तिवारी के, जवाब का मंगलवार दोपहर बाद से देर रात खबर लिखे जाने तक इंतजार किया. मगर जिले के दोनो ही पुलिस उच्चाधिकारियों की तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

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