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जनता ब्यूरोक्रेसी के हाथों और ब्यूरोक्रेसी सरकार के हाथों लाचार, कहानी ‘जुगाड़ू DGP’ और ‘बाहरी पुलिस कमिश्नर’ की

UPSC से चुने गए IAS/IPS अफसरों को जब AGMUT कैडर (अरुणाचल, गोवा, मिजोरम, दिल्ली आदि) मिलता है, तो उन्हें खुद को सबसे श्रेष्ठ समझने की आदत रही है. पर असल में किसी अफसर का रसूख कैडर से नहीं, बल्कि उसकी राजनीतिक पकड़ से तय होता है. चाहे यूपी हो या दिल्ली, यहां पुलिस प्रमुख वही बनता है जिसे सरकार पसंद करे, भले वो वरिष्ठ हो या न हो. यह परिपाटी दशकों से चली आ रही है और आज भी जारी है.

जनता ब्यूरोक्रेसी के हाथों और ब्यूरोक्रेसी सरकार के हाथों लाचार, कहानी ‘जुगाड़ू DGP’ और ‘बाहरी पुलिस कमिश्नर’ की
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 5 Jun 2025 10:16 PM IST

भारतीय संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी (UPSC) में आईएएस आईपीएस जब बनते हैं तो उन्हें, उनकी काबिलियत के हिसाब से ही ‘कैडर’ आवंटित किया जाता है. जिस IAS/IPS को एजीएमयूटी (AGMUT) कैडर (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश जिनमें अब जम्मू-कश्मीर व लद्दाख भी जुड़ गए) मिलता है. वह खुद को भाग्यवान और यूपीएससी परीक्षा का सर्वोत्तम होनहार-काबिल ‘ब्यूरोक्रेट’ मानते हैं. यूपीएससी परीक्षा में रैंकिंग के दृष्टिकोण से उनकी नजर में बाकी राज्य-कैडर में भेजे गए, आईएएस/आईपीएस उनसे (AGMUT CADRE) कम काबिल होते हैं.

एजीएमयूटी कैडर (Arunachal Pradesh-Goa-Mizoram- Jammu and Kashmir, Ladakh Union Territories of India) वाले अब यह सोच बदल दें कि उनका कैडर ‘बाकी स्टेट ब्यूरोक्रेट्स के कैडर से कहीं ज्यादा ताकतवर, इज्जतदार या मलाईदार है.’ आने वाले समय में और मौजूदा वक्त में भी, अब यूपीएससी में आपका कैडर कितनी बड़ी ‘तोप’ है? इससे कोई फर्क आपकी ‘इज्जत और कलम की ताकत’ पर नहीं पड़ेगा.

राजनीतिक गलियारों में मजबूत पकड़ जरूरी

आप अगर किसी बेहद छोटे राज्य-कैडर (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मणिपुर, असम) के भी आईएएस/आईपीएस होंगे और, राजनीतिक गलियारों में आपकी ‘मजबूत-पकड़’ होगी. तब भी आपको ब्यूरोक्रेसी में रसूख-रुतबे की नजर से ‘क्रीम या मलाईदार’ समझे जाने वाले, ‘AGMUT’ कैडर में सरकारी-नौकरी-चाकरी का मौका आसानी से मिल सकता है. क्योंकि किस पसंदीदा आईएएस/आईपीएस को अपनी सहूलियत के हिसाब से ले जाकर कहां ‘फिट’ करना है? इस सवाल के जवाब की चाबी आपकी (IAS/IPS) जेब में नहीं, देश के नेताओं के हाथ में है.

यूपी और दिल्ली सबसे बड़े उदाहरण

हाल-फिलहाल इसके दो पुख्ता राज्य/केंद्र शासित प्रदेश उदाहरण के बतौर तो जमाने के सामने मौजूद हैं ही. पहला केंद्र शासित राज्य यानी देश की राजधानी दिल्ली. दूसरा देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश. इन दोनों ही राज्यों को अपने मूल कैडर का कोई नियमित और काबिल पुलिस-मुखिया (दिल्ली को एजीएमयूटी कैडर का पुलिस कमिश्नर) और, यूपी के लिए उसके आईपीएस के मूल-कैडर में से कोई नियमित काबिल पुलिस महानिदेशक नसीब नहीं हो पा रहा है. आखिर क्यों?

सौ टके का सवाल तो यह भी है

सौ टके का सवाल यह है कि इन दोनों ही राज्यों में अपने मूल कैडर के आईपीएस अफसरों (ब्यूरोक्रेट्स) का टोटा है? या फिर राजनीति के गलियारों में जिस ब्यूरोक्रेट का ‘ऊंची-पहुंच” का जितना ज्यादा ‘वजन-जलवा’ है? उसे ही पुलिस महकमे का मुखिया बनने का सौभाग्य हासिल करवाया जाएगा. जोकि कानूनन पूरी तरह से राज्य में सूबे और दिल्ली में केंद्र की हुकूमत पर निर्भर करता है. स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने इन्हीं सवालों के जवाब हासिल करने के लिए एक्सक्लूसिव बात की, 1964 बैच एजीएमयूटी कैडर के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी तिलक राज कक्कड़ से, जोकि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं, और 1974 बैच यूपी कैडर के पूर्व आईपीएस उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह से.

हुकूमत के बेजा ‘ह़क’ से इन्हें नाराजगी

दोनों ही अनुभवी और मंझे हुए पूर्व पुलिस प्रमुखों ने एक बात तो कमोबेश समान ही बताई. राज्य में सामान्य प्रशासन हो या फिर कानून-व्यवस्था संभलवाने की बात. दोनों ही विषय हुकूमत के ह़क के दायरे में आते हैं. राज्य के फिर केंद्र सरकार जैसे चाहें जिस ब्यूरोक्रेट (आईएएस आईपीएस से) से चाहें, उससे संभलवाएं. इसमें सिवाए उन ब्यूरोक्रेट्स के किसी को भी आपत्ति-नाराजगी नहीं होगी, जिनका नंबर वरिष्ठता क्रम में पुलिस महानिदेशक या पुलिस कमिश्नर बनने का होता है, फिर भी उनका कोई जूनियर ब्यूरोक्रेट सूबे के मुखिया की कमान संभाल लेता है.

यह ‘कुरीति’ पहले से ही चली आ रही है

भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री-गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के कार्यकाल में, उनके सचिव आंतरिक सुरक्षा रह चुके दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त टी आर कक्कड़ (TR Kakkar IPS Delhi Police Commissioner) बोले, ‘मैं मानता हूं कि दिल्ली को बीते कई साल से उसके अपने ही मूल एजीएमयूटी कैडर का कोई आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर के रूप में नसीब नहीं हो रहा है. बेशक दिल्ली को एजीएमयूटी कैडर का ही पुलिस कमिश्नर मिलना भी चाहिए. ऐसा नहीं है कि दिल्ली को बाहरी राज्य कैडर के आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर के रूप में इन्हीं कुछ वर्षों में मिलने लगे हों. दिल्ली पुलिस कमिश्नरों का इतिहास उठाकर देखिए तो ऐसे आईपीएस अफसरों की लंबी फेहरिस्त देखने को मिल जाएगी, जो बाहरी राज्य कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी होते हुए भी, दिल्ली में लाकर दिल्ली पुलिस कमिश्नर या दिल्ली पुलिस के मुखिया (आईजी) बना दिए गए. सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो, बीजेपी या फिर जनता पार्टी-जनता दल की. इस परिपाटी पर कोई असर नहीं पड़ा.’

CM और HM के पसंदीदा IAS/IPS की मौज

भारतीय थलसेना (Indian Army) के पूर्व मेजर रहते हुए पाकिस्तानी सेना को धूल चटा चुके, देश के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guard DG NSG) के महानिदेशक रह चुके तिलक राज कक्कड़ कहते हैं, “किस आईएएस/आईपीएस को कहां क्यों और कब राज्य का चीफ सेक्रेटरी या पुलिस चीफ बनाना है? केंद्र शासित राज्यों के मामलों में यह सब केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यों में उसके मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है. भले ही केंद्रीय गृहमंत्री की कुर्सी पर कोई भी हो. दिल्ली का पुलिस कमिश्नर वही आईपीएस बनेगा जो, केंद्रीय गृहमंत्री की पसंद का होगा. इसी तरह केंद्र शासित राज्यों में चीफ सेक्रेटरी लगाए जाने का आलम है.

IAS/IPS सरकार से ऊपर नहीं है न...

राज्यों में वहां का चीफ सेक्रेटरी/पुलिस महानिदेशक मूल राज्य कैडर का आईएएस/आईपीएस लगेगा या फिर कोई बाहरी? यह सब राज्य के मुख्यमंत्री के ऊपर निर्भर करता है. यूपी का सवाल जहां तक है तो वहां पहले तो यूपीएससी द्वारा ही डीजीपी तय किया जाता था. जोकि राज्य के मूल कैडर का वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी होता था. अब वहां भी देख रहा हूं कि साल 2022 से लेकर अब जून 2025 तक, मूल कैडर का कोई आईपीएस वरिष्ठता क्रम के हिसाब से नियमित पुलिस चीफ बन ही नहीं रहा है. अब जो 1 जून 2025 को 1991 बैच के आईपीएस राजीव कृष्ण कार्यवाहक डीजीपी बनाए गए हैं, वह भी कई वरिष्ठ आईपीएस को सुपरसीड करके स्टेट पुलिस प्रमुख बने हैं. बात फिर वही कि वरिष्ठता क्रम के मुताबिक राज्य पुलिस प्रमुख न बनाए जाने वाले सीनियर आईपीएस को यह बात खलना लाजिमी है कि उनकी बारी होने के बाद भी, उन्हें राज्य का पुलिस चीफ न बनाकर उनके ही समकक्ष या कनिष्ठ को बना दिया गया. मगर सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. सरकार उसी आईएएस-आईपीएस को चीफ सेक्रेटरी-पुलिस चीफ बनाएगी जो उसके माफिक होगा.”

मैं क्या बोलूं मुझे तो खुद ही मुख्यमंत्री ने...

इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी ने बात की डॉ. विक्रम सिंह से. वह साल 2007 से 2009 तक मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं. 1974 बैच के पूर्व आईपीएस विक्रम सिंह बोले, “मैं औरों की क्या कहूं? मुझे तो खुद ही मुख्यमंत्री मायावती ने मेरे कई समकक्ष-वरिष्ठों को किनारे करके राज्य का पुलिस डीजी (पुलिस महानिदेशक) बनाया था. खुलकर भले ही न हुआ हो, मगर जो आईपीएस डीजी बनने की बाट जोह रहे थे, सीनियॉरिटी के हिसाब से जिनका राज्य पुलिस चीफ बनने का नंबर तय माना जा रहा था, चीफ मिनिस्टर द्वारा मुझे डीजी बना दिए जाते ही, वह सब (जो वरिष्ठता क्रम के मुताबिक डीजी बनने के हकदार थे, मगर मेरे डीजी बन जाने से पुलिस चीफ नहीं बन सके) बहुत तिलमिलाए. सूबे की सरकार जिसे अपने काम का, विश्वास का समझती है. उसे ही राज्य के पुलिस चीफ की कमान सौंपती है. जरूरी नहीं है कि हर सीनियर स्टेट पुलिस चीफ बनने की काबिलियत सिर्फ इसलिए रखता होगा कि वह आईपीएस बैच में वरिष्ठ है. कई जूनियर आईपीएस भी स्टेट पुलिस प्रमुख बनने की काबिलियत रखते हैं. फिर चाहे वह आईपीएस प्रशांत कुमार हों, डीएस चौहान, या फिर अब 1 जून को यूपी के कार्यवाहक डीजीपी बनाए गए आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण.”

फर्क इससे पड़ता है कि कौन...

साल 2022 में आईपीएस मुकुल गोयल उत्तर प्रदेश के नियमित और वरिष्ठता क्रम के हिसाब से पुलिस चीफ थे. प्रदेश पुलिस की बागडोर ढीली छोड़ने के आरोपों के चलते उन्हें, पोस्टिंग-पीरियड पूरा होने से पहले ही डीजीपी पद से हटा दिया गया. उसके बाद से (2022 से जून 2025 तक) यूपी को नियमति पुलिस प्रमुख नही नसीब नहीं हुआ है? पूछने पर राज्य के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह बोले, “काम-चलाऊ या कार्यवाहक डीजी अगर नियमति डीजी से बेहतर पुलिसिंग कर पा रहा है. तो इसमें बुराई क्या है? नियमित डीजी हो या अस्थाई डीजीपी. फर्क इससे नहीं पड़ता है. फर्क इससे पड़ता है कि कौन आईपीएस सूबे की कानून-पुलिस व्यवस्था संभाल पा रहा है और कौन इसमें नाकाम है?”

‘काम-चलाऊ’ DGP की लंबी फेहरिस्त

अपनी बात जारी रखते हुए विक्रम सिंह आगे बोले, “मुकुल गोयल को समय पूरा होने से पहले ही डीजीपी पद से हटा दिए जाने के कारण, तब महानिदेशक खुफिया रहे आईपीएस देवेंद्र सिंह चौहान (IPS DS Chauhan Ex DG UP) को 13 मई 2022 को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बनाया गया. उनके 31 मार्च 2023 को रिटायर होने के बाद आईपीएस आर के विश्वकर्मा (IPS RK Vishwakarma Ex DGP UP) डीजी बनाए गए. जिनका कार्यकाल 2 महीने का ही रहा. उनके बाद आईपीएस विजय कुमार और फिर 31 जनवरी 2024 से 31 मई 2025 तक आईपीएस प्रशांत कुमार भी कार्यवाहक डीजी रहे. सवाल यह है कि आखिर इन चार कार्यवाहक पुलिस महानिदेशकों के कार्यकाल में कौन सा पहाड़ यूपी में टूट पड़ा. कहां पुलिस फेल हुई? अगर राज्य में कानून व्यवस्था दुरुस्त और पुलिस चुस्त है. तो फिर कार्यवाहक डीजी या नियमित डीजी से कोई फर्क नहीं पड़ता है.”

तो हुकूमत की मर्जी का पुलिस चीफ नहीं होगा

इसी अहम मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस कहते हैं, ‘जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच सामंजस्य की कमी हो तो इस तरह के (काम-चलाऊ डीजी) निर्णय होते हैं. अगर डीजीपी की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी के जरिए हो तब, फिर स्टेट गवर्मेंट को, वरिष्ठता क्रम से ही किसी आईपीएस को सूबे का पुलिस प्रमुख बनाना जरूरी होगा. ऐसे में राज्य सरकार अपने किसी चहेते आईपीएस अफसर को राज्य का पुलिस चीफ नहीं बना सकती है.’

दिल्ली में तो ‘बाहरी-जुगाड़’ का पुलिस कमिश्नर...

ऐसा नही है कि मन-मुताबिक पुलिस को हांकने के लिए सिर्फ यूपी में ही ‘काम-चलाऊ’ पुलिस चीफ लंबे समय से बनाने का ‘जुगाड़’ अमल में लाया जा रहा है. इस कथित ‘जुगाड़-प्रथा’ से देश की राजधानी दिल्ली भी अछूती नहीं रही है. इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी से विशेष बातचीत करते हुए दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर टीआर कक्कड़ (IPS TR Kakkar) कहते हैं, “दिल्ली को बीते साल 2020 से एजीएमयूटी यानी दिल्ली के मूल कैडर का आईपीएस पुलिस कमिश्नर नहीं मिला है. इसमें चौंकने वाली क्या बात है? आप तो (स्टेट मिरर हिंदी) आईपीएस अमूल्य पटनायक के बाद से दिल्ली को अग्मूटी कैडर का नियमित पुलिस कमिश्नर न मिलने की बात करते हैं. यह परिपाटी तो दिल्ली पुलिस में कई दशक से (साल 1978 से भी पहले से) चली आ रही है. सरकार देश में चाहे कांग्रेस, बीजेपी, जनता दल या जनता पार्टी, किसी की भी क्यों न रही हो.”

दिल्ली में पुलिस कमिश्नरी का और भी बुरा हाल

अपनी बात जारी रखते हुए देश के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस तिलक राज कक्कड़ (IPS Tilak Raj Kakkar DG NSG) कहते हैं, “1970 के दशक में यूपी कैडर 1951 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, जयेंद्र नाथ चतुर्वेदी (IPS JN Chaturvedi) को उस समय के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री यूपी से दिल्ली ले आए. तब दिल्ली में आईजी प्रणाली होती थी. चतुर्वेदी साहब को बाद में दिल्ली पुलिस का प्रमुख बना दिया गया.

जब 1 जुलाई 1978 को दिल्ली में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हुई तब, जेएन चतुर्वेदी साहब ही दिल्ली के पहले पुलिस कमिश्नर भी बने. उन्होंने जुलाई 1978 से लेकर जनवरी 1980 तक ठाठ से दिल्ली में पुलिस कमिश्नरी की. तब किसी ने जे एन चतुर्वेदी जी का क्या बिगाड़ लिया था? चतुर्वेदी साहब बाद में जब अपने मूल आईपीएस कैडर यूपी में पहुंचे तो वहां भी वह, 1 अप्रैल 1984 से लेकर 17 सितंबर 1985 तक पुलिस महानिदेशक भी रहे.”

दिल्ली में बाहरी आईपीएस कमिश्नरों की भरमार

दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त टीआर कक्कड़ दिल्ली को कई साल से एजीएमयूटी कैडर का पुलिस आयुक्त न मिलने के बाबत, बात करते हुए आगे कहते हैं, “जेएन चतुर्वेदी जी ही क्यों? पीएस भिंडर (हरियाणा कैडर आईपीएस), एस एस जोग (महाराष्ट्र कैडर आईपीएस), अजय राज शर्मा (यूपी कैडर आईपीएस), राकेश अस्थाना (गुजरात कैडर के सीबीआई कांड के चर्चित आईपीएस) और अब तमिलनाडु कैडर के आईपीएस संजय अरोरा को ही देख लीजिए. सब के सब एजीएमयूटी कैडर से बाहर के वह आईपीएस हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने दिल्ली पुलिस की बागडोर सौंपी है.”

दिल्ली पुलिस में ऐसे भी नमूने

जिक्र जब दिल्ली को लंबे समय से अग्मूटी कैडर आईपीएस का पुलिस कमिश्नर नसीब न होने का हो तो, इसी से मिलते-जुलते दो चार और भी मजेदार किस्से हैं. मसलन, जबसे दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ (47 साल पहले 1 जुलाई 1978 को) तब से बाहरी राज्य कैडर के तो कई आईपीएस दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी का स्वाद चख-भोग ही चुके हैं. इसके अलावा दिल्ली पुलिस के फरवरी 2017 से फरवरी 2020 तक पुलिस आयुक्त रहे अमूल्य पटनायक, ऐसे भी दिल्ली के पहले पुलिस कमिश्नर बने जिन्हें, हिंदुस्तान की हूकुमत ने एक-दो महीने का उन्हें सेवा-विस्तार (Service Extension) दिया था.

अमूल्य पटनायक का काला इतिहास

उससे पहले और उसके बाद कभी दिल्ली पुलिस के इतिहास में शायद कभी किसी आईपीएस (पुलिस कमिश्नर) को सेवा-विस्तार नहीं मिला था. जैसे ही अमूल्य पटनायक को सेवा-विस्तार मिला वैसे ही उत्तर पूर्वी दिल्ली में सीलमपुर सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. जिनमें करीब 52-53 लोगों को कत्ल कर डाला गया. दिल्ली पुलिस की कमिश्नरी के इतिहास में अमूल्य पटनायक ही ऐसे सबसे बदनाम पुलिस आयुक्त भी साबित हुए जिनके कार्यकाल में हुए “तीस हजारी कांड” में, दिल्ली पुलिस के हजारों कर्मियों ने उन्हें दिल्ली पुलिस मुख्यालय के भीतर ही कथित रूप से कई घंटों तक बंधक बनाए रखा. दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन करके. दिल्ली पुलिस के इतिहास में शायद यही वह सबसे काला अध्याय रहा जब, दिल्ली पुलिस के जवानों ने ही अपने किसी पुलिस मुखिया (अमूल पटनायक) को पुलिस हेडक्वार्टर के भीतर ही कई घंटों तक मुंह छिपाकर बैठे रहने को मजबूर कर दिया होगा.

स्टेट मिरर स्पेशल
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