EXCLUSIVE: गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला को ‘लाश’ बनाने वाले अविनाश मिश्रा बोले- तो वह पुलिस व नेताओं पर और कहर ढहाता...
गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का 1998 में गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर किया था. यह वही कुख्यात अपराधी था जिसने यूपी के सीएम तक की हत्या की सुपारी ली थी. 27 साल बाद भी उसका एनकाउंटर यूपी पुलिस के लिए गर्व की कहानी है. स्टेट मिरर हिंदी ने रिटायर्ड डिप्टी एसपी अविनाश मिश्रा से बात की, जो उस ऑपरेशन का हिस्सा थे. अविनाश ने नेपाल से दिल्ली और गाजियाबाद तक चले इस खतरनाक मिशन के चौंकाने वाले किस्से साझा किए.

गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला (Gangster Shriprakash Shukla) को पुलिस के हाथों ढेर हुए 27-28 साल बीत चुके हैं. इसके बाद भी मगर उसे ‘हमने ढेर किया- हमने ढेर किया’ का कानफोड़ू शोरगुल उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh Police UPP) महकमे में गाहे-ब-गाहे आज भी सुनाई दे जाता है. उस जमाने के जिंदा बैठे तमाम पूर्व एसटीएफ (UP STF) कर्मी श्रीप्रकाश को अपनी-अपनी गोलियों से ठिकाने लगाने की आहें भरते नहीं थक रहे हैं. जिस पुलिस वाले को देखो वही यूट्यूब और सोशल मीडिया या फिर आज के जमाने में जन्मे, 'गूगल-सोशल-मीडिया पत्रकारों' को समझा-पढ़ा-बताकर अपनी अपनी दुकान सजाए बैठा है. मतलब यह कहा-समझा जाए कि गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला (Shriprakash Shukla Encounter) की मरने के बाद वही हालत कर डाली गई है यूपी पुलिस के गली-गलियारों में आज के दौर में कि जिंदा हाथी लाख का और मरा हाथी सवा लाख का.
आखिर इस सबके भीतर-बाहर का असल सच क्या है? क्यों आज भी कुछ पुलिस वाले जिनका श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर (Shriprakash Shukla Web Series) से दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं रहा. वे भी दाल-भात में मूसलचंद बनने की बेहया हरकतें अंजाम देने पर आमादा हैं? आज के दौर में जन्मे गूगल-यूट्यूब फेम सोशल-मीडिया पत्रकार आखिर क्यों नहीं श्रीप्रकाश शुक्ला की जन्म और क्राइम कुंडली पढ़ने-समझने को बैठते हैं, उन असली पुलिस वालों की संगत में जिन्होंने वास्तव में, श्रीप्रकाश शुक्ला को न केवल आमने-सामने आंखों में आंखें डालकर निडरता से घूरा-देखा था. वरन् नेपाल से यूपी और देश की राजधानी दिल्ली तक उसका पीछा करने के बाद. 22 सितंबर 1998 को उत्तर प्रदेश के ही गाजियाबाद जिले में मौजूद इंदिरापुरम थाना क्षेत्र (Indirapuram Ghaziabad) में (वसुंधरा क्षेत्र) दिन-दहाड़े चारों ओर से घेरकर गोलियों से भी भून डाला था.
आज के गूगल-यूट्यूब रिपोर्टर समझें
नई दिल्ली में मौजूद 'स्टेट मिरर हिंदी' के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने इन्हीं तमाम सवालों के जवाब के लिए शुक्रवार (19 जुलाई 2025) को लंबी एक्सक्लूसिव बात की. उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड उपाधीक्षक अविनाश मिश्रा (Deputy Avinash Mishra) से जो, श्रीप्रकाश शुक्ला को ठोकने वाली टीम में सब-इंस्पेक्टर के रूप में शामिल थे. ताकि आज के गूगल-यूट्यूब के बलबूते सोशल-मीडिया जर्नलिस्ट बनी ‘पत्रकारिता की जमात’ को पता चल सके कि आखिर, इस कदर के खौफनाक-दुर्दांत श्रीप्रकाश शुक्ला के अंत का 28 साल पुराना अंदर का सच था क्या?
पतली-दुबली काठी का गजब खुराफाती
याद कीजिए अब से करीब 30 साल पहले यानी 1990 के दशक के मध्य का वक्त. बदनाम और दुबली-पतली कद-काठी के एकदम मरताऊ-मरियल से ठेठ देहाती, गली-कूंचे के सड़क छाप श्रीप्रकाश शुक्ला की शक्ल. जिसे पहली नजर में क्या महीनों देखने-बरतने के बाद भी कोई यह नहीं समझ सकता था कि, यही बेदम-मामूली सी कद-काठी का श्रीप्रकाश शुक्ला एक दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (UP Chief Minister) कल्याण सिंह (UP CM Kalyan Singh) को ही ‘गोलियों’ से भून डालने की भी ‘सुपारी’ ले बैठेगा. आपराधिक मानसिकता से मंझे हुए ऐसे खूनी-दिमाग गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला (Gangster Shriprakash) ने एक बार घर देहरी लांघकर जब अपराध की चौपाल पर पांव रखा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. तब तक जब तक कि 22 सितंबर 1998 को उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ (UP Police STF) टीमों ने उसे, अपनी गोलियों से छलनी करके अकाल मौत की नींद सुलाकर दुनिया से विदा न कर दिया.
‘रंगबाज’ और ‘इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा’
श्रीप्रकाश शुक्ला का असल में एनकाउंटर करने वाली टीम का अहम हिस्सा रहे तब के दबंग दारोगा और आज के रिटायर्ड डिप्टी एसपी अविनाश मिश्रा व गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की सच्ची कहानी पर वेब सीरीज ‘रंगबाज़’ (Web Series Rangbaaz) भी बन चुकी है. उसके बाद अविनाश मिश्रा (Inspector Avinash Mishra) के पुलिसिया जीवन की सच्ची कहानी पर ही नीरज पाठक (Director Neeraj Pathak) बेव सीरीज 'इंस्पेक्टर अविनाश' बना चुके हैं. जिसमें इन्हीं असली अविनाश मिश्र की भूमिका रणदीप हुड्डा (Actor Randeep Hooda) ने और फिल्म में अविनाश मिश्र की पत्नी की भूमिका में उर्वशी रौतेला (Actress Urvashi Rautela) के अलावा अमित स्याल, अभिमन्यु सिंह, शालीन भनोट, फ्रेडी दारूवाला, राहुल मिश्रा, अध्ययन सुमन आदि-आदि कलाकार भी थे.
अब तक अपना कोई यूट्यूब चैनल नहीं
अमूमन खुद सोशल मीडिया (Social Media) से दूर ही रहने वाले ऐसे जाबांज डिप्टी एसपी अवनीश मिश्रा बताते हैं स्टेट मिरर हिंदी द्वारा काफी कुरेदे जाने पर बताते हैं, “श्रीप्रकाश शुक्ला के मरने से पहले और उसके मरने के बाद किसने क्या कहा, क्या करा? मुझे इससे कोई लेना देना नहीं. हां, श्रीप्रकाश शुक्ला और मेरा आमना-सामना जीवन में कुल तीन बार हुआ. दो बार नजरें मिलने के बाद भी, मौके की नजाकत को समझते हुए हम दोनों अपना-अपना रास्ता बदल कर चले गए. अंतिम बार जब मेरा और श्रीप्रकाश शुक्ला का सामना हुआ तो, फिर वही श्रीप्रकाश की मुझसे और मेरी श्रीप्रकाश से अंतिम भेंट सिद्ध हुई. तारीख थी 22 सितंबर 1998, जगह थाना इंदिरापुरम का वसुंधरा इलाका, जिला गाजियाबाद (Ghaziabad Police), उत्तर प्रदेश. उस दिन दोपहर के वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके दो साथियों की सहित कुल जमा मेरे और एसटीएफ की बाकी टीम-सदस्यों के सामने पड़ी थीं तीन लाशें. उनके खून सने हथियार और श्रीप्रकाश शुक्ला की नीले रंग की वह कार जिसमें, हमारी टीम की गोलियों ने इतने छेद कर दिए थे जिनकी बाद में गिनती करने में भी काफी वक्त लगा.”
कद्दावर नेता भी कन्नी काटते थे
जिस श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम से हरिशंकर तिवारी (Hari Shankar Tiwari Politician) जैसे पूर्वांचल का कद्दावर दबंग नेता खौफ खाते थे या कहूं कि कन्नी काटते थे. उस श्रीप्रकाश शुक्ला को एसटीएफ (UP STF) ने उसी की भाषा-स्टाइल में उसकी मंजिल पर पहुंचाया था. ताकि आइंदा फिर कोई श्रीप्रकाश शुक्ला बनने का सपना भी देखे तो, यूपी एसटीएफ के नाम से उसकी ‘घिग्घी’ एक बार तो जरूर बंध जाए. श्रीप्रकाश शुक्ला को ढेर करने वाली टीम के अहम सदस्य रह चुके तब के दारोगा और आज के रिटायर्ड डिप्टी एसपी अविनाश मिश्र कहते हैं, “दरअसल दुस्साहसी श्रीप्रकाश शुक्ला को शांत करने के पीछे मकसद यह भी था कि कानून और पुलिस साबित कर सकें कि बदमाश और बदमाशी की उम्र बहुत छोटी होती है. और उस जमाने में जब पुलिस के पास संसाधनों का अभाव था. श्रीप्रकाश शुक्ला को बिना किसी अपने (यूपी एसटीएफ की टीम के) नुकसान के ठंडा कर लेना अपने आप में बड़ी बात थी.”
सीमित संसाधनों वाली ताकतवर STF
श्रीप्रकाश शुक्ला से अपनी आमने-सामने की पहली खतरनाक मुलाकात का बेबाक जिक्र करते हुए बेखौफ डिप्टी एसपी अविनाश मिश्र (Avinash Mishra Sub Inspector) बताते हैं, “श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके जैसों को काबू करने के लिए बेहद सीमित या कहिए न के बराबर संसाधनों संग, उत्तर प्रदेश पुलिस के चंद पुलिसकर्मियों को शामिल करके स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ बन चुकी थी. मैं कैसे उस जमाने में स्पेशल टास्क फोर्स में पहुंचा यह कहानी श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर से भी ज्यादा दिलचस्प और यादगार है. जिसकी चर्चा मैं स्टेट मिरर हिंदी के साथ फिर कभी करुंगा. हां, मुझे इस तरह के खतरनाक-जोखिमपूर्ण कामों में हाथ डालकर हर हाल में उनमें सफलता पाने का चस्का, उत्तर प्रदेश पुलिस में नया-नया दारोगा बनते ही मेरठ के दिल्ली गेट थाने की पहली पोस्टिंग से ही लगा हुआ था.
तत्कालीन DIG विक्रम सिंह का 'मूल-मंत्र'
यह उस वक्त की बात है जब मेरठ रेंज के पुलिस उप-महानिरीक्षक यानी डीआईजी हुआ करते थे 1974 बैच के दबंग और बेबाक आईपीएस डॉ. विक्रम सिंह (Retd DGP Dr Vikram Singh). जो बाद में न केवल देश में यूपी पुलिस की सबसे पहली बनी स्पेशल टास्क फोर्स के आईजी रहे, अपितु उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (UP DGP) भी बने. विक्रम सिंह सर के सानिध्य में मैंने एक चीज सीख और पकड़ ली कि, पुलिस की नौकरी में किसी पर आंख मूंदकर विश्वास मत करो. अगर विश्वास कर ही लो तब फिर भी उसे हमेशा शक की नजर से देखो जिस पर विश्वास किया है. दूसरा विक्रम सिंह सर से पुलिसिंग का जो मूलमंत्र मैंने लिया वह था, “अगर कुछ ठान लो तो ईमानदारी के साथ उस ठाने हुए को खुद ही पूरा करने ही कोशिश भी करो. सफलता मिलेगी या असफलता यह भविष्य के गर्भ में छोड़ दो.”
श्रीप्रकाश की चाहत में नेपाल यात्रा
विशेष बातचीत को आगे बढ़ाते हुए ऐसे पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट (Encounter Specialist) और यूपी पुलिस व उसकी एसटीएफ के आज तक भी (रिटायरमेंट के बाद) 'सिरमौर' ही बने रहने वाले डिप्टी एसपी अविनाश मिश्र कहते हैं, “मुझे भनक लग गई कि श्रीप्रकाश शुक्ला नेपाल में है. हमारे सामने मुश्किल यह थी कि हम नेपाल में हथियार लेकर प्रवेश नहीं कर सकते थे. इसके लिए हमने नेपाल पुलिस से सेटिंग की. नेपाल पुलिस ने हमसे वायदा किया हम उनके देश में अपने सरकारी हथियार लेकर नहीं घुसेंगे. हां, साथ ही नेपाल पुलिस ने हमें श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचाने में अपने स्तर से हर-संभव मदद का भरोसा दिया. सेटिंग के बाद मैं, इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह तेवतिया (अब स्वर्गवासी) टीम में बाकी आठ-दस अन्य पुलिसकर्मियों- मुखबिर (जो श्रीप्रकाश शुक्ला को पहचानता था) के साथ सादा-लिबास में आम आदमी की तरह नेपाल जा पहुंचे.”
जब पहली बार 'जिंदा' श्रीप्रकाश से आंख मिली
“नेपाल (Nepal Trip) में हम लोग एक दिन मुखबर के साथ सादा कपड़ों में सड़क पर घूम रहे थे. तभी हमारे साथ चल रहा मुखबिर धीरे से मेरी टीम से बोला, सर देखो देखो वह है श्रीप्रकशुआ (श्रीप्रकाश शुक्ला). मैंने जब नजर उठाकर देखा तो श्रीप्रकाश शुक्ला अपने एक साथी के साथ मेरी टीम से करीब 200 मीटर की दूरी पर सड़क के दूसरी ओर मौजूद नेपाली पेट्रोल पंप पर कार में ईंधन भरवा रहा था. इत्तिफाकन उसी समय श्रीप्रकाश शुक्ला की नजर भी मेरे ऊपर और मेरी टीम पर पड़ गई. हमसे नजर मिलते ही वह बेचैन हुआ तो उसके शारीरिक हाव-भाव-भंगिमा एकदम सतर्क हो जाने वाले अंदाज में बदल गईं.
मौके की नजाकत भांप गया श्रीप्रकाश
बहरहाल, हमारे पास चूंकि नेपाल में हथियार तो थे नहीं. ताकि हम उसी वक्त उसे मोर्चा लेने के लिए ललकार पाते. लिहाजा नाजुक मौके का फायदा उठाकर श्रीप्रकाश और उसका दोस्त तुरंत वहां से निकल गए. वह श्रीप्रकाश शुक्ला से मेरी बेहद कम देर की अनचाही सी मुलाकात थी. तब उस दिन उस वक्त पहली बार मैंने इतने करीब से उस श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा हालत में अपनी आंखों से देखा था जिस, श्रीप्रकाश शुक्ला ने देश और सूबे के नेताओं, पुलिस-कानून की नाक में दम कर रखा था.” स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत के दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे दुस्साहसिक अपराधी से, आंखें चार होने का वह किस्सा बेबाकी से बयान करते हैं यूपी पुलिस एसटीएफ के दबंग दारोगा अविनाश मिश्रा.
नेपाल पुलिस के बदले रुख से हम हैरान
नेपाल में श्रीप्रकाश शुक्ला से उस पहली मुलाकात की बेहद रोमांचक कहानी को आगे बढ़ाते हुए अविनाश मिश्रा कहते हैं, “चूंकि नेपाल पुलिस (Nepal Police) ने हमें बिना अपने विभागीय हथियारों के खाली हाथ ही अपने देश की हद में घुसने देने की इजाजत दी थी. इस आश्वासन के साथ कि वह (नेपाल पुलिस) श्रीप्रकाश को पकड़वाने में हमें हर-संभव (यूपी एसटीएफ की टीम को) अपने देश में देगी. लिहाजा जैसे ही नेपाली पेट्रोल पंप पर हमने श्रीप्रकाश शुक्ला को अपनी आंखों के सामने से जाते देखा तो हमारी धड़कन और बेचैनी बढ़ गई. हम लोग (यूपी एसटीएफ की टीम) हांफते हुए किसी तरह नेपाल के पास ही मौजूद थाने में पहुंचे. थाने वाले हमारे साथ उस होटल में पहुंचे जहां श्रीप्रकाश शुक्ला साथी के साथ छिपा हुआ था. हम होटल पहुंचे तो वहां श्रीप्रकाश शुक्ला और उसका साथी हमें नहीं मिले. हां, इसके अचानक बाद ही नेपाल पुलिस के बदले हुए व्यवहार ने हमें हक्का-बक्का कर डाला.
एक ओर कुआं दूसरी तरफ खाई
नेपाल पुलिस हमसे बोली कि आप लोग (श्रीप्रकाश शुक्ला की तलाश में नेपाल में मौजूद यूपी पुलिस एसटीएफ टीम) जितनी जल्दी हो तुरंत हमारा देश (नेपाल) छोड़कर भारत में भाग जाओ. हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते हैं. अब हमारे सामने यह समस्या थी कि जब श्रीप्रकाश शुक्ला हमने नेपाल में अपनी आंखों से देख भी लिया है. तो उसे बिना पकड़े कैसे और किस मुंह से वापिस अपने देश खाली हाथ लौटें? दूसरे यह समस्या थी कि अचानक जब नेपाल पुलिस ही वायदा करने के बाद भी हमारी मदद करने से साफ मुकर गई. तब हम अब उसे कैसे अपनी मदद के लिए तैयार करें. फिर हमने सोचा कि निहत्थे नेपाल में फंस जाने से तो वक्त रहते सुरक्षित भारत वापिस निकलने में ही भलाई है.
नेपाली SSP को श्रीप्रकाश ने धमकाया
जब हम नेपाल से खाली हाथ वापस लौटने की तैयारी कर ही रहे थे. तब मैं नेपाल पुलिस थाने के एक कर्मचारी को बाहर की ओर ले गया. उससे पूछा कि आखिर आप लोग हमारी मदद करने से एकदम अचानक कैसे और क्यों पीछे हट गए? तब नेपाल पुलिसकर्मी ने मुझे बताया था कि उसके एसएसपी (नेपाल पुलिस के जिला स्तर के अधिकारी) को श्रीप्रकाश शुक्ला ने फोन करके धमकाया था कि, भारत की पुलिस (यूपी एसटीएफ की हमारी वह टीम जो नेपाल में श्रीप्रकाश शुक्ला की तलाश मे छिपी हुई थी) को नेपाल से तुरंत बाहर भगाओ. वरना वह (श्रीप्रकाश शुक्ला), नेपाल में बेकसूरों को गोलियों से गाजर-मूली की तरह भूनकर कत्ल-ए-आम शुरू कर देगा. श्रीप्रकाश शुक्ला की नेपाली पुलिस अफसर को दी गई उसी धमकी का परिणाम था कि, नेपाल पुलिस हमें (यूपी एसटीएफ) तुरंत अपने देश से बाहर करने पर अड़ गई.” उस दुश्वार वक्त का बेबाकी से जिक्र करते हैं यूपी पुलिस के रिटायर्ड डिप्टी एसपी अविनाश मिश्रा.
इसलिए श्रीप्रकाश को दिल्ली में नहीं छेड़ा
22 सितंबर 1998 को जिस दिन हमें पूरी उम्मीद थी कि, उस दिन हमारा आमना-सामना श्रीप्रकाश से होगा ही. जिंदा श्रीप्रकाश से हमारा आमना-सामना हुआ भी दक्षिणी दिल्ली में. मगर चूंकि जहां श्रीप्रकाश से हमारा दूसरी बार दिल्ली में आमना-सामना हुआ वहां, हमने तो उसे देख लिया. वह हमें नहीं देख सका. उसके साथ नीले रंग की कार में दो और लड़के भी मौजूद थे. चूंकि दिल्ली के उस इलाके में भीड़ बहुत थी. लिहाजा हम लाख चाहकर भी श्रीप्रकाश को सामने पाने के बाद भी उसके ऊपर हाथ नहीं डाल सके. हमें इसकी पूरी-पूरी आशंका थी कि दिल्ली की भीड़ में हमने उसे छेड़ा तो वह खुद को बचाने के लिए किसी भी हद तक हमारे ऊपर गोलियां झोंक सकता था. बिना आमजन की सुरक्षा की चिंता के. हम चूंकि कानून और वर्दी से बंधे हुए थे. लिहाजा हम उस दुर्दांत अपराधी की तरह नहीं सोच सकते थे. हमें श्रीप्रकाश से पहले भीड़ में शामिल बेकसूर इंसान के जान की परवाह-चिंता थी.”
'जिंदा' श्रीप्रकाश से वह अंतिम मुलाकात
यूपी एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में दो अन्य साथियों संग ढेर कर डाले गए श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी के चंद अंतिम घंटों की बेबाक बयानी करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक अविनाश मिश्र आगे बताते हैं, “हमारी टीम (तत्कालीन एसएसपी एसटीएफ अरुण कुमार झा, एडिश्नल एसपी सतेंद्रवीर सिंह, क्षेत्राधिकारी राजेश पाण्डेय, इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह तेवतिया और सब-इंस्पेक्टर मैं खुद व अन्य कई पुलिसकर्मी) 22 सितंबर 1998 को दक्षिणी दिल्ली से उसका पीछा करते हुए करीब आधे-पौन घंटे में यूपी बार्डर (तब नेशनल हाईवे 24 अब 9) की बत्ती पर पहुंच गए. अब तक शायद श्रीप्रकाश को शक हो चुका था कि हम पुलिस वाले हैं. अचानक उसने बेहद तेज गति से अपनी कार मोहन नगर (कौशांबी और वैशाली के बीच वाला डाबर रोड) वाले रास्ते पर मोड़ दी.
श्रीप्रकाश की ‘मौत’ पर पुलिस की मेहनत भारी
एक बार को उसकी कार की अंधाधुंध स्पीड को देखकर हमें लगा कि शायद वह हमारी आंखों से ओझल हो जाएगा. फिर भी हमारी ईमानदार कोशिश और श्रीप्रकाश शुक्ला की सी ही हमारी टीम की चुस्ती-फुर्ती काम आई. हमें (पुलिस) अपने पीछे लगा हुआ देखकर श्रीप्रकाश शुक्ला हड़बड़ा चुका था. वह किसी तरह से हमारी आंखों से ओझल होना चाहता था. इसी जल्दबाजी में उस मास्टरमाइंड क्रिमिनल ने अपनी कार इंदिरापुरम् थाना क्षेत्र के वसुंधरा इलाके के सूने-वीरान पड़े इलाके की ओर इतनी तीव्र गति से मोड़ दी कि, चंद फर्लांग मुड़ते ही उसकी कार बिजली के एक खंबे से टकराकर बंद हो गई.
और फिर श्रीप्रकाश शुक्ला मय अपने दो गैंगस्टर साथियों के साथ उस मुठभेड़ में मारा गया. कहूं कि जिंदा और मुर्दा दोनों ही तरह के श्रीप्रकाश शुक्ला से मेरी वह तीसरी व अंतिम मुलाकात थी.” महाभारत में कुरुक्षेत्र का आंखों देखा मंजर धृतराष्ट्र को सुनाने वाले संजय की तरह लगातार बिना रुके, श्रीप्रकाश शुक्ला के जन्म से लेकर एनकाउंटर में उसको ढेर करने तक की कहानी सुनाते-सुनाते यूपी के पूर्व दबंग पूर्व डिप्टी एसपी अविनाश मिश्रा इन शब्दों के साथ....खामोश हो जाते हैं....
“ताक में दुश्मन भी थे और दोस्त-ए-अजीज़ भी
पहला तीर किसने मारा यह कहानी फिर कभी....”