Akhlaq Lynching Case: योगी राज में अधूरी रह गई असली कातिलों की तलाश, हाथ लगे बेकसूरों को 'मुलजिम' बना डाला!
ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में 2015 में हुए मोहम्मद अखलाक लिंचिंग कांड को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट वकील डॉ. एपी सिंह का कहना है कि इस मामले में अब तक असली गुनहगार सामने नहीं आए हैं. उनके मुताबिक, रात के अंधेरे में भीड़ द्वारा अंजाम दी गई इस घटना में पुख्ता सबूतों और तकनीकी साक्ष्यों की कमी रही. जांच एजेंसी द्वारा बनाए गए आरोपी शायद निर्दोष हों और ऐसे संवेदनशील मामलों में जल्दबाजी से की गई जांच न्याय को कमजोर करती है.;
'योगी राज में उत्तर प्रदेश में यूं तो किसी भी मामले में आसानी से गड़बड़ कर पाना मुश्किल है. इसके बाद भी मगर देश के शर्मनाक कहूं या फिर लोमहर्षक ग्रेटर नोएडा स्थित बिसाहड़ा लिंचिंग कांड में असली मुजरिमों तक पहुंच पाना आसान काम नहीं होगा. क्योंकि अब से 10 साल पहले 28 सितंबर 2015 को रात दस बजे अंजाम दिए गए उस कांड में भीड़ शामिल थी.
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यह सूबे में योगी की ही मौजूदा हुकूमत की हिम्मत का कमाल था जो इस कांड में फंसे मुलजिम/आरोपी पक्ष की उन दलीलों को मानने से कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया, जिसमें मुकदमे को बेदम बताते हुए कोर्ट से मुकदमा खारिज करने का आवेदन किया गया था. जज ने बचाव पक्ष की याचिका को कानूनी तौर पर बेदम बताते हुए खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि मुकदमा आगे जारी रहेगा.”
भूसे में सुई तलाशने जैसा काम है
यह तमाम बेबात बातें बुधवार को उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ क्रिमिनल और बचाव पक्ष के जाने माने वकील डॉ. ए पी सिंह ने कहीं. वह नई दिल्ली में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से विशेष बात कर रहे थे. उनके मुताबिक, मेरे हिसाब से तो इस शर्मनाक कांड में न पहले न ही अब तक असली मुलजिम गिरफ्तार हुए हैं. जांच एजेंसी द्वारा जो लोग बहैसियत मुलजिम गिरफ्तार किए गए हैं, वे असली मुलजिम ही हैं. मुझे तो इस पर भी शक है. क्योंकि जिस जगह रात के अंधेरे में वह लोमहर्षक हत्याकांड अंजाम दिया गया वहां, न तो सीसीटीवी कैमरों की समुचित व्यवस्था थी. न ही और कोई ऐसे तकनीकी साधन जिनसे पुख्ता तौर पर तय हो सके कि, मोहम्मद अखलाक की हत्या में कौन कौन लोग वास्तव में शामिल रहे हैं. ऐसे में तो यही लगता है कि अखलाक लिंचिंग कांड में असली मुजरिमों तक पहुंचना जांच एजेंसी के लिए भूसे में से सुई तलाशने जैसा ही लगा होगा.
बड़े भाजपा नेता का नाम शामिल...
दिल्ली से सटे यूपी के हाईटेक शहर ग्रेटर नोएडा के (दादरी) बिसाहड़ा गांव में घटित यह वही अखलाक लिंचिंग कांड है जिसमें, मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने रात के वक्त घेरकर मार डाला था. भीड़ की दलील थी कि इलाके से चोरी हुए गाय के बछड़े को कत्ल करके उसका मांस अखलाक और उसके परिवार वालों ने कथित रूप से खाया था. मुकदमे में पॉलिटिकल ट्विस्ट तब आ गया था जब इसमें भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता के बेटे विशाल राणा और उसके एक करीबी रिश्तेदार को जांच एजेंसी ने मुलजिम बनाया. लिंचिंग में बड़े बड़े घरानों से जुड़े लोगों का नाम सामने आने पर ही अंदेशा होने लगा था कि इस मुकदमे में पीड़ित परिवार को न्याय शायद ही मिल सकेगा.
मुलजिम बनाए गए लोग बेगुनाह तो नहीं...!
अब बवाल तब मचा है जब यूपी सरकार ने इसी साल यानी अक्टूबर 2025 में संबंधित अदालत में मुकदमे में सभी मुलजिमों के खिलाफ आरोप वापिस लेने के लिए, ट्रायल कोर्ट में आवेदन दायर किया. कोर्ट ने मगर बचाव पक्ष की दलीलों को ठुकराते हुए मुकदमा आगे जारी रखने का आदेश पारित कर दिया. 20 मार्च 2020 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी चढ़ाए जा चुके निर्भया हत्याकांड के मुजरिमों के पैरोकार और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर डॉ. ए पी सिंह कहते हैं, “भारत का कानून कहता है कि सौ गुनाहगार छूट जाएं मगर एक बेगुनाह मुजरिम नहीं बनना चाहिए. आने वाले समय में देख लीजिए अब तक इस मुकदमे को मैंने जो देखा है उससे लगता है कि, जांच एजेंसी जिन 18-19 लोगों को बीते 10 साल इस मामले में मुलजिम बनाए घूम रही है. वे सब छूट जाएंगे. क्योंकि मुझे तो यह सब असली गुनाहगार लग ही नहीं रहे हैं.”
ऐसे मुकदमे बेहद टेढ़े और संवेदनशील होते हैं
आप कह रहे हैं कि मोहम्मद अखलाक लिचिंग कांड में जांच एजेंसी द्वारा मुलजिम बनाए गए आरोपी असली मुजरिम नहीं है. तो फिर सवाल यह पैदा होना लाजिमी है कि क्या आइंदा अब कभी भी उस लोमहर्षक हत्याकांड के मुजरिम सजा पाएंगे ही नहीं? सवाल के जवाब में वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर बोले, “अदालतें मीडिया ट्रायल पर नहीं चला करती हैं. जज को मुकदमे की फाइल पर मौजूद गवाह-सबूत देख कर आगे बढ़ना होता है. यही वजह है कि जांच एजेंसी द्वारा दाखिल फाइल और दस्तावेज ही किसी को भी मुजरिम करार दिलवा देंगे. ऐसा नहीं है. इन दस्तावेजों गवाह और सबूतों को कोर्ट के सामने सिद्ध भी जांच एजेंसी को ही करना है. मुझे लगता है कि मोहम्मद अखलाक हत्याकांड बेहद उलझा हुआ मामला है. जिसकी जांच बहुत जल्दबाजी में की गई है. इस कदर के संवेदनशील और हाईप्रोफाइल मुकदमे जल्दबाजी में अदालत में ले जाना न्याय की नजर से घातक साबित हो होते हैं.”