क्‍यों अधर में लटका राजस्‍थान के गलता पीठ का भविष्‍य? जानें क्या है पूरा विवाद

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल गलता पीठ अपने पुराने मंदिर की संपत्ति वीवाद को लेकर एक बार फिर से सुर्खियों में है. एक बार फिर से संप्रदायों के बीच पीठ को लेकर बहस छिड़ी है;

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Edited By :  सार्थक अरोड़ा
Updated On : 17 Dec 2024 5:05 PM IST

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल गलता पीठ अपने पुराने मंदिर की संपत्ति वीवाद को लेकर एक बार फिर से सुर्खियों में है. हालांकि साल 2024 में राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश देते हुए अवधेशाचार्य को हटाकर गलता पीठ का प्रशासन अपने हाथ में लेने का आदेश दिया था. लेकिन एक बार फिर से संप्रदायों के बीच पीठ को लेकर बहस छिड़ी है. इस कारण पीठ का भविष्य अधर में लटका है.

दरअसल गलता पीठ पर पारंपरिक रूप से वैष्णववाद के रामानुज संप्रदाय का नियंत्रण रहा है. लेकिन कोर्ट ने आदेश के बाद प्रशासन अपने हाथ में लेने को कहा. वहीं हाल ही में एक राम कथा के कार्यक्रम के दौरान रामानंदी साधु, ने हाल ही में मांग की कि पीठ को एक रामानंदी पदाधिकारी की अध्यक्षता वाले सार्वजनिक ट्रस्ट को सौंपा जाए.

सरकार को था नियुक्ति का अधिकार

इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि पीठ कभी भी राज्य के सीधे नियंत्रण में नहीं था. लेकिन अदालत ने कहा कि साल 2006 में रामोदराचार्य की मृत्यु के बाद राज्य सरकार को ही महंत नियुक्त करने का अधिकार था. इसी के साथ सरकार को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पीठ की देखभाल करने की अनुमति मिल चुकी है.

डीसी ने किया कमेटी का गठन

वहीं अदालत के आदेश के बाद राज्य सरकार ने देवस्थान विभाग को जो धार्मिक संस्थानों से संबंधित सभी मामलों की देखभाल करता है. सरकार ने उन्हें जयपुर जिला कलेक्टर को गलता जी मंदिर ट्रस्ट का प्रशासक नियुक्त किया. वहीं मंदिर की देखभाल करने और देखरेख के लिए डीसी ने एक कमेटी का गठन किया है. दरअसल गलता पीठ के प्रबंधन को लेकर विवाद छिड़ा था. जिसके बाद से वहां के पूर्व महंत अवधेशाचार्य को गलता पीठ से हटा दिया गया.

आपको बता दें कि साल 1943 में जब रामोदराचार्य को जयपुर राज्य द्वारा महंत के रूप में नियुक्ति के बाद साल 1963 में तत्कालीन नए राजस्थान पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट एक्ट के तहत, जैसा कि कानून की मांग थी. पीठ के रजिस्टर होने के बाद उन्होंने महंत के पद की नियुक्ति को वंश के अनुसार आगे बढ़ाने की छूट मांगी थी. हालांकि इसे कई लोग मंदिर के नियमों के खिलाफ मानते हैं. कुछ समय के बाद रामोदराचार्य ने साल 1999 में ट्स्ट के नियमों में बदलाव किया था.

साल 1999 में हुआ नियमों में बदलाव

जानकारी के अनुसार साल 1999 में हुए बदलाव के मुताबिक इसे परिवार द्वारा प्रंबधित किया गया था. उस समय तक ये सुनिश्चित किया गया कि उनके वंशजों का मंदिर की संपत्ति पर नियंत्रण होगा. वहीं साल 2006 में जब अवधेशाचार्य के पुत्र को महंत के रूप में नियुक्त किया गया तो अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई और सरकार ने गलता पर नियंत्रण लेने की मांग कही और कोर्ट ने सरकार के ही पक्ष में फैसला सुनाया था.

रामानंदी को सौंपी जाए पीठ

वहीं 14 नवंबर को राम कथा का आयोजन हुआ था.इस आयोजन में सीएम भजन लाल शर्मा और जगतगुरू रामभद्राचार्य मौजूद थे. इस दौरान एक प्रमुख रामानंदी साधु, ने हाल ही में मांग की कि पीठ को एक रामानंदी पदाधिकारी की अध्यक्षता वाले सार्वजनिक ट्रस्ट को सौंप दिया जाए. उन्होंने उस दौरान ये दावा किया था कि उन्होंने भजनलाल शर्मा को सत्ता तक पहुंचाने को प्रभावित किया था. वहीं एक वीडियो में भाजपा राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवारी को सरकार द्वारा पीठ के अधिग्रहण के लिए सीएम शर्मा की प्रशंसा करते हुए दिखाया गया था.

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