उम्र नहीं, जिद होनी चाहिए! 84 साल की उम्र डॉ. गिरीश मोहन गुप्ता ने हासिल की MBA की डिग्री, अब PHD है अगला कदम

डॉ. गुप्ता ने कई कंपनियां खोली. उन्होंने भारतीय रेलवे, डिफेन्स और प्राइवेट सेक्टर के लिए सुरक्षा से जुड़ी चीजें बनाईं. उनकी कंपनियों ने 345 से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया और भारत को करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा बचाने में मदद की.;

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Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 29 April 2025 8:06 AM IST

नई दिल्ली के आईआईएम-संबलपुर के दीक्षांत समारोह में, 84 साल के डॉ. गिरीश मोहन गुप्ता स्टेज पर डिग्री लेने पहुंचे, हर कोई हैरान था इस उम्र में एमबीए!.डॉ. गुप्ता ने मुस्कुराते हुए कहा, 'सीखने की कोई उम्र नहीं होती. जब तक दिल में जिज्ञासा जिंदा है, हर दिन कुछ नया सीखने का मौका है.'

उन्होंने एमबीए वर्किंग प्रोफेशनल्स प्रोग्राम में 7.4 का शानदार CGPA हासिल किया और अपने बैच के सबसे मेहनती छात्रों में से एक बने. हफ्ते भर काम और वीकेंड की पढ़ाई को संभालना आसान नहीं था, लेकिन डॉ. गुप्ता ने इसे अपने जुनून से मुमकिन कर दिखाया. वे कहते हैं, 'मैं हमेशा सबसे पहले क्लास पहुंच जाता था. फिटनेस भी उनके लिए उतनी ही जरूरी है, वे आज भी स्वमिंग और बैडमिंटन खेलते हैं.

'मेक इन इंडिया' की भावना 

डॉ. गुप्ता का सफर एक छोटे से शहर शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) से शुरू हुआ था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से की और फिर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में काम किया. वहां उन्होंने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के लिए खास मशीनें बनाईं. उस वक्त संसाधन कम थे, लेकिन जज्बा पूरा था. वे कहते हैं, 'हम तब भी 'मेक इन इंडिया' की भावना के साथ काम करते थे.'

डॉ. गुप्ता ने दिया रोजगार 

परमाणु क्षेत्र में शानदार काम करने के बाद, डॉ. गुप्ता ने कई कंपनियां खोली. उन्होंने भारतीय रेलवे, डिफेन्स और प्राइवेट सेक्टर के लिए सुरक्षा से जुड़ी चीजें बनाईं. उनकी कंपनियों ने 345 से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया और भारत को करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा बचाने में मदद की. 1986 में, भारत के राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने उन्हें 'राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित किया. उनका आविष्कार, पंच्ड टेप कंसर्टिना कॉयल, पंजाब में आतंकवाद से निपटने में बहुत मददगार साबित हुआ था.

हमेशा सीखते रहो 

आज भी डॉ. गुप्ता को देश के बड़े इनोवेटर्स में गिना जाता है. उनकी कंपनी को 2022 में इंडस्ट्रियल इनोवेशन अवार्ड भी मिला. इतनी अचीवमेंट्स के बाद भी डॉ. गुप्ता बेहद सरल और विनम्र हैं. वे कहते हैं, 'डिग्री और अवार्ड सिर्फ रास्ते के पड़ाव हैं, असली मंजिल तो हमेशा सीखते रहना है.' डॉ. गुप्ता के बच्चे और पोते भारत और विदेशों में बसे हैं. फिर भी वे युवाओं को सलाह देते हैं, 'जहां चाहो पढ़ाई करो, लेकिन अपने देश से जुड़ाव कभी मत छोड़ो। देश की सेवा करना गर्व की बात है.'

आखिरी सांस तक सीखता रहूंगा

अब वह मैनेजमेंट में पीएचडी करने की तैयारी कर रहे हैं. उम्र उनके लिए कभी रुकावट नहीं बनी. वे मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'अगर दिल में सीखने की आग है, तो पूरी जिंदगी एक क्लासरूम बन जाती है. मैं आखिरी सांस तक सीखता रहूंगा. उनकी चमकती आंखों और मजबूत आवाज में यही जज्बा साफ झलकता है. 

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