राघोपुर में क्या तेज प्रताप करेंगे खेला? भाई के गढ़ में दिखाया पावर शो, रैली में जुटी भारी भीड़ के बाद कयासों का बाजार गर्म
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राघोपुर में तेज प्रताप यादव की रैली ने माहौल गर्मा दिया है. यह इलाका तेजस्वी यादव का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, लेकिन बड़े भाई के समर्थन में उतरे उम्मीदवार प्रेम कुमार ने समीकरण बदल दिए हैं. यादव वोट बैंक में संभावित बिखराव से तेजस्वी की जीत मुश्किल हो सकती है. राजनीतिक विश्लेषक इसे सिर्फ परिवार का मतभेद नहीं, बल्कि चुनावी जमीन पर सीधी चुनौती मान रहे हैं.;
बिहार चुनाव के रण में सबसे अप्रत्याशित मोड़ वहीं से आया है, जहां इसकी सबसे कम उम्मीद थी. राघोपुर... तेजस्वी यादव की पारंपरिक सीट, जो अब तक उनकी अजेय राजनीतिक धरती मानी जाती थी. लेकिन इस बार खेल बदलने की शुरुआत परिवार के भीतर से ही हो गई है. तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल के उम्मीदवार के समर्थन में ऐसा शक्ति प्रदर्शन किया, जिसने पूरे बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है.
कहानी सिर्फ एक रैली या भीड़ की नहीं, बल्कि उस संभावित राजनीतिक भूकंप की है जो पहली बार तेजस्वी यादव के लिए "हार का डर" पैदा कर सकता है. सवाल अब यह है कि क्या राघोपुर की भीड़ तेजप्रताप की ताकत दिखा रही है या तेजस्वी की पकड़ ढीली होने का संकेत दे रही है? जो सीट कभी यादव परिवार की इमोशनल और राजनीतिक धरोहर समझी जाती थी, वहीं अब परिवार बनाम परिवार का खुला मुकाबला खड़ा होता दिखाई दे रहा है.
तेज प्रताप का पावर शो और उसका असर
राघोपुर में तेज प्रताप की जनसभा सिर्फ भीड़ का इकट्ठा होना नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक संदेश था, “मैं भी मैदान में हूं.” जनशक्ति जनता दल के उम्मीदवार प्रेम कुमार के समर्थन में जुटी भीड़ ने उस नैरेटिव को झटका दिया, जिसमें राघोपुर को पहले ही तेजस्वी की “पक्की जीत” लिख दी गई थी. अब वही भीड़ तेजस्वी के लिए चेतावनी बन गई है, “चुनाव आसान नहीं होगा.”
यादव बेल्ट में सेंध, तेजस्वी के वोट बैंक पर प्रहार
राघोपुर की राजनीति की धुरी है यादव मतदाता, और लंबे समय से वे बिना सवाल तेजस्वी के पक्ष में खड़े रहे हैं. लेकिन अब प्रेम कुमार भी यादव समुदाय से आते हैं, और तेज प्रताप का चेहरा उन वोटर्स पर मनोवैज्ञानिक असर डाल रहा है. विश्लेषकों का मानना है. 3 से 5 हजार वोट भी इधर-उधर हुए तो परिणाम पलट सकता है, और BJP को सीधा फायदा मिल सकता है.
यह मुकाबला अब गणित नहीं, प्रतिष्ठा का युद्ध
तेजस्वी बनाम बीजेपी एक साधारण चुनावी लड़ाई थी. लेकिन तेज प्रताप की एंट्री ने इसे “घर के भीतर का संघर्ष” बना दिया है. विपक्ष इसे पहले ही तंज में बदल चुका है, “जो भाई नहीं संभाल पाया, बिहार क्या संभालेगा?” यह चुनाव अब सिर्फ जीत-हार का नहीं, “लीडरशिप और परिवारिक नियंत्रण” के भरोसे का भी परीक्षण बन गया है.
2015 और 2020 का रिकॉर्ड, लेकिन 2024 का इम्तिहान अलग
2015 में तेजस्वी ने 22,733 वोटों से जीत दर्ज की थी. 2020 में यह बढ़कर 38,174 के रिकॉर्ड अंतर तक पहुंच गया. लेकिन वह चुनाव द्वंद्व था, यह चुनाव त्रिकोण नहीं बल्कि चौमुखा है. RJD vs BJP vs तेज प्रताप की पार्टी. यानी समीकरण वही नहीं हैं जो पहले थे.
क्या यह ‘रण’ तेजस्वी के सीएम सपने को रोक सकता है?
जैसे-जैसे तेज प्रताप का हस्तक्षेप बढ़ रहा है, RJD के भीतर बेचैनी बढ़ती जा रही है. अगर राघोपुर में मुकाबला कड़ा हुआ, तो इसका असर सिर्फ एक सीट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे बिहार में राजद के “नेतृत्व मॉडल” को सवालों के घेरे में ले आएगा. और अगर तेजस्वी अपनी ही जमीन पर कमजोर पड़ते हैं, तो विपक्ष के लिए यह “सबसे बड़ा चुनावी हथियार” बन सकता है.
तेज प्रताप का दावा- “हम दोनों सीटों के चहेते”
रैली में तेज प्रताप ने कहा, “महुआ हो या राघोपुर, जनता हमारे परिवार जैसी है.” यह लाइन सिर्फ भावनात्मक अपील नहीं थी, बल्कि सत्ता समीकरणों में खुद को एक स्वतंत्र खिलाड़ी घोषित करने का संकेत थी. उन्होंने चुनाव चिन्ह ‘ब्लैकबोर्ड’ पर वोट की अपील कर यह भी जताया कि वे अब सिर्फ लालू के बड़े बेटे नहीं, बल्कि अपना राजनीतिक ब्रांड बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.