एक अकेला तेजस्‍वी राहुल पर भारी! महागठबंधन का खेल, CM फेस और लोकल एजेंडे की बाजी, बिहार अधिकार यात्रा से हासिल क्या?

बिहार की सियासत में महागठबंधन के भीतर खींचतान साफ दिख रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 16 दिनों तक चली 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की 5 दिनों की 'बिहार अधिकार यात्रा' 20 मई को समाप्त हो गई. दोनों यात्रा का नतीजा चाहे कुछ भी लोगों की नजरें सिर्फ तेजस्वी पर टिकी हैं. तो क्या महागठबंधन का असली चेहरा तेजस्वी बन गए और राहुल पीछे छूट गए.;

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बिहार की राजनीति हमेशा से समीकरणों और गठजोड़ों पर टिकी रही है. अब जब महागठबंधन विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है, उसी वक्त राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्राओं ने अलग-अलग रंग दिखाना शुरू कर दिया है. जहां राहुल गांधी अपनी राष्ट्रीय छवि को साधने में लगे हैं, वहीं तेजस्वी यादव लोकल मुद्दों और रोजगार की राजनीति से जनता के दिल में जगह बना रहे हैं. राहुल गांधी अपनी यात्रा के जरिए विपक्षी एकता का संदेश देना चाहते हैं, लेकिन बिहार की जमीन पर असली भीड़ तेजस्वी यादव खींच रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक अब यह मानने लगे हैं महागठबंधन की असली धुरी राहुल नहीं बल्कि तेजस्वी हैं.

तेजस्वी बनाम राहुल, कौन भारी?

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा बिहार में 16 दिन जरूर गुजरी, लेकिन उसका फोकस राष्ट्रीय स्तर पर है. उनकी यात्रा बड़े मुद्दों (संविधान, लोकतंत्र और न्याय) को सामने रखती है, जो जरूरी तो हैं, लेकिन बिहार की जनता के रोजमर्रा के सवालों से सीधे मेल नहीं खाते. यानी राहुल गांधी की यात्रा वैचारिक और प्रतीकात्मक ज्यादा दिखाई दिए.

तेजस्वी ने लोकल को बनाया वोकल एजेंडा

दूसरी ओर तेजस्वी यादव अपनी 'बिहार अधिकार यात्रा' के जरिए बेरोजगारी, आरक्षण, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रखा. उनके वादे सीधे बिहार की जनता से जुड़े हैं. जैसे 10 लाख नौकरियां, आरक्षण का सवाल, शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा. यह लोकल एजेंडा युवाओं और आम जनता को आकर्षित कर रहा है. यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर तक, भीड़ और जोश में तेजस्वी राहुल पर भारी पड़ते दिख रहे हैं.

तेजस्वी ने अपनी यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार की नकलची (कॉपीकैट) सरकार साबित करने की कोशिश की है. उन्होंने दावा किया कि नीतीश कुमार हमने घोषणा की थी कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये प्रति माह करेंगे और 200 मेगावाट मुफ्त बिजली देंगे. बिहार सरकार ने 125 मेगावाट मुफ्त बिजली देना शुरू कर दिया. हमने हर परिवार की एक महिला को 2,500 रुपये देने की बात की थी और सरकार ने (50 लाख) महिला उद्यमियों को 10 हजार रुपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी. फिर तेजस्वी का नारा 'वोट चोर, गद्दी छोड़' लोगों को पसंद आया. हालांकि, राहुल गांधी की पिछले महीने की यात्रा भी लोकप्रिय साबित हुई थी.

 

जंग तो CM फेस की है

महागठबंधन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि चुनाव में सीएम फेस कौन होगा? कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर लीडर के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए, लेकिन बिहार की जमीन पर तेजस्वी यादव का चेहरा ज्यादा कारगर साबित हो रहा है. लालू प्रसाद यादव की विरासत और युवा नेता की छवि उन्हें विपक्ष का स्वाभाविक चेहरा बना दिया है.

महागठबंधन का समीकरण

तेजस्वी यादव की ताकत और राहुल गांधी की राष्ट्रीय यात्रा, दोनों मिलकर महागठबंधन को ताकत देने का काम किया, लेकिन अगर राहुल और तेजस्वी की रणनीति में तालमेल नहीं बैठा तो इसका नुकसान सीधे विपक्षी गठबंधन को हो सकता है. बिहार में जनता को सिर्फ एक मजबूत चेहरा चाहिए और यह चेहरा फिलहाल तेजस्वी यादव ही हैं. अभी के हालात में राहुल गांधी पृष्ठभूमि में और तेजस्वी यादव केंद्र में आते दिख रहे हैं. यही असली सवाल है - क्या यह कांग्रेस को मंजूर होगा?

16 सितंबर को पटना से शुरू हुई इस यात्रा के दौरान, तेजस्वी ने बेगूसराय, खगड़िया, सहरसा और मधेपुरा सहित 11 जिलों का दौरा किया, जिनमें से किसी भी जिले में 'मतदाता अधिकार यात्रा' के दौरान यात्रा नहीं की गई थी. तेजस्वी की यह यात्रा आरजेडी और कांग्रेस के बीच तनाव की पृष्ठभूमि में भी हुई. सीट बंटवारे पर कांग्रेस के कड़े रुख और महागठबंधन के सीएम चेहरे के तौर पर किसी को भी पेश करने में अनिच्छा के बीच, विपक्षी खेमे से सबसे संभावित सीएम माने जा रहे तेजस्वी ने यह कहकर अपने गठबंधन सहयोगी पर दबाव बढ़ा दिया है कि वह राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.

वहीं, कांग्रेस, राहुल गांधी की यात्रा की कथित सफलता के बाद भी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए दबाव बना रही है, जितनी सीटों पर उसने पिछली बार चुनाव लड़ा था. उस समय, विपक्ष को इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी क्योंकि कांग्रेस का खराब स्ट्राइक रेट ने 19 सीटें जीती, ​जिसने आरजेडी को सरकार बनाने से रोक दिया था. जबकि आरजेडी खुद 144 सीटों पर चुनाव लड़ी और 75 सीटें जीतने में कामयाब हुई.

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