19 के पेच में फंसे तेजस्वी-राहुल, कांग्रेस की बात मान लें या न मानें, दोनों में RJD का नुकसान
बिहार में कांग्रेस-आरजेडी के बीच सिर्फ सीट बंटवारे का झगड़ा नहीं बल्कि बिहार में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति और विपक्षी गठबंधन की एकता दोनों के लिए अग्नि परीक्षा है. तेजस्वी यादव और राहुल गांधी समझते हैं कि इस बार गलती की गुंजाइश नहीं है. साल 2025 में हुई एक चूक न केवल सत्ता से दूर रखेगी बल्कि विपक्षी गठबंधन की राजनीति को लंबे समय तक कमजोर कर सकती है.;
बिहार महागठबंधन की सियासत में एक बार फिर समीकरण उलझते दिखाई दे रहे हैं. विधानसभा चुनाव 2025 की ओर बढ़ते कदमों के बीच ‘INDIA’ गठबंधन की राह सबसे ज्यादा 19 सीटों पर अटकती नजर आ रही है. मुस्लिम और दलित आबादी बहुल क्षेत्र की इन सीटों पर दोनों के बीच बात अभी तक नहीं बन पाई है. इसने तेजस्वी यादव और राहुल गांधी दोनों को उलझन में डाल दिया है. सवाल यह है कि आखिर ये 19 सीटें कौन सी हैं, और क्यों इन पर सहमति बनाना मुश्किल हो रहा है?
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल और मुस्लिम-बहुल इलाकों की सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच तालमेल बिगड़ गया था. कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के बावजूद उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीत पाई. वहीं आरजेडी कम सीटों पर लड़ी, लेकिन बड़ी सफलता हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनी. नतीजतन, आरजेडी का मानना है कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिली, वह उसके वजूद से कहीं ज्यादा थीं.
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कांग्रेस की डिमांड से क्यों चिढ़ गए तेजस्वी?
तेजस्वी यादव का यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस ने हाल ही में सीट बंटवारे में ‘जिताऊ सीटें’ मांगने की घोषणा की थी. इसके बाद से अटकलें लग रही हैं कि क्या तेजस्वी नाराज हैं और अब राहुल गांधी पर उन्हें महागठबंधन का सीएम चेहरा घोषित करने के लिए सीधा दबाव बना रहे हैं.
सीमांचल और कोसी बेल्ट की 19 सीटें अहम क्यों?
बिहार की जिन 19 सीटों पर इंडिया गठबंधन की दो प्रमुख पार्टियों में तकरार है, उन सीटें मुस्लिम वोटों काफी संख्य में हैं. कांग्रेस इन इलाकों को अपनी पारंपरिक ताकत मानती है. ये सीटें पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, दरभंगा, सीतामढ़ी व अन्य जिले शामिल हैं. कांग्रेस ने 2020 चुनाव में 19 सीटें जीती थी. कांग्रेस ने जितनी सीटें जीतीं, उनमें से ज्यादातर मुस्लिम-बहुल इलाकों से थीं. इस मामले में आरजेडी नेताओं का तर्क है कि कांग्रेस अपनी 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीत पाई, इसलिए 2025 में उसका कोटा घटाया जाए.
ओवैसी फैक्टर - तेजस्वी नहीं करना चाहते कोई चूक
सीमांचल सहित बिहार के अलग-अलग हिस्सों में एआईएमआईएम की पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है. ओवैसी ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन लालू यादव इसके लिए राजी नहीं हुए. आरजेडी को इस बात की आशंका है कि कहीं ओवैसी फैक्टर और छोटे दल मुस्लिम वोट बैंक में सेंध न लगा दें. यही वजह है कि आरजेडी के नेता टेक्निकल सीटें अपने पास रखना चाहते हैं. ताकि 2020 की तरह कांग्रेस की वजह से नुकसान न हो जाए.
तेजस्वी-राहुल की दुविधा
तेजस्वी यादव चाहते हैं कि सीटों का बंटवारा 2020 के प्रदर्शन और जमीनी ताकत के आधार पर हो. राहुल गांधी दबाव में हैं क्योंकि कांग्रेस का संगठन बिहार में कमजोर है और अगर 19 सीटों का आधार भी छिन गया तो पार्टी के लिए जमीनी अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा. ऐसे में INDIA गठबंधन की एकजुटता दांव पर है. अगर इस पेच का हल नहीं निकला, तो विपक्षी एकता सिर्फ कागज पर ही रह जाएगी.
अगर 19 सीटें कांग्रेस के पास रहती हैं तेजस्वी यादव से पार्टी के कार्यकर्ता नाराज होंगे. पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ेगा. ऐसा होने पर सीट शेयरिंग का समीकरण बिगड़ेगा. अगर आरजेडी इन पर दावा करती है तो कांग्रेस गठबंधन में हाशिए पर पहुंच सकती है. कांग्रेस के बड़े नेता नाराज होकर अलग सियासी राह पकड़ सकते हैं. इसका सीधा लाभ असदुद्दीन ओवैसी उठा सकते हैं, खुलकर सीमांचल इलाके में. ओवैसी की पार्टी ने साल 2020 में सीमांचल की पांच सीटों पर जीत हासिल कर बिहार के सियासी हलचल मचा दी थी.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कुल 243 सीटों में 75 सीटें जीतकर आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी. सीपीआई एमएल व अन्य वाम संगठनों 16 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल हुए थे. बीजेपी 74 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी रही थी. जेडीयू के खाते में 43 सीटें गई थी. हम और वीआईपी के चार चार प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.