बिहार में आधी आबादी को क्‍यों दरकिनार कर रहा विपक्ष, नीतीश कुमार उनके सहारे बनते रहे हैं CM?

बिहार की राजनीति में यह धारणा है कि जातीय समीकरण से तय होता है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी, लेकिन पिछले दो ढाई दशकों के दौरान इस पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है. अब आधी आबादी (महिला मतदाता) निर्णायक साबित हो रही है. यानी महिला वोटिंग प्रतिशत तेजी से बढ़ोतरी और जाति से परे जाकर मतदान के रुझान पहले से तय सियासी थ्योरी को बदलकर रख दिया है. इसका सबसे ज्यादा लाभ जेडीयू को बिहार में मिल रहा है. जबकि विरोधी पार्टियों इस बदलाव को ठीक परखने में विफल रही हैं.;

बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही महिला मतदाता एक बार फिर चुनावी परिदृश्य के केंद्र में आ गई हैं. खास बात यह है कि सरकार के गठन में आधी आबादी की अहमियत क्या है, इसे सीएम नीतीश कुमार सबसे बेहतर तरीके से जानते हैं. यही वजह है कि वे हर चुनाव में महिलाओं के लिए खास पैकेज लेकर सियासी जंग में उतरते हैं. इस बार भी उन्होंने सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का एलान किया है. दूसरी तरफ विपक्ष की राजनीति में महिलाओं की आवाज और उनकी भागीदारी को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. ऐसा इसलिए कि विपक्ष की राजनीति आज भी जातीय समीकरणों तक सीमित है.

नीतीश कुमार सरकार ने हाल ही में राज्य सरकार की नौकरियों में प्रदेश की महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की है. यह नीतीश सरकार की महिला-केंद्रित नीतियों की श्रृंखला में एक और कदम है, जिन्होंने कई कल्याणकारी उपायों के माध्यम से महिला मतदाताओं का एक वफादार आधार तैयार किया है. इससे पहले महिलाओं की मांग पर उन्होंने शराबबंदी कानून लागू कर दिया, जिसका बहुत बड़ा असर देखने को मिला. इससे पहले उन्होंने पंचायत चुनाव व अन्य कई योजनाओं महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिलाया था. ममता दीदी और आशा बहनों की मानदेय में चुनाव से ठीक पहले उन्होंने घोषणा की है.

महिला मतदाताओं का समर्थन बड़ी चुनौती

ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वीआईपी, वामपंथी पार्टियों समेत एनडीए में शामिल बीजेपी, एलजेपीआर और हम के लिए चुनौती है कि अगर उसे महिला मतदाताओं का समर्थन चाहिए तो उसके सत्ता में क्या करेगी इसका एलान करे. ऐसा करना सभी के लिए इसलिए जरूरी है कि पिछले कई चुनावों से बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी के रूझान ने सरकार गठन में अहम भूमिका निभाई है. इसका मतलब ये नहीं है कि जेडीयू को ही महिलाओं को वोट मिलता है. लेकिन जातीय बंधन तोड़कर काफी संख्या में महिलाएं जेडीयू के लिए वोट करती हैं.

दरअसल, बिहार में चुनावी गणित सिर्फ जातीय समीकरणों पर ही नहीं टिका होता है, लेकिन अब महिला वोटरों की भूमिका भी बेहद अहम हो गई है. नीतीश कुमार ने शराबबंदी, साइकिल योजना, आरक्षण और पंचायत चुनाव में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देकर जातीय समीकरणों को कमजोर कर दिया है. उन्होंने महिला सशक्तिकरण को अपनी राजनीति की सबसे मजबूत ढाल बना लिया. मगर विपक्ष अभी तक इस अहम वोट बैंक को लेकर ठोस रणनीति बनाने में नाकाम दिख रहा है।

आधी आबादी सिखाएगी RJD कांग्रेस को सबक : रंजन सिंह

बिहार लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रवक्ता रंजन सिंह का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान राजनीति में कदम रखने के समय से महिला सशक्तिकरण पर जोर दे हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में हमारी पांच सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इनमें दो सीटों पर महिलाओं प्रत्याशी को टिकट दिया गया था. दोनों महिलाएं आज सांसद हैं. पार्टी में संगठन के स्तर पर भी काफी संख्या में महिलाओं को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं.

हमारी पार्टी नीतीश कुमार के महिला सशक्तिकरण से संबंधित सभी योजनाओं का समर्थन करती आई है. राजनीति में महिला सीटों के आरक्षण, तीन तलाक व अन्य सभी मसलों पर पार्टी ने बिल का समर्थन किया. सबसे खास बात यह है कि एलजेपीआर महिलाओं की भागीदारी को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ावा दे रही है. एलजेपीआर के प्रवक्ता रंजन सिंह का कहना है कि महिलाओं की अनदेखी के लिए आरजेडी और कांग्रेस को इस बार भी प्रदेश की आधी आबादी सबक सिखाने का काम करेगी. जंगलराज में महिलाओं का क्या हाल था ये जगजाहिर है.

अब साइलेंट वोटर आधी आबादी

बिहार में कई सीटों पर महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से ज्यादा दर्ज की गई है. महिला वोटरों की यह 'चुपचाप क्रांति' बार-बार सत्ता की दिशा तय करती रही हैं. नीतीश ने महिलाओं को लक्षित करते हुए योजनाएं लागू की. जैसे साइकिल योजना, छात्राओं को स्कॉलरशिप, पंचायत में 50% आरक्षण और शराबबंदी. इन कदमों ने महिलाओं का भरोसा उन्हें दिलाया और यह उनका सबसे बड़ा "साइलेंट वोट बैंक' साबित हुआ.

विपक्ष ने की अनदेखी

विपक्षी दलों की रणनीति अभी भी जातीय समीकरण और गठबंधन की राजनीति पर केंद्रित है. महिला मतदाताओं की समस्याओं और आकांक्षाओं को लेकर उनके एजेंडे में कोई ठोस पहल नहीं दिखती. यही कारण है कि 'आधी आबादी' आज भी विपक्ष से दूरी बनाए हुए है. अगर विपक्ष महिला मतदाताओं को नजरअंदाज करता रहा, तो यह सीधे तौर पर उनकी चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करेगा.

ऐसे समझें महिला मतदाताओं की ताकत

1. साल 2020 के विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने 243 निर्वाचन क्षेत्रों में से 167 में पुरुषों को पछाड़ दिया, जिनमें से अधिकांश उत्तरी बिहार में थे. यह क्षेत्र राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर भारी झुका हुआ था।  महिलाओं का मतदान प्रतिशत 60 प्रतिशत रहा, जबकि पुरुषों का 54 प्रतिशत. इतना ही नहीं, 166 निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी. सबसे बड़ा लैंगिक मतदान अंतर बैसी (पूर्णिया जिला) में दर्ज किया गया, जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 22 प्रतिशत अधिक था. कुशेश्वरस्थान में महिलाओं के पक्ष में 21 प्रतिशत अंकों का अंतर रहा. दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में एनडीए ने जीत हासिल की थी.

2. साल 2015 में महिलाओं ने 202 निर्वाचन क्षेत्रों में पुरुषों से अधिक मतदान किया. उत्तरी बिहार महिला मतदाताओं के मामले में सबसे आगे रहा.

3. साल 2010 बिहार में लैंगिक मतदान की गतिशीलता एक महत्वपूर्ण मोड़ था. तब 162 निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा था. यह पहली बार था जब कुल महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा.

4. मधुबनी जिले में जहां 10 विधानसभा क्षेत्र हैं में 2020 के विधानसभा चुनावों में आठ सीटें एनडीए को मिलीं. सुपौल जिले की सभी पांच सीटें एनडीए ने जीतीं. सीतामढ़ी में एनडीए ने आठ में से छह सीटें जीतीं, जबकि दरभंगा में पिछले चुनावों में उसने दस में से नौ सीटें जीती थीं.

5. बिहार के मतदान प्रतिशत में पुराने पैटर्न की बात करें तो पुरुषों का दबदबा होता था. 1962 के विधानसभा चुनावों में 55 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया, जबकि महिलाओं ने केवल 32 प्रतिशत. यह लैंगिक अंतर 2000 तक बना रहा.

6. फरवरी 2005 तक यह अंतर कम होने लगा था. उस वर्ष हुए दो विधानसभा चुनावों में से पहले चुनाव में 50 प्रतिशत पुरुषों और 43 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था.

7. 2010 में ऐतिहासिक मोड़ आया. 54 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जो पहली बार पुरुषों के 51 प्रतिशत से था.

8. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में यह अंतर और भी बढ़ गया, जहां 60 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत केवल 50 प्रतिशत था.

9. 1962 के बाद से,महिलाओं के मतदान में 28 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है, जिसने मतदान में लैंगिक अंतर को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है. महिलाओं को आज बिहार में सबसे शक्तिशाली मतदाता समूहों में खुद को स्थापित किया है. इसके अलावा, महिला मतदाता जातीय बंधनों से दरकिनार कर वोटिंग कर रही है.

Full View

Similar News