मैं अब कहीं नहीं जाऊंगा, NDA में ही रहूंगा... PM मोदी के सामने फिर बोले नीतीश कुमार, आखिर क्यों बार-बार खा रहे वफादारी की कसमें?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्णिया में पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में फिर भरोसा दिलाया कि वह अब NDA नहीं छोड़ेंगे. अपनी पिछली राजनीतिक पलटबाजियों का ठीकरा उन्होंने पार्टी सहयोगियों, खासकर ललन सिंह पर फोड़ा. 2020 के कमजोर चुनावी प्रदर्शन और सीट बंटवारे के दबाव के बीच नीतीश NDA में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहते हैं. महिला और ईबीसी वोट बैंक पर उनकी पकड़ उन्हें भाजपा के लिए अब भी अहम सहयोगी बनाती है.;
Nitish Kumar on Paltu Ram image: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी 'पलटू राम' छवि से पीछा छुड़ाने की कोशिश की है. सोमवार को पूर्णिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में आयोजित रैली में उन्होंने साफ कहा- मैं अब लौट आया हूं. कहीं नहीं जाऊंगा.”
नीतीश ने अपने राजनीतिक यू-टर्न पर बचाव करते हुए जिम्मेदारी अपनी पार्टी के नेताओं पर डाली. उन्होंने कहा कि 2005 में जदयू-भाजपा गठबंधन ने पहली बार सरकार बनाई थी, लेकिन 'पार्टी सहयोगियों के कहने पर' उन्हें दो-तीन बार पक्ष बदलना पड़ा. इसी दौरान उन्होंने मंच पर मौजूद केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की ओर इशारा भी किया, जिन पर उन्होंने पहले भी 'गुमराह करने' का आरोप लगाया है.
दूसरी बार नीतीश ने NDA के प्रति वफादारी का दिया आश्वासन
यह दूसरी बार है जब नीतीश कुमार ने बीते पांच महीनों में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में NDA के प्रति वफादारी का सार्वजनिक आश्वासन दिया है. इससे पहले मई में मधुबनी की रैली में भी उन्होंने कहा था कि अब NDA छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे और पार्टी नेताओं को ही अपनी पिछली भूल का जिम्मेदार ठहराया था. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमार बार-बार एनडीए के प्रति अपनी निष्ठा क्यों दोहरा रहे हैं...
2020 में नीतीश की पार्टी को महज 43 सीटों पर मिली जीत
दरअसल, नीतीश कुमार, जिन्होंने 2014 और 2022 में भाजपा का साथ छोड़ा था, 2022 में विपक्षी INDIA गठबंधन के सूत्रधार भी बने. हालांकि, 2020 विधानसभा चुनावों में जदयू का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा और पार्टी महज 43 सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा 74 सीटें लेकर बड़े भाई की भूमिका में उभरी. इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा.
बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता हैं नीतीश
अब जबकि चिराग पासवान फिर से NDA में लौट चुके हैं और सीट बंटवारे पर दबाव बढ़ रहा है, नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अपनी पकड़ बनाए रखना. उनकी लोकप्रियता, खासकर महिला मतदाताओं और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में, उन्हें भाजपा के लिए अब भी अपरिहार्य बनाती है. नीतीश बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता हैं.
नीतीश कुमार को सता रहा अपनी राजनीतिक पकड़ के कमजोर होने का डर
भाजपा बिहार में अपनी ताकत बढ़ते देखने के बाद इस बार सत्ता में वरिष्ठ साझेदार की भूमिका निभाना चाहती है, लेकिन नीतीश लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह NDA में स्थायी हैं. उनके लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि उनकी 'पलटू राम' छवि का इस्तेमाल NDA के भीतर ही उनके विरोधी न करें और उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर न हो.