प्रवासी बिहारियों की बड़ी चिंता, 'मतदाता सूची में नाम बनाए रखने के लिए कैसे साबित करूं मैं कौन और कहां से हूं?'

बिहार चुनाव के पहले सबसे प्रवासी बिहारियों की चुनाव आयोग ने चिंता बढ़ा दी है. अब प्रवासी बिहारियों को डर सता रहा है कि कहीं मतदाता सूची से उनका नाम ही न गायब हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो वो कैसे साबित करेंगे कि वे इस देश के नागरिक हैं? क्या आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड इसके लिए काफी होंगे? अगर न हीं तो क्या करूं?;

Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 11 July 2025 11:45 AM IST

कल्पना कीजिए, आप सालों से किसी दूसरे शहर या देश में मेहनत कर रहे है. घर लौटे हैं कि इस बार वोट जरूर डालूंगा, लेकिन वोटिंग लिस्ट में नाम ही नहीं! अब सवाल ये उठता है अगर लिस्ट में नाम नहीं, तो आप कौन हैं? और कैसे साबित करेंगे कि आप इस देश के वोटर हैं? या फिर दूसरे शहर जहां आप कामकाज की वजह से रहते हैं, वहां किसी कारण से पहचान साबित करने की जरूरत पड़ तो आप खुद को कैसे साबित करेंगे कि मैं भारतीय हूं. आज कल ये सवाल हर प्रवासी बिहारी के दिल में घूम रहा है.

दरअसल, बिहार में चुनावी हलचल अभी से तेज है, लेकिन इस बार चर्चा में हैं वो लोग जो बिहार से हैं, लेकिन बिहार में नहीं रहते. उनके नाम अगर लिस्ट से हट गए, तो क्या उनका वजूद भी मिट जाएगा?

दुविधा में क्यों हैं प्रवासी बिहारी?

देश की राजधानी सहित देश भर में बिहार के लोग रोजगार, शिक्षा, बेहतर भविष्य की तलाश में रहते हैं. अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन बिहार चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग ने जब से मतदाता सूची को लेकर विशेष गहनता पुनरीक्षण काम शुरू किया है, तब से प्रवासी बिहारियों की परेशानी बढ़ गई है. इन दिनों उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि वह नाम दर्ज कराने बिहार चले भी गए तो चुनाव अफसरों को ये कैसे बताउंगा कि मैं कौन हूं और कहा से हूं.

यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई ​है कि अधिकांश प्रवासियों को चुनाव आयोग के मतदाता सूची संशोधन अभियान के बारे में बहुत कम जानकारी है. वो, यहां तक भी नहीं जानते कि यहां या घर वापस आकर इसके लिए नामांकन कैसे करवा सकते हैं. इतना ही नहीं बार-बार पलायन की वजह से बिहार के प्रवासियों को या तो यह नहीं पता चला है कि उन्हें फिर से नामांकन की जरूरत है या नहीं. अगर पता भी है, तो उन्हें यकीन नहीं है कि वे एसआईआर के लिए चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे 11 दस्तावेजों में से किसी का भी इंतजाम कर पाएंगे या नहीं.

मुझे तो कुछ नहीं पता, अब क्या करू?

इंडियन एक्सप्रेस ने 22 वर्षीय अंकित कुमार के हवाले से कहा है कि वो मूल रूप से बेगूसराय के रहने वाले हैं, जहां उनकी पत्नी और परिवार अभी भी रहते हैं. पुरानी दिल्ली के सदर बाजार में लोडर का काम करके 500 से 600 रुपये प्रतिदिन कमाते हैं. चुनाव आयोग के निर्देश के बारे में बताने पर अंकित को यकीन नहीं होता. वह कहते हैं, "मैंने अभी तक नहीं सुना... और मैं तो मोबाइल पर रोज न्यूज देखता हूं."

लोकसभा चुनाव 2024 में वोट देने वाले अंकित इस साल के अंत में अपने पहले विधानसभा चुनाव में वोट देने के लिए घर लौटने की योजना बना रहे थे. उनके पास मौजूद "केवल दो पहचान पत्र", आधार और वोटर कार्ड हैं. नए नामांकन के लिए चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को अमान्य करार दिया है. अब चुनाव आयोग जन्म स्थान का प्रमाण भी मांग रहा है.

“जो लोग अंगूठा छाप हैं, उनके पास ऐसे दस्तावेज़ कैसे होंगे? मैंने तो कभी जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं बनवाया. मुफ्त राशन से लेकर अस्पतालों में इलाज तक, हर चीज के लिए अधिकारी आधार कार्ड चाहते हैं. अब आप कह रहे हैं कि आधार कार्ड काम नहीं करेगा? यह कैसे संभव है?

दिल्ली और पड़ोसी नोएडा के लेबर चौकों, बाज़ारों और बिहारी प्रवासियों की अच्छी-खासी आबादी वाली कॉलोनियों में, कई लोग अंकित जैसी ही स्थिति में हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद, बाहर काम करने वाले निवासियों वाले राज्यों में दूसरे स्थान पर है, जहां प्रवासी आबादी 7.2% है.

सदर बाजार के मिठाई पुल पर बिहार के भागलपुर जिले के 29 वर्षीय दलित अमरजीत कुमार का दावा है कि हाल ही में चोरी हो जाने से उनके सारे दस्तावेज खो गए. भागलपुर के एक गांव में एक छोटा सा कच्चा घर उनके परिवार की एकमात्र संपत्ति है और कुमार अपनी सारी कमाई घर भेजने की कोशिश करते हैं. दिल्ली में फुटपाथ पर सोता हूं. किराए का कमरा बहुत महंगा पड़ता है. एक महीने पहले फुटपाथ से ही मेरे सारे दस्तावेज वाला बैग चोरी हो गया था."

मजदूर हूं, कभी दस्तावेजों की जरूरत ही नहीं पड़ी - दिनेश दास

मुजफ्फरपुर जिले के इंसेराम नगर गांव के 35 वर्षीय दिनेश दास, एशिया की सबसे बड़ी थोक मंडी, आजादपुर मंडी में फल पहुंचाने के लिए ठेला चलाते हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से आने वाले दास बताते हैं कि उन्होंने घर पर एक वकील से एसआईआर अभियान के बारे में सुना था. दास की मात्रं, पत्नी और तीन बच्चे गांव में ही अपने कच्चे घर में रहते हैं.

“वकील ने मुझे बताया कि मुझे पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल की मार्कशीट या जाति प्रमाण पत्र चाहिए. मुझे कभी जाति प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मैं कभी स्कूल या कॉलेज नहीं गया और न ही किसी कोटे के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया. अगर मैं पढ़ा-लिखा होता, तो क्या मैं यह ठेला चला रहा होता?

मैंने तो कभी जन्म प्रमाण पत्र नहीं बनवाया

22 वर्षीय अंकित कुमार, जो मूल रूप से बेगूसराय के रहने वाले हैं, जहाँ उनकी पत्नी और परिवार अभी भी रहते हैं, पुरानी दिल्ली के सदर बाज़ार थोक बाज़ार में लोडर का काम करके 500-600 रुपये प्रतिदिन कमाते हैं। चुनाव आयोग के निर्देश के बारे में बताने पर अंकित को यकीन नहीं होता। "मैंने अभी तक नहीं सुना... और मैं तो मोबाइल पर रोज़ न्यूज़ देखता हूँ," वह अपना स्मार्टफ़ोन दिखाते हुए कहता है.

2024 के लोकसभा चुनाव में वोट देने वाले अंकित इस साल के अंत में अपने पहले विधानसभा चुनाव में वोट देने के लिए घर लौटने की योजना बना रहे थे। हालाँकि, उनके पास मौजूद "केवल दो पहचान पत्र", आधार और वोटर कार्ड, नए नामांकन के लिए चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार मान्य नहीं हैं, जिसमें जन्म स्थान का प्रमाण भी मांगा गया है।

अंकित का कहना है, “जो लोग अंगूठा छाप हैं, उनके पास ऐसे दस्तावेज़ कैसे होंगे? मैंने तो कभी जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं बनवाया. मुफ्त राशन से लेकर अस्पतालों में इलाज तक, हर चीज के लिए अधिकारी आधार कार्ड चाहते हैं. अब आप कह रहे हैं कि आधार कार्ड काम नहीं करेगा. यह कैसे संभव है?

दिल्ली से सटे नोएडा के लेबर चौकों, बाजारों और कॉलोनियों में बिहारी प्रवासियों की अच्छी-खासी आबादी है. इन लोगों की भी अंकित जैसी ही स्थिति में हैं. साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार उत्तर प्रदेश के बाद बाहर काम करने वाले निवासियों वाले राज्यों में दूसरे स्थान पर है. बिहारी प्रवासी आबादी की संख्या 7.2 प्रतिशत.

सारे दस्तावेज खो गए, अब मैं क्या करूं?

सदर बाजार के मिठाई पुल पर बिहार के भागलपुर जिले के 29 वर्षीय दलित अमरजीत कुमार का दावा है कि हाल ही में चोरी हो जाने से उनके सारे दस्तावेज खो गए. भागलपुर के एक गांव में एक छोटा सा कच्चा घर उनके परिवार की एकमात्र संपत्ति है. कुमार अपनी सारी कमाई घर भेजने की कोशिश करते हैं. दिल्ली में वह फुटपाथ पर सोते हैं. "किराए का कमरा बहुत महंगा पड़ता है. एक महीने पहले फुटपाथ से ही मेरे सारे दस्तावेजों वाला बैग चोरी हो गया. अब मैं क्या करूं?

दस्तावेज जमा करने की अंतिम तिथि 1 सितंबर

चुनाव आयोग द्वारा मान्य माने जाने वाले 11 दस्तावेजों में पासपोर्ट, जन्म या जाति या जनजाति या शिक्षा प्रमाण पत्र के अलावा भूमि आवंटन रिकॉर्ड और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों या स्थानीय सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी पहचान पत्र शामिल हैं. फॉर्म 25 जुलाई तक जमा करना होगा और चुनाव आयोग ने कहा है कि दस्तावेज 1 सितंबर तक जमा किए जा सकते हैं.

एसआईआर पर नहीं लगाई रोग, वोटर्स को दी राहत

बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई के बाद चुनाव आयोग को निर्देश हैं कि वह पुनरीक्षण के लिए जरूरी दस्तावेजों में आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड को शामिल करने पर विचार करे. साथ ही तीन मुद्दों पर जवाब दाखिल करे. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की है. सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर रोक नहीं लगाई है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम रोक की मांग नहीं की थी.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि हम सांविधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए. कोर्ट ने चुनाव आयोग को अपना हलफनामा दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है. दूसरी तरफ याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह बाद जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.

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