नीतीश कुमार बिहार में यूं ही नहीं हैं 'अलहदा' शख्स, विपक्ष के हमलों का 'फ्री की रेवड़ी' से दे रहे जवाब, कितना मिलेगा लाभ?
सीएम नीतीश कुमार बिहार के सबसे अनुभवी राजनेताओं में से एक हैं. उनका विकल्प अभी कोई नहीं हैं. हालांकि, ये तय करने का काम प्रदेश के मतदाताओं का है, पर इतना है कि विपक्ष उनके सियासी हमलों से अनजान है या उसे कम आंकने की भूल कर रहा है. खासकर सीएम नीतीश कुमार ने हाल ही में बिहार की महिलाओं, युवा और सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चुपके से तीन ऐसी घोषणाएं की हैं जो 'फ्री की रेवड़ी में आता है, जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है.

बिहार में एक तरफ विपक्षी दलों के नेता कानून व्यवस्था, चुनाव सुधार, पलायन, बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार लोक हितैषी योजनाओं (फ्री की रेवड़ी) से उसका जवाब देकर मतदाताओं को मालामाल करने का काम कर रहे हैं. सुशासन बाबू के नाम से लोकप्रिय नीतीश कुमार न तो विपक्षी के सवालों का जवाब दे रहे, न ही उनके सियासी मसलों पर उलझ रहे हैं. बस, वो अपने कोर वोट को साधने में जुटे हैं. ऐसे में कहीं विरोधी दलों के नेता नीतीश की सियासी रणनीति को समझने की भूल तो नहीं रहे हैं?
दरअसल, बिहार में अपराध, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के खराब हालात पर तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, प्रशांत किशोर, कन्हैया कुमार, जैसे नेता खुलकर बोल रहे हैं. ये ऐसे मसले हैं, जिस पर नीतीश कुमार विरोधियों के हमले में फंसते भी नजर आ रहे हैं. चिराग पासवान तो गठबंधन में होने की वजह से नीतीश कुमार के साथ तो हैं, लेकिन उनका बयान या तो सरकार के खिलाफ होता है या निजी तौर पर नीतीश कुमार केविरोध में होता है.
जंगलराज पर विपक्ष का पलटवार
पिछले करीब 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ रहते हैं तो वो लालू-राबड़ी के जंगलराज की बात कर ही वोट मांगते हैं और उन्हें वोट मिलते भी हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से बिहार में जिस तरह के अपराध हो रहे हैं, वो भी जंगलराज का ही तो नमूना है. 24 घंटे से भी कम वक्त में 10-10 हत्याओं को जंगलराज नहीं तो और क्या कहा जाए. 21वीं सदी में किसी परिवार को डायन बताकर उसके घर के पांच लोगों को जिंदा जला दिया जाए तो उसे क्या कहा जाए. जिस राज्य में बीच सड़क पर तीन लोग तलवार से काट दिए जाएं, जिस राज्य में शराब पर बैन हो वहां जहरीली शराब पीकर सैकड़ों लोग मर जाएं तो उसे क्या कहा जाए. क्या जंगलराज कुछ और होता है.
विपक्ष के हमलों के जवाब में योजनाओं की बौछार
विपक्ष के इन हमलों से बचने के लिए नीतीश कुमार ने चुनाव से ठीक पहले ऐसी-ऐसी योजनाओं की बौछार की है कि नीतीश के धुर विरोधी भी उनकी राजनीति के मुरीद होते नजर आ रहे हैं. जानिए नीतीश कुमार का वो एलान जो उनकी चुनावी जीत तय में मददगार साबित हो सकता है.
1. महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण
बिहार सरकार ने निर्णय लिया है कि सिर्फ राज्य की मूल निवासी महिलाओं को सरकारी नौकरियों (सीधी नियुक्ति, संविदा, आउटसोर्सिंग सहित) में 35 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. यह आरक्षण सभी सरकारी सेवाओं और पदों पर लागू होगा. इससे प्रभावित कई 1.51 लाख रिक्तियों को शीघ्र भरने का आदेश भी उन्होंने दे दिया है.
2. बिहार युवा आयोग का गठन
नीतीश की कैबिनेट द्वारा बिहार युवा आयोग (Bihar Youth Commission) गठन को मंजूरी मिलने के बाद उन्होंने इसका एलान कर दिया है. आयोग का नेतृत्व एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और सात सदस्य करेंगे. सभी की उम्र 45 साल से कम होगी. इसकी जिम्मेदारियों में युवा रोजगार, शिक्षा, निजी क्षेत्र में प्राथमिकता, नशे से बचाव और विकास पहल शामिल हैं.
3. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि
वृद्धजन, विधवा और विकलांगों की मासिक पेंशन को ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 कर दिया गया है. यानि लगभग 3 गुना वृद्धि. इस योजना के अंतर्गत लगभग 60 लाख परिवार लाभान्वित होंगे, जिसमें कई सामाजिक पेंशन योजनाएं शामिल हैं. साथ ही जीविका स्वयं सहायता समूहों के कम ब्याज पर ऋण और मानदेय में वृद्धि (7% ब्याज, दोगुना मानदेय) की घोषणा की है.
समझें नीतीश की राजनीति
बिहार सरकार की इन घोषणाओं को सियासी विश्लेषक नीतीश कुमार के चुनावी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. लोग इन कदमों को नारियों और युवाओं की उपस्थिति बढ़ाने, स्थानीय रोजगार सृष्टि, और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया बताया जा रहा है. साथ ही विपक्ष द्वारा उठाए गए राजनीतिक सवालों का जवाब भी माना जा रहा है.