'चोर नहीं, इंसानियत की हुई हत्या', मॉब की क्रूरता तो देखिए, बेहोश किया, जगाया और फिर पीटा, आखिर कपड़े बेचने वाले की गलती क्या थी?
बिहार में मॉब लिंचिंग की दिल दहला देने वाली घटना ने इंसानियत को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. नवादा और बिहारशरीफ इलाके में कपड़े, कंबल और कुछ अन्य कपड़े बेचने वाले मोहम्मद अथर हुसैन को सिर्फ के शक आधार पर मॉब लिंचिंग का शिकार हुआ. अस्पताल में इलाज के दौरान 12 दिसंबर को उसकी मौत हो गई. पीड़ित परिवार का सवाल है कि आखिर उसकी गलती क्या थी?;
बिहार में एक बार फिर मॉब लिंचिंग ने कानून, व्यवस्था और इंसानियत को कटघरे में खड़ा कर दिया है. आरोप है कि पीड़ित को बेरहमी या फिर बर्बरता से पीटा गया. वह जब बेहोश हो गया तो पानी डालकर होश में लाया गया और फिर आरोपियों ने हमला किया. यह कोई तात्कालिक गुस्सा नहीं, बल्कि भीड़ की उस मानसिकता का आईना है जहां शक, अफवाह और नफरत कानून से ऊपर हो जाती है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसी का शिकार हुआ मोहम्मद अथर हुसैन. सवाल है, आखिर गलती क्या थी और जवाब कौन देगा? परिवार को है इसका इंतजार.
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क्या है पूरा मामला?
मॉब लिंचिंग की यह घटना बिहार के नवादा इलाके की बताई जा रही है, पांच दिसंबर को भीड़ ने एक व्यक्ति को चोरी, शक, अफवाह के आरोप में घेर लिया. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पीड़ित को लगातार पीटा गया. लोगों की पिटाई से वह बेहोश हो गया. फिर उस पर पानी डालकर उसे होश में लाया गया और दोबारा पीटा गया. ऐसा बार बार हुआ. बाद में गंभीर हालत में उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी 12 दिसंबर की सुबह मौत हो गई.
मॉब लिंचिंग की मानसिकता?
यह घटना सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि कानून के डर का खत्म होना भी है. भीड़ को न्याय करने का अधिकार किसने दिया. जिस तरह से मोहम्मद अथर हुसैन को मारा गया, वो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भीड़ यह तय करने लगती है कि “कौन दोषी है और कौन सजा का हकदार,” तो लोकतंत्र और कानून दोनों हार जाता है.
आखिर गलती क्या थी?
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक पीड़ित पर कोई ठोस अपराध साबित नहीं था. ना ही कोई मुकदमा चल रहा था. आरोप केवल शक या अफवाह पर आधारित थे.
पुलिस समय से नहीं पहुंची
सवाल यह नहीं कि आरोप क्या था, सवाल यह है कि क्या किसी शक की सजा मौत या अमानवीय हिंसा हो सकती है? इस घटना के बाद से पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. घटना के बाद पुलिस ने जांच शुरू करने की बात कही है. पुलिस आरोपियों की तलाश में जुटी है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस समय पर पहुंचकर कार्रवाई करती हुसैन की जान बच सकती थी.
यह पहली बार नहीं है जब मॉब लिंचिंग में प्रशासन की देरी जानलेवा साबित हुई. बिहार में इससे पहले भी चोरी, बच्चा चोर की अफवाह या धार्मिक व सामाजिक शक के नाम पर भीड़ हिंसा करती आई है. हर बार सवाल उठते हैं. हर बार जांच के आदेश होते हैं, लेकिन डर खत्म नहीं होता.
पीड़ित के सवाल - कौन देगा जवाब?
मोहम्मद अथर हुसैन की पत्नी, बेटी और परिवार के सदस्यों का सवाल यह है कि क्या उसकी गलती सिर्फ गलत जगह पर होना था? क्या अफवाह सच से बड़ी हो गई? क्या कानून सिर्फ कागजों में रह गया?ये सवाल इसलिए कि पीड़ित और उसके परिवार के लिए यह सिर्फ एक केस नहीं, पूरी जिंदगी का घाव है.
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 20 सालों से मोहम्मद अथर हुसैन नवादा और आस-पास के इलाकों में कंबल, पर्दे और बच्चों के कपड़ों जैसी चीजें ठेले पर रखकर घर-घर बेचते थे. एक साल पहले 45 साल के हुसैन ने चक्कर लगाने के लिए एक पुरानी साइकिल खरीदी और कई बुनियादी घरेलू जरूरतें पूरी होने के बाद, परिवार को लगा कि उनकी जिंदगी बदल गई है. किसी को इस बात का आभास नहीं था, ऐसी दर्दनाक घटना हुसैन के साथ होने वाली है. दरअसल, 5 दिसंबर की रात को हुसैन को गांव वालों के एक ग्रुप ने पकड़ लिया, जिन्होंने कथित तौर पर उसे चोर समझ लिया और बेरहमी से पीटा. बर्बरता से पिटाई की वजह से छह दिनों तक जिंदगी के लिए संघर्ष करने के बाद, 12 दिसंबर की सुबह हुसैन की उनकी मौत हो गई.
हुसैन की पत्नी शबनम परवीन ने हुसैन को आखिरी बार 28 नवंबर को देखा था, जब वह बिहारशरीफ जिले के गगन दीवान गांव में अपने घर से 45 किमी दूर नवादा के लिए निकले थे. परिवार हाल तक नवादा के बरुई में रहता था और हुसैन उन इलाकों में सहज महसूस करते थे, आस-पास के दूर-दराज के गांवों में उन्हें उत्सुक ग्राहक मिल जाते थे.
भाई मोहम्मद चांद हुसैन का कहना है कि उन्हें जो हुआ, उसके बारे में तब पता चला जब 6 दिसंबर की सुबह किसी ने एक बुरी तरह घायल आदमी का वीडियो शेयर किया. घबराए हुए चांद को लगा कि वह हुसैन जैसा दिख रहा है और उसने वह वीडियो परवीन को दिखाया. उन्होंने बताया कि तुरंत ही वह और दूसरा भाई, मोहम्मद शाकिब आलम, नवादा के लिए निकल गए. परिवार के दूसरे सदस्य भी कुछ ही देर बाद उनके पीछे-पीछे गए.
तब तक हुसैन बात करने की स्थिति में थे. उन्होंने भाई को बताया कि उसने रोज का काम खत्म किया का शाम को भट्टापुर गांव के पास था जब उसकी साइकिल पंचर हो गई. कुछ लोगों को आग (अलाव) के पास बैठे देखकर हुसैन ने पूछा कि क्या आस-पास कोई पंचर बनाने की दुकान है. चांद के अनुसार, नशे में धुत उन लोगों ने उससे उसका नाम और वह क्या करता है, पूछा. फिर अचानक उसे तलाशी लेने लगे.जब उसने विरोध किया, तो उन्होंने उसे पीटना शुरू कर दिया. हुसैन ने परिवार को बताया कि पहले उसे आग में पड़ी एक लकड़ी से पीटा गया, फिर उसे घसीटकर एक कमरे में ले जाया गया, उसके कपड़े उतार दिए गए और उसके हाथ-पैर बांध दिए गए। आरोप है कि हमला जारी रहा.उसके कान काटने के लिए प्लास का इस्तेमाल किया गया, उसकी उंगलियां कुचली गयी और उसका सिर फोड़ दिया गया.
भाई चांद के अनुसार, “जब भी वह बेहोश होता था, वे उसे जगाने के लिए पानी छिड़कते थे और पिटाई जारी रखते थे. जब उन्हें लगा कि वह और बर्दाश्त नहीं कर सकता, तो उन्होंने उसे चोर साबित करने के लिए उसके शरीर के चारों ओर गहने रख दिए.” उन्होंने आगे कहा कि अगर हुसैन की ऐसी कोई मंशा होती, तो इतने सालों में जब वह उस इलाके में काम कर रहा था, उसके खिलाफ और भी मामले दर्ज होते.
मौत से पहले हुसैन ने बताया कि उसे 20 से 25 लोगों की भीड़ ने पीटा, जिसमें नाबालिग भी शामिल थे. पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि वे सुबह करीब 2.30 बजे पहुंचे और हुसैन को गंभीर हालत में पाया. उसे पहले रोह प्राइमरी हेल्थ सेंटर ले जाया गया और बाद में नवादा सदर अस्पताल रेफर कर दिया गया. वह 11 दिसंबर की रात तक नवादा सदर अस्पताल में था, जब उसे भगवान महावीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, पावापुरी रेफर किया गया.
मॉब लिंचिंग के आरोप में 9 गिरफ्तार
रोह पुलिस स्टेशन में 25 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, जिनमें से 10-15 अज्ञात हैं. पुलिस ने गैरकानूनी सभा और दंगा करने, खतरनाक साधनों से गंभीर चोट पहुंचाने, और उकसाने और सामान्य इरादे के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया है, हुसैन की मौत के बाद हत्या की धाराएं भी जोड़ी गई है. दो लोगों को हिरासत में भी लिया गया है. गिरफ्तार किए गए सभी नौ लोग यादव हैं, जो भट्टा गांव के रहने वाले हैं.
कानूनी पैनल बनाएगी जमीयत उलेमा
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने घोषणा की है कि वह हुसैन को न्याय दिलाने के लिए अनुभवी आपराधिक वकीलों का एक कानूनी पैनल बनाएगी. मोहम्मद अथर हुसैन ने बिहार शरीफ में दो कमरों का घर बनाने में पैसे लगाए, ताकि वे जिस मिट्टी और टाइल वाले घर में रहते थे, उसकी जगह नया घर बन सके. हुसैन के भाई चांद का कहना है कि वे आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाना चाहते हैं और परिवार को सरकारी मदद मिले. कुछ भी मेरे भाई को वापस नहीं ला सकता, लेकिन लंबे समय तक मदद के बिना, उसका परिवार सड़कों पर आ जाएगा. सरकार हुसैन के बड़े बेटे मोहम्मद रकीब हुसैन को नौकरी दे, जो इस साल मैट्रिक पास किया है और इलेक्ट्रिकल का काम सीख रहा है.