महागठबंधन में दो फाड़! बिहार चुनाव में हार के लिए कांग्रेस ने राजद और तेजस्वी को माना असली विलेन, क्या-क्या लगाए आरोप?

बिहार चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने अपनी समीक्षा बैठक में कई गंभीर मुद्दे उठाए. पार्टी ने सीट बंटवारे से लेकर तेजस्वी यादव को जबरन मुख्यमंत्री चेहरा बनाने तक, आरजेडी की रणनीति पर सवाल खड़े किए. कांग्रेस नेताओं ने माना कि कमजोर सीटें, असंगत नेतृत्व, तेजस्वी की देर से सक्रियता और बीजेपी की आक्रामक ग्राउंड मैनेजमेंट हार की प्रमुख वजहें रहीं. अब कांग्रेस वोट चोरी और EVM गड़बड़ियों पर डेटा आधारित राष्ट्रीय अभियान की तैयारी कर रही है.;

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Edited By :  नवनीत कुमार
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बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस जिस आत्ममंथन के दौर से गुजर रही है, उसने महागठबंधन की एकता पर कई गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं. रविवार को हुई लंबी समीक्षा बैठक में जब राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और बिहार के शीर्ष नेताओं ने हार के कारणों पर बात की, तो चर्चा सिर्फ रणनीति तक सीमित नहीं रही बल्कि पार्टनरशिप, सीट बंटवारे और नेतृत्व की विश्वसनीयता पर भी धारदार आरोपों की गूंज सुनाई दी.

मीटिंग का माहौल साफ कर रहा था कि कांग्रेस अब सिर्फ अपनी गलतियों को नहीं देख रही, बल्कि महागठबंधन के भीतर मौजूद उन खामियों पर भी उंगली उठा रही है, जिनके चलते वह इस लड़ाई में बुरी तरह पिछड़ गई. नेताओं ने माना कि हार सिर्फ मतदान में नहीं हुई, बल्कि सीटों के बंटवारे से लेकर नेतृत्व के फैसलों तक, हर मोड़ पर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा और इस नुकसान के लिए सीधे-सीधे RJD और तेजस्वी यादव को जिम्मेदार ठहराया गया.

सीएम फेस की थी जिद

कांग्रेस की सबसे बड़ी शिकायत यही रही कि RJD हर मोड़ पर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करवाने पर अड़ी रही. गठबंधन के भीतर यह सहमति थी कि सरकार बनने के बाद नेता का चयन सामूहिक रूप से होगा, लेकिन चुनाव प्रचार में तेजस्वी को आगे बढ़ाने की मजबूरी ने कई वर्गों में असहजता पैदा की. विशेषकर मुस्लिम और सवर्ण मतदाताओं ने इस कदम को असंतुलित नेतृत्व का संकेत माना. ऊपर से मुकेश सहनी को डिप्टी CM बनाने के वादे ने समीकरण और उलझा दिए—नतीजा, दोनों वर्गों में महागठबंधन की पकड़ कमजोर पड़ती गई.

नीतीश के सामने फीके पड़े तेजस्वी

कांग्रेस नेताओं ने खुलकर कहा कि मुख्यमंत्री पद की तुलना में तेजस्वी यादव का पब्लिक इमेज अभी भी नीतीश कुमार जैसे अनुभवी चेहरे के सामने कमजोर पड़ता है. तमाम आलोचनाओं के बावजूद नीतीश की 'स्थिरता', 'शासन अनुभव' और 'प्रशासनिक पकड़' की छवि अभी भी बिहार के वोटरों को भरोसा देती है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने टिप्पणी की, “जब मुकाबले का चेहरा ही जनता को मजबूत न लगे, तो प्रदर्शन चाहे जितना बेहतर हो, हवा एक झोंके में बदल जाती है.”

राजद ने दी वो सीटें जहां नहीं थी कांग्रेस की पकड़

समीक्षा बैठक में सबसे तीखी नाराजगी सीटों को लेकर रही. कई वरिष्ठ नेताओं ने साफ कहा कि RJD ने कांग्रेस को जीतने लायक सीटें देने के बजाय ऐसे इलाकों का बोझ थमा दिया जहां न कांग्रेस की जड़ें थीं, न कोई ऐतिहासिक प्रदर्शन. 61 में से 23 सीटें ऐसी थीं जहां पार्टी दशकों से जीत के करीब भी नहीं पहुंची. 15 सीटें ऐसी थीं जिनमें गठबंधन की जीत की केवल एक पुरानी याद बची थी. नेताओं ने कटाक्ष भरे अंदाज में कहा, “लड़ाई जीतनी थी, लेकिन हमें दिया गया मोर्चा पहले से हार चुका था.” इससे कांग्रेस की लड़ाई शुरुआत से ही कमजोर जमीन पर खड़ी हो गई.

रैलियों की भीड़ वोटों में नहीं हुई कन्वर्ट

समीक्षा में यह भी स्पष्ट हुआ कि विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी ने पांच साल का समय सही ढंग से नहीं भुनाया. जिन मुद्दों रोजगार, पलायन, किसान संकट, लाभार्थी योजनाओं की खामियां को लगातार उठाया जाना चाहिए था, वे चुनाव के आखिरी हफ्तों में ही जोर पकड़ सके. राहुल गांधी ने मीटिंग में कहा कि इतने बड़े राज्य में मुद्दों की टाइमिंग सबसे अहम होती है, और तेजस्वी की देर से आई आक्रामकता ने उसे सिर्फ 'फाइनल वीक का कैंपेनर' बनाकर छोड़ दिया. यही वजह रही कि उनकी रैलियों की भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो सकी.

बीजेपी थी प्रो एक्टिव

बैठक का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी की ग्राउंड मैनेजमेंट पर चर्चा में बीता. कांग्रेस ने माना कि बीजेपी का संगठन इस बार अभूतपूर्व तरीके से सक्रिय था. सैकड़ों कार्यकर्ताओं को दूसरे राज्यों से भेजकर बूथ स्तर तक जिम्मेदारी बांटी गई. इसके ऊपर ‘जीविका दीदियों’ को चुनावी अवधि में 10,000 रुपये मिलना महिला मतदाताओं के झुकाव को निर्णायक रूप से बदल गया. कांग्रेस नेताओं ने चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए, लेकिन माना कि चाहे विरोध कितना भी किया गया, मॉनिटरिंग में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ.

वोट चोरी का मुद्दा नहीं उठाई RJD

कांग्रेस ने चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए और आरोप लगाए कि वोटों के प्रबंधन में अनियमितताएं थीं. लेकिन यह भी माना कि इस मुद्दे को तेजस्वी यादव ने उतनी मजबूती से नहीं उठाया, जितनी जरूरत थी. ममता बनर्जी जैसे नेताओं की तरह आक्रामकता नहीं दिखाने से यह मुद्दा हवा पकड़ ही नहीं पाया. कांग्रेस ने कहा कि वह संसाधनों की कमी के कारण इसे बड़े आंदोलन में नहीं बदल पाई, और RJD नेतृत्व की चुप्पी ने पूरे विपक्ष की रणनीति को अधूरा छोड़ दिया.

अब कांग्रेस की नई लड़ाई

समीक्षा बैठक के बाद कांग्रेस ने साफ कर दिया कि आगे की लड़ाई सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि डेटा आधारित होगी. पार्टी अब वोट चोरी, EVM गड़बड़ियों और SIR से जुड़े विस्तृत आंकड़ों को सार्वजनिक करने की तैयारी में जुट रही है. राहुल गांधी और खरगे ने लालू यादव व तेजस्वी यादव से फोन पर बात की है, और दिसंबर में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली की योजना भी तैयार है. इस रैली में विपक्ष को एकजुट करने और चुनावी अनियमितताओं के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अभियान छेड़ने का ब्लूप्रिंट सामने आने वाला है.

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