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बिहार चुनाव 2025: NDA के पास महागठबंधन से भी ज्‍यादा यादव विधायक, मुस्लिम विधायकों की संख्‍या सबसे कम

बिहार चुनाव 2025 में मुस्लिम–यादव (M-Y) प्रतिनिधित्व ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 19 से घटकर 11 और यादव विधायकों की संख्या 55 से घटकर 26 रह गई. AIMIM अब सबसे अधिक 5 मुस्लिम विधायकों वाली पार्टी बनकर उभरी है. NDA पहली बार MGB से अधिक यादव विधायक लेकर आया है. यह नतीजे दिखाते हैं कि बिहार की राजनीति में बड़ा सामाजिक बदलाव आया है और M-Y का पारंपरिक प्रभुत्व टूट रहा है.

बिहार चुनाव 2025: NDA के पास महागठबंधन से भी ज्‍यादा यादव विधायक, मुस्लिम विधायकों की संख्‍या सबसे कम
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 17 Nov 2025 12:25 PM

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने न सिर्फ राजनीतिक समीकरण उलट दिए हैं, बल्कि राज्य की सामाजिक संरचना में भी बड़ा बदलाव दर्ज किया है. RJD के नेतृत्व वाले महागठबंधन (MGB) के खिलाफ इस बार जिस तरह वोटों का भारी काउंटर-कंसॉलिडेशन देखने को मिला, उसने पारंपरिक मुस्लिम-यादव (M-Y) वोट बैंक को बुरी तरह प्रभावित किया है. पहली बार ऐसा हुआ है कि NDA के पास अब MGB से ज्यादा यादव विधायक हैं, जबकि मुसलमानों और यादवों दोनों की प्रतिनिधित्व संख्या इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है.

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में मुस्लिम और यादव, दोनों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है. 2020 की विधानसभा में जहां 19 मुस्लिम विधायक थे वहीं इस बार केवल 11 ही चुनकर आए हैं. वहीं बात अगर यादव विधायकों की करें तो 2020 में इनकी संख्‍या 55 थी जो इस बार के चुनाव में केवल 26 रह गई है, यानी लगभग आधे. यह वही यादव समुदाय है जिसकी लंबी राजनीतिक पकड़ ने 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद यादव के शासन को मजबूती दी थी. लेकिन इस चुनाव ने वह आधार भी कमजोर कर दिया.

AIMIM ने बनाया इतिहास: सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मुस्लिम विधायकों की सूची में RJD या कांग्रेस का नाम सबसे ऊपर नहीं, बल्कि ओवैसी की AIMIM का नाम सबसे ऊपर है, जिसके पास 5 मुस्लिम विधायक हैं.

बाकी दलों का हाल -

RJD: 3 मुस्लिम विधायक

कांग्रेस: 2

JDU: 1 (NDA का इकलौता मुस्लिम MLA)

यह साफ संकेत है कि मुसलमान अब पारंपरिक 'सेक्युलर' दलों से नाराज़ हैं, जिन्हें समुदाय बार-बार समर्थन देता रहा, लेकिन बदले में न तो मुद्दों पर ठोस आवाज़ मिली और न ही टिकटों में उचित प्रतिनिधित्व.

मुस्लिम वोट AIMIM की ओर क्यों खिसका?

विशेषज्ञ बताते हैं कि खासकर सीमांचल इलाके में AIMIM का प्रभाव तेजी से बढ़ा है.

मुस्लिम वोटों के खिसकने के जो मुख्‍य कारण बताए जा रहे हैं...

  • महागठबंधन ने मुकेश सहनी (केवल 2.6% जनसंख्या वाली जाति) को डिप्टी CM चेहरा बनाया - जिससे मुस्लिम युवाओं में असंतोष बढ़ा.
  • RJD ने सिर्फ 18 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जबकि यादवों के लिए 51 टिकट रखे गए. इससे समुदाय का एक बड़ा हिस्सा नाराज़ होकर AIMIM की ओर चला गया.
  • दूसरी ओर, NDA ने भी चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन केवल जामा खान ही चुनाव जीत पाए जो पिछली सरकार में मंत्री भी थे.

यादवों की बदली भूमिका: NDA के पास अब अधिक Yadav MLAs

यादवों के मजबूत MGB की ओर झुकाव को देखते हुए, NDA ने इस बार यादव उम्मीदवारों के टिकटों में कटौती की थी. इसके बावजूद नतीजों में बड़ा उलटफेर हुआ. अब NDA के पास 15 यादव विधायक हैं जबकि महागठबंधन के पास 12 रह गए हैं. इतना ही नहीं, विधानसभा में इकलौते BSP MLA भी यादव ही हैं. यह बिहार की राजनीति में एक असामान्य और ऐतिहासिक स्थिति है जहां NDA में यादवों का प्रतिनिधित्व MGB से ज्यादा हो गया है, जिसकी पहचान ही यादव केंद्रित राजनीति रही है.

क्या सच में खत्म हो रहा है M-Y का प्रभुत्व?

मुस्लिम और यादव समुदाय मिलकर बिहार की जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई हिस्सा हैं - मुस्लिम 17.7% और यादव 14.3%. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इस चुनाव में एम-वाई गठजोड़ की राजनीतिक ताकत इसलिए कमजोर पड़ी क्योंकि -

  • 2005 से लगातार विरोधी गठजोड़ का कंसॉलिडेशन बढ़ा है
  • NDA ने “जंगल राज” का मुद्दा आक्रामक ढंग से उठाया
  • अति पिछड़ा वर्ग, गैर–यादव OBC और ऊपरी जातियों में NDA की पकड़ मजबूत हुई
  • MGB अपने पारंपरिक वोट बैंक से आगे नहीं बढ़ पाया

2025 के चुनावों में यह ट्रेंड और तेज़ हो गया, जिसने एम-वाई संयोजन को अब तक के सबसे कमजोर दौर में पहुंचा दिया.

महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती: वोटबैंक से बाहर निकलने की नाकामी

RJD-led महागठबंधन इस चुनाव में इसलिए बुरी तरह फिसला क्योंकि -

  • वह अपने पारंपरिक एम-वाई आधार से बाहर नए सामाजिक समूहों को नहीं जोड़ पाया
  • EBC, गैर–यादव OBC और ऊपरी जातियां NDA के साथ मजबूती से रहीं
  • मुस्लिम युवाओं ने विकल्प के रूप में AIMIM का दामन थामा
  • यादवों की बढ़ती संख्या के बावजूद टिकट वितरण में असमानता रही

इन सभी कारकों ने मिलकर MGB का गढ़ कमजोर कर दिया

बिहार की राजनीति में नया सामाजिक संतुलन

2025 का चुनाव स्पष्ट संकेत है कि बिहार की राजनीति नए सामाजिक पुनर्गठन के दौर में है...

  • एम-वाई राजनीति कमजोर
  • EBC, गैर–यादव OBC और ऊपरी जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ा
  • NDA के तहत यादवों की नई राजनीतिक हिस्सेदारी
  • AIMIM का सीमांचल में उभरता प्रभाव
  • मुस्लिम प्रतिनिधित्व का ऐतिहासिक पतन

ये नतीजे बताते हैं कि बिहार की राजनीति अब केवल दो समुदायों की धुरी पर नहीं घूम रही. नई सामाजिक संरचना और बदलते वोट पैटर्न आने वाले वर्षों में राजनीतिक पार्टियों की रणनीति को पूरी तरह बदल देंगे.

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