"लालू की ठसक! 'राज-पाट' सिखाने चले थे नेता, सुननी पड़ी दो टूक, कहा- पकड़ के फेंक दो बाहर!"
आरजेडी प्रमुख और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की राजनीति हमेशा निराले अंदाज ठसक के साथ करते आए हैं. यही वजह है कि देश के राजनेताओं में उनकी पहचान सबसे अलग है. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कई बार उन्होंने अपने सबसे करीबी नेताओं को भी खूब खरी-खरी सुनाई, जो उन्हें राजनीति और सत्ता का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. उन्हीं में एक नेता नीतीश कुमार आज सीएम हैं. उस दौर की लालू यादव की बेबाक और दो-टूक अंदाज आज भी चर्चाओं में है.;
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव अपने तेवर और बेबाक अंदाज के लिए हमेशा याद किए जाते हैं. मुख्यमंत्री रहते उन्होंने कई बार विरोधियों और यहां तक कि अपनी ही पार्टी के नेताओं को भी करारा जवाब दिया. एक बार तो उन्होंने कुछ नेताओं से साफ कह दिया- “तुम हमको राज-पाट सिखाओ?गे, क्या रटते रहते हो, इन्हें पकड़ के फेंक दो बाहर.” माना जाता है कि जिन नेताओं को लालू ने उस समय लताड़ लगाई थी, उनमें आज भी कइयों के साथ आज उनकी राजनीतिक खटास जारी है. यह किस्सा बताता है कि बिहार की सत्ता में लालू यादव का आत्मविश्वास और दबदबा किस स्तर का था. इतना ही लालू यादव की ठसक में भी अभी तक कोई कमी नहीं आई है.
ये बात 1992 के शुरुआती महीनों की है जब 1990 में लालू यादव पहली बार बिहार के सीएम बने थे. सीएम बनने के दो साल बाद उनसे मिलने उनके करीबी पहुंचे थे. पुस्तक 'ब्रोकन प्रोमिसेज' में मृत्युंजय शर्मा इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, 'उस समय लालू यादव का कद और लोकप्रियता पार्टी के भीतर और बिहार की जनता के बीच सातवें आसमान पर था, लेकिन बिहार में चल रहे शासन से हर कोई खुश नहीं था.' जबकि नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और शरद यादव जैसे नेता लालू को बिहार के शीर्ष पद पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे.
उनके सहयोगियों में से प्रत्येक नेता ने आगे चलकर बिहार की राजनीति के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, इनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नेता नीतीश कुमार ही थे. उनका राजनीतिक जीवन लालू यादव और रामविलास पासवान के साथ जेपी आंदोलन से शुरू हुआ, लेकिन वो उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़े , जितने की लालू यादव. इस बीच नीतीश कुमार जल्द ही सीएम लालू यादव की शर्तों और सीएम बनने के बाद उनके दृष्टिकोण को करीब से समझने लगे थे.
घसीटकर बाहर निकालो यहां से
किताब ब्रोकन प्रोमिसेज के अनुसार नीतीश और लालू ने समाजवादी और लोहिया के दौर में साथ-साथ काम किया था. हालांकि, नीतीश उन समाजवादी आदर्शों से दूर होते गए जिसे उन्होंने अपनाने की कसम खाई थी. नीतीश कुमार का मानना था कि मंडल आंदोलन बिहार के पिछड़े वर्गों को वास्तव में सशक्त बनाएगा. उन्होंने लालू पूछा था कि आरक्षण का अधिकांश लाभ ओबीसी के प्रमुख घटक को कैसे मिलेगा? कर्पूरी जयंती पर आयोजित एक स्मारक समारोह में नीतीश कुमार ने लालू को उन विशिष्ट सिफारिशों को नजरअंदाज करने को लेकर आगाह किया था, जिसे दिवंगत ठाकुर ने मंडल फॉर्मूले के लिए प्रस्तावित की थीं.
मृत्युंजय शर्मा अपनी पुस्तक में लिखते हैं, ' उस समय लालू का जादू जनता के बीच छाया हुआ था. यादव-मुसलमान और कुछ पिछड़ी जातियों के साथ लालू के पास एक निर्विवाद ताकत थी. जब नीतीश कुमार ने सबके सामने लालू को समझाने की कोशिश की और उन्हें मतदाताओं से किए गए उनके वादों की याद दिलाने की कोशिश की तो लालू ने चुटकी लेते कहा, "तुम हमको राज-पात सिखाओगे, गवर्नेंस से पावर मिलता है, पावर मिलता है वोट बैंक से, पावर मिलता है लोगों से, क्या गवर्नेंस की रट लगाते रहते हो?"
इसके कुछ समय बाद 1992 में लालू के साथ बातचीत के तरीके पर अंतिम फैसला लेने सिंचाई की समस्याओं, नालंदा और सोन क्षेत्रों में आंदोलनकारी किसानों के मसले को लेकर के लिए दिल्ली के बिहार भवन में नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी, बिशन पटेल, ललन सिंह और पूर्व एमपी सरयू राय चर्चा करने पहुंचे थे. वहां मौजूद किसी भी नेता को यह याद नहीं है कि मुख्यमंत्री के सुइट में प्रवेश करने के कुछ ही समय बाद ललन सिंह के साथ उनकी बैठक गाली-गलौज और हाथापाई में बदल गई. लालू ने ललन सिंह को चिल्लाते हुए अपने कमरे से बाहर जाने के लिए चिल्लाए. वह यह कहते हुए सुने गए कि, "निकल यहां से, निकल, ...बाहर निकल, निकल, बदमाश', इस दौरान लालू यादव अमर्यादित भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे थे.'
जैसे ही बंद कमरे का हंगामा गलियारों तक पहुंचा, दूसरे कमरे में इंतजार कर रहे सरयू राय दौड़कर आए और देखा कि क्या हो रहा है? गलियारे में गालियों की बौछार साफ सुनाई दे रही थी. वीवीआईपी दरवाजे पर धक्का-मुक्की के बीच लालू सुरक्षाकर्मियों को पुकारते सुनाई दिए. वह कह रहे थे, 'पकड़ के फेंक दो बाहर, ले जाओ घसीट के (इनको यहां से बाहर निकालो, घसीटकर बाहर निकालो).'
अब साथ चलना मुश्किल है - नीतीश कुमार
पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि ललन सिंह ने अपने तेवर के साथ शायद कुछ ऐसा कह दिया होगा जिससे लालू भड़क गए होंगे. नीतीश कुमार मौके से केवल यह बोलकर कि, 'अब साथ चलना मुश्किल है' वहां से चल दिए. उन्होंने सरयू राय से एक पत्र लिखने को कहा, 'जिसमें लालू यादव से अलगाव के उन कारणों को शामिल करने को कहा, उन्हें सार्वजनिक किया जा सके.'
13 साल लगा, पर JDU प्रमुख ने लालू को ऐसे किया सत्ता से बेदखल
वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत के हाथ यह पत्र लगा, लेकिन वो लेटर वर्षों तक दबा पड़ा रहा. आखिरी पन्ना गायब है. नीतीश कुमार के पत्र की शुरुआत इस तरह की, 'अब आपसे बात करना संभव नहीं है, क्योंकि मेरे विचार से आप गंभीर या महत्वपूर्ण चर्चा करने के लिए गंभीर नहीं हैं.' उसी के बाद से बिहार के सीएम धीरे धीरे लालू यादव से दूर होते गए. पहले उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी का गठन किया. 1997 में एनडीए गठबंधन में शामिल हुए और 2005 में बीजेपी के साथ सरकार बनाकर लालू यादव को बिहार की सत्ता से बेदखल कर दिया.
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लालू को जेल तक पहुंचाने में इस नेता ने निभाई अहम भूमिका
उसके बाद से आज तक नीतीश कुमार बिहार के सीएम है. वह अब तक नौ बार सीएम बन चुके है और लालू यादव सभी तरह की कोशिश करने के बाद भी सत्ता में वापसी नहीं कर पाए हैं. जबकि नीतीश कुमार आज भी उनके जंगलराज और भ्रष्टाचारी बताकर सत्ता पर काबिज हैं. ललन सिंह केंद्रीय मंत्री है. सरयू राय झारखंड के नेता हैं. शिवानंद तिवारी भी आरजेडी बिहार के बड़े नेता हैं. बताया जाता है कि सरयू राय ऐसे नेता हैं, जिन्होंने लालू यादव को चारा घोटाले में जेल भेजने में अहम भूमिका निभाई. अब नीतीश को सत्ता से बेदखल करने के लिए लालू यादव बिहार की जनता से यह कहते हुए सुने जाते हैं कि नीतीश के कुशासन से प्रदेश को बचाने के लिए तेजस्वी यादव पर भरोसा कीजिए.