महागठबंधन में भी बड़ा भाई कौन पर 'रार', कांग्रेस ने बदली रणनीति तो RJD की बढ़ी मुश्किलें, क्या है राहुल का इरादा?
बिहार महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर ‘बड़े भाई’ की राजनीति ने नया मोड़ ले लिया है. इस बार कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए साफ संकेत दे दिया है कि अब वह सिर्फ सहयोगी नहीं बल्कि निर्णायक भूमिका में दिखना चाहती है. राहुल गांधी के ताजा रुख से साफ है कि पार्टी अब बिहार में क्षेत्रीय दलों के मुकाबले खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने की तैयारी कर रही है.;
महागठबंधन (INDIA Bloc) की राजनीति में एक बार फिर बड़ा भाई-छोटा भाई का सवाल गर्म हो गया है. इस बार यह 'रार' एनडीए में नहीं बल्कि कांग्रेस और आरजेडी के बीच है. महागठबंधन में बड़ा भाई कौन होगा, यह सवाल फिलहाल सुलझता नहीं दिख रहा. वैसे भी कांग्रेस लंबे समय से विपक्षी दलों के साथ तालमेल साधने की कोशिश करती रही है. यही वजह है कि इस मसले पर न तो 2015 में और न ही 2020 में आरजेडी को कोई परेशानी हुई. अब कांग्रेस की रणनीति बदलती नजर आ रही है. राहुल गांधी के संकेतों से साफ है कि पार्टी अब झुकने के बजाय अपनी सियासी हैसियत को स्थापित करना चाहती है. इस नई चाल का असर सीधे तौर पर सीट शेयरिंग और विपक्षी एकजुटता पर पड़ेगा.
1. महागठबंधन में ‘बड़े भाई’ का सवाल
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सुगबुगाहट तेज होने के बाद से इस बार महागठबंधन की राजनीति इस सवाल के इर्द-गिर्द घूम रही है कि आखिर बड़ा भाई कौन होगा? क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में मजबूत दावेदारी पेश करते हैं. आरजेडी नेतृत्व का दावा छोड़ने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि बिहार से पहले उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में सीटों को लेकर खींचतान देखने को मिली थी.
2. कांग्रेस ने बदली रणनीति
पहले कांग्रेस गठबंधन को बचाने के लिए रियायत देती दिखती थी, लेकिन इस बार पार्टी ने अपना स्टैंड बदल लिया है. रुख बदल गया है. राहुल गांधी के हालिया बयानों और बैठकों से संकेत मिला है कि कांग्रेस अब ‘न्यायपूर्ण सीट बंटवारे’ की बात करेगी, लेकिन उसमें पार्टी की केंद्रीय भूमिका भी सुनिश्चित रहेगी. यानी, अब कांग्रेस ‘मोलभाव करने वाली’ स्थिति में रहना चाहती है.
3. राहुल गांधी का इरादा क्या है?
राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस सिर्फ सहयोगी न लगे बल्कि विपक्ष का धुरी बने. उनका मकसद है कि जनता में यह संदेश जाए कि कांग्रेस ही बीजेपी के खिलाफ सबसे बड़ा विकल्प है. जबकि क्षेत्रीय दल उसकी ताकत बढ़ाने वाले साथी हैं. इसके लिए राहुल गांधी लगातार संगठन को मजबूत करने और चुनावी राज्यों में खुद नेतृत्व करने पर जोर दे रहे हैं.
4. क्षेत्रीय दलों की बढ़ी मुश्किलें
कांग्रेस के इस नए रुख से क्षेत्रीय दलों खासकर राष्ट्रीय जनता दल की मुश्किलें बढ़ गई है. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेताओं के लिए अपने राज्यों में कांग्रेस को बड़ी हिस्सेदारी देना आसान नहीं होगा.
5. लोकसभा चुनाव 2024 की शिकस्त से सबक
लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा, लेकिन वह अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंचा. पार्टी को अब एहसास है कि यदि वह बड़े भाई की भूमिका नहीं निभाती, तो जनता में उसका नेतृत्व कमजोर माना जाएगा. इसी वजह से राहुल गांधी रणनीति बदलकर महागठबंधन के भीतर अपनी शर्तें मजबूत करना चाहते हैं.
6. कांग्रेस मंशा प्रचार कमान अपने हाथ में लेने की
कांग्रेस महासचिव नासिर हुसैन ने एक दिन पहले कहा कि बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने महागठबंधन के प्रचार की कमान संभालने का ऐलान किया है. इतना ही नहीं, पार्टी अपने अहम मुद्दों को गठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कराएगी. सत्ता में आने पर उन्हें पूरा करेगी. खास बात यह है कि कांग्रेस के टॉप नेता लगातार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के सवाल को टालते रहे हैं. कांग्रेस नेता नासिर हुसैन के मुताबिक अति पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को बढ़ाने की बात की है. कर्नाटक और तेलंगाना जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में यह लागू किया गया है और बिहार में भी इसे हर हाल में लागू किया जाएगा.
7. सीट बंटवारे पर नहीं बनी सहमति
महागठबंधन में सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर पेच फंसता दिख रहा है. कांग्रेस ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को 76 सीटों की एक सूची सौंपी है. साथ ही ये भी कह दिया है कि अगर सीटों के बंटवारे में देर हुई तो वह 30 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को प्रचार शुरू करने की इजाजत पार्टी दे देगी. एक तरफ जहां आरजेडी और वीआईपी जैसे दल तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर मौन है. राहुल गांधी से लेकर बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु तक सीएम फेस बताने से बच रहे हैं.