राबड़ी देवी को हराया, बीजेपी ने फिर राघोपुर से मैदान में उतारा; कौन हैं तेजस्वी को कांटों की टक्कर देने वाले सतीश कुमार यादव?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राघोपुर सीट पर फिर सियासी जंग तेज है। तेजस्वी यादव ने नामांकन दाखिल किया, तो भाजपा ने सतीश कुमार यादव पर भरोसा जताया। 2010 में राबड़ी देवी को हराने वाले सतीश एक बार फिर चुनौती देने उतरे हैं। यादव बहुल राघोपुर सीट पर लालू परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। क्या इस बार गढ़ टूटेगा या परंपरा कायम रहेगी?;

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Curated By :  नवनीत कुमार
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और अब मुकाबले की सबसे दिलचस्प सीटों में से एक बार फिर राघोपुर सुर्खियों में है. शुक्रवार को नामांकन की आखिरी तारीख से पहले राजनीतिक हलचल अपने चरम पर है. इस सीट से आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने परंपरा निभाते हुए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है, जबकि बीजेपी ने इस बार फिर सतीश कुमार यादव पर भरोसा जताया है.

राघोपुर, जो लालू परिवार की राजनीतिक धरती मानी जाती है, वहां की हर जंग सियासी इतिहास लिखती आई है. यह वही सीट है जहां से कभी लालू यादव, फिर राबड़ी देवी और अब उनके बेटे तेजस्वी ने अपनी राजनीति की विरासत को आगे बढ़ाया. मगर, अब भाजपा ने मैदान में ऐसा चेहरा उतारा है जो एक बार इसी परिवार को हार का स्वाद चखा चुका है.

कौन हैं सतीश कुमार यादव?

सतीश कुमार यादव, बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम हैं जो जमीन से उठकर पहचान बनाने वाले नेताओं में गिने जाते हैं. वे मूल रूप से यदुवंशी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. सतीश की राजनीतिक यात्रा राजद से शुरू हुई, लेकिन बाद में वे नीतीश कुमार की जेडीयू में शामिल हो गए.

2010 में सतीश कुमार यादव ने सबको चौंकाते हुए राबड़ी देवी को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं. तब उन्होंने लगभग 13,000 वोटों के अंतर से यह ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. उस जीत ने सतीश को राघोपुर का सबसे चर्चित चेहरा बना दिया था.

कैसा रहा राजनीतिक करियर?

सतीश कुमार यादव का राजनीतिक करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. 2005 में उन्होंने पहली बार राघोपुर से किस्मत आजमाई, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. 2010 में उन्होंने बाजी पलटी और राबड़ी देवी को मात दी. इसके बाद 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में वे तेजस्वी यादव के सामने मैदान में उतरे, लेकिन हार गए. बावजूद इसके, पार्टी ने उन पर भरोसा बनाए रखा. भाजपा मानती है कि सतीश कुमार यादव में राघोपुर जैसे यादव बहुल क्षेत्र में सीधी चुनौती देने की क्षमता है.

जब राबड़ी देवी को मिली थी करारी हार

2010 का चुनाव बिहार की राजनीति के लिए ऐतिहासिक रहा. नीतीश कुमार के सुशासन की लहर इतनी तेज थी कि लालू परिवार को भी झुकना पड़ा. इस चुनाव में राबड़ी देवी को सतीश कुमार यादव ने हरा दिया. उस वक्त सतीश को 64,222 वोट मिले जबकि राबड़ी देवी 51,216 पर सिमट गईं. यह नतीजा सिर्फ एक चुनावी हार नहीं थी, बल्कि उस दौर में राजद के गिरते ग्राफ की गवाही भी थी. सतीश की यह जीत आज भी राघोपुर की राजनीति में मिसाल बनकर देखी जाती है.

तेजस्वी यादव का लगातार दबदबा

2015 से राघोपुर सीट पर तेजस्वी यादव लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं. उन्होंने दो बार सतीश कुमार को हराया. 2015 में करीब 22,000 वोटों के अंतर से और 2020 में 37,000 वोटों के अंतर से. हालांकि, 2020 के नतीजों में यह साफ दिखा था कि मुकाबला पूरी तरह एकतरफा नहीं था. एलजेपी के राकेश रौशन को करीब 25,000 वोट मिले, जिससे त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई थी.

राघोपुर की राजनीतिक अहमियत

राघोपुर, वैशाली जिले की सबसे हाई-प्रोफाइल विधानसभा सीट मानी जाती है. यह सीट लालू परिवार की राजनीतिक पहचान से जुड़ी है. यहां से जीत का मतलब सिर्फ विधानसभा में जाना नहीं बल्कि राज्य की सियासत में बड़ा संदेश देना होता है. यही वजह है कि इस सीट पर हर चुनाव में बिहार की निगाहें टिकी रहती हैं. इस बार भी भाजपा ने इस पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, ताकि ‘लालू परिवार के गढ़’ में सेंध लगाई जा सके.

जातीय समीकरण की अहम भूमिका

राघोपुर का चुनाव हमेशा जातीय संतुलन के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. यहां करीब 31-32 फीसदी यादव मतदाता हैं, जो पारंपरिक रूप से राजद के वोट बैंक माने जाते हैं. इसके अलावा, राजपूत और भूमिहार समुदाय की भी मजबूत उपस्थिति है. भाजपा का दांव इस बार इसी जातीय गणित पर है. यादव मतों में सेंध लगाकर ऊंची जातियों के वोटों को एकजुट करना. यही रणनीति सतीश कुमार यादव की उम्मीदों को जिंदा रखती है.

भाजपा का भरोसा और रणनीति

भाजपा ने सतीश कुमार यादव को तीसरी बार राघोपुर से टिकट देकर साफ संदेश दिया है कि वह इस सीट पर लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है. जेडीयू और एलजेपी-आर के साथ गठबंधन ने विपक्ष को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है. पार्टी को उम्मीद है कि इस बार गठबंधन के एकजुट होने से तेजस्वी यादव को कड़ी टक्कर मिलेगी. सतीश कुमार खुद भी इस लड़ाई को ‘प्रतिष्ठा का सवाल’ मानकर मैदान में उतर चुके हैं.

क्या टूटेगा लालू परिवार का गढ़?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार राघोपुर में लालू परिवार का किला हिलेगा? सतीश कुमार यादव का राजनीतिक अनुभव, भाजपा-जेडीयू-लोजपा का गठबंधन और बदलता मतदाता मूड इस चुनाव को रोमांचक बना रहा है. तेजस्वी यादव भले ही बड़े नेता हैं, लेकिन इस सीट पर मुकाबला पहले जैसा आसान नहीं दिखता. राघोपुर की जंग 2025 में बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकती है.

राघोपुर की लड़ाई सिर्फ दो उम्मीदवारों के बीच नहीं बल्कि दो राजनीतिक विचारों के बीच संघर्ष बन चुकी है. एक तरफ ‘लालू परिवार की विरासत’, और दूसरी तरफ ‘संगठित विपक्ष का नया आत्मविश्वास’. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार राघोपुर में जनता किस पर भरोसा जताती है. तेजस्वी की परंपरा पर या सतीश की चुनौती पर.

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