हे राम! 50 पर अटके पीएम मोदी के 'हनुमान'... बिहार में सियासी रामायण का गुणा गणित

चिराग पासवान, जो खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते हैं, बिहार विधानसभा चुनाव में 50 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं. उनकी पार्टी के पास लोकसभा और राज्यसभा में कमज़ोर स्थिति है, बावजूद इसके वह एनडीए से उच्च सीटों की अपेक्षा कर रहे हैं. विपक्ष और जनता दोनों उन्हें 'कलियुग का हनुमान' कहकर चुटकी ले रहे हैं.;

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By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 12 Sept 2025 7:12 PM IST

लोकसभा में 5 सांसद, राज्‍यसभा में शून्‍य, न तो बिहार विधानसभा में कोई विधायक और न ही विधान परिषद में कोई सदस्‍य. फिर किस औकात से बिहार विधानसभा चुनाव में 40 से 50 सीटों की उम्‍मीद लगाए बैठे हैं चिराग पासवान. आपका ज्‍यादा सीटें मांगना तब जायज होता जब आपने ताकत दिखाई होती किसी चुनाव में. लोकसभा चुनाव में तो आप बीजेपी और जेडीयू के दम पर अपनी सभी सीटें जीतने में कामयाब रहे लेकिन आपका एक भी सदस्‍य विधान परिषद तक में क्‍यों नहीं है. खुद को आप पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हैं और ज्‍यादा सीटें पाने के लिए तमाम तरह की दबाव की राजनीति करने से नहीं चूक रहे.

अपने प्रभु राम से सौदेबाजी करने का ख्‍याल भी हनुमान जी के मन में आता, ऐसा सोच पाना भी मुश्किल है. लेकिन बात यह भी है कि यह त्रेता युग तो है नहीं, कलियुग है और शायद कलियुग में आप जैसे हनुमान से यही उम्‍मीद की जा सकती है. अच्‍छा तो यह हो कि अगर सौदेबाजी ही करनी है तो कम से कम खुद को मोदी का हनुमान कहना बंद कर दें.

अब बिहार की सियासत में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के लोग भी चिराग पासवान को 'कलियुग का हनुमान' कहकर चुटकी लेने लगे हैं. आम लोग भी सामान्य बातचीत में कहते सुने जाते हैं कि अरे उसकी बात छोड़ो, वो तो कलियुग का हनुमान है न. वो जैसा है, वैसी ही उसकी राजनीति भी है. फर्क बस इतना है कि असली हनुमान भगवान राम के लिए समर्पित थे. जबकि चिराग का समर्पण सत्ता की कुर्सी के इर्द-गिर्द ही घूमता दिखता है. वो पीएम मोदी का खुद को हनुमान बताकर गठबंधन के सहयोगी नीतीश कुमार का ही सियासी काम तमाम कर देते हैं.

5 साल पहले लगा चुके हैं एनडीए की 'पूंछ में आग'

चिराग पासवान पांच साल पहले इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुके हैं. इस बार भी उनकी योजना किसी तरह से पीएम मोदी के सबसे बड़े सहयोगी नीतीश कुमार की वाट लगाने की ही लग रही है. यही वजह है कि लोग कहते हैं, 'ये कैसा हनुमान है! असली हनुमान ने तो रावण के महल में आग लगाने का काम किया था, जबकि ये तो अपने की गठबंधन में आग लगाता रहता है.'

राम के हनुमान तो बिना सोचे समझे करते थे काम

त्रेता के हनुमान तो बिना सोचे-समझे 'राम के काज' में जुट जाते थे, वैसे ही चिराग कभी मोदी जी को 'राम' कह कर गाते दिखते हैं और NDA से बाहर रहकर भी NDA के लिए जिस अंदाज में चुनाव प्रचार करते हैं, वो कला शायद राजनीति का नया संस्करण है. हो भी क्यों न, ये तो कलियुग के हनुमान हैं. हनुमान जी ने लंका जलाई थी, चिराग ने अपनी ही पार्टी के साथ जेडीयू की भी लंका लगा दी और अब उसी राख पर सत्ता की सीढ़ियां ढूंढ रहे हैं. बिहारी अस्मिता की बात करते हैं. पीएम मोदी के भारत प्रथम की तरह 'बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट' का नारा देते हैं. लेकिन राम के हनुमान और मोदी के हनुमान में एक चीज कॉमन है. "राम के बिना हनुमान अधूरे हैं", ठीक उसी तरह चिराग बिना NDA के नेता भी अकेले नजर आते हैं, लेकिन काम उनके ठीक हनुमान से उलट हैं.

आप यह कह सकते हैं, यह राजनीति का ऐसा कलियुगी संस्करण है, जहां वफादारी का मतलब सिर्फ सत्ता की छांव में रहना होता है. चिराग के लिए "राम" कौन हैं, यह वक्त के साथ बदलता रहता है- कभी मोदी, कभी सत्ता, कभी गठबंधन. आने वाले दिनों में उनका राम कौन होगा, ये अभी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, लेकिन आने वाले दिनों में कुछ भी हो सकता है.

चिराग ने की 50 सीटों की मांग

दरअसल, इसकी चर्चा इसलिए हो रही है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बिहार चुनाव को लेकर सहयोगी दलों के बीच सीटों के आवंटन को लेकर मंथन जारी है. बिहार विधानसभा की कुल सीटें 243 है. इनमें से 200 सीटों पर जेडीयू और बीजेपी वाले प्रत्याशी उतारेंगे. इसके बाद शेष 40 सीट बचती हैं. जबकि चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए 50 सीटों की मांग कर रहे हैं. जबकि उनके अलावा एनडीए में जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी भी है. मांझी ने भी 20 सीटों की मांग की है. कुशवाहा भी पार्टी का विस्तार चाहते हैं. बीजेपी ने एलजेपी को 20 से 25 सीटें मिलने के संकेत दिए हैं.

इस बार किसकी लंका में लगाएंगे आग

इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पीएम के हनुमान शायद ही तैयार हों. ऐसा इसलिए कि सीट बंटवारा अगर लोकसभा चुनाव में हार जीत के हिसाब से होगा तो भी 30 सीटों पर एलजेपीआर के नेता नैसर्गिक हक जता रहे हैं. फिर चिराग पासवान क्या करेंगे? पांच साल पहले की तरह एनडीए से अलग हटकर 135 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और जेडीयू का बंटाधार करेंगे. या फिर पीके की जनसुराज पार्टी का दामन थामेंगे. महागठबंधन में तो वह एडजस्ट नहीं कर पाएंगे. ऐसा इसलिए कि उसमें सात पार्टियां हैं, उन्हीं को तेजस्वी यादव खुश नहीं कर पा रहे हैं. इसके अलावा, उनके पास एक और विकल्प है. वे विकल्प एआईएमआईएम नेता ओवैसी गुट का है. ओवैसी की पार्टी भी बिहार में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने के फिराक में है. या फिर एनडीए कोटे के तहत जो मिलेगा उसी से संतोष कर चुनाव लड़ेंगे. रामायण में तो हुनमान द्वारा खुद की पूंछ में आग लगवाकर लंका जलाने की कहानी है, तो फिर कलियुगी हनुमान को भी तो कुछ न कुछ करना ही होगा ना.

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