क्या कांग्रेस की वजह से बिगड़ेगा 'महागठबंधन' का खेल? बिहार चुनाव में उठे सवाल

बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े हो गए हैं. कांग्रेस की कमजोर तैयारी, प्रचार में सुस्ती और सीट-वार रणनीति की कमी ने आरजेडी की चिंता बढ़ा दी है. सवाल उठ रहा है - क्या कांग्रेस इस बार भी गठबंधन के लिए ‘कमजोर कड़ी’ साबित होगी? जानिए, कहां फंस रहा महागठबंधन का मामला?;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 30 Oct 2025 5:31 PM IST

बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन पूरी ताकत से मैदान में है, लेकिन अंदरखाने हालात उतने सहज नहीं दिख रहे. गठबंधन के सबसे पुराने सहयोगी कांग्रेस पर इस बार भी संगठनात्मक कमजोरी और स्पष्ट रणनीति न होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कई सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा में देरी और प्रचार अभियान की सुस्ती से सहयोगी दलों के भीतर असंतोष है. बिहार के सियासी जानकारों का कहना है कि अगर कांग्रेस ने जल्द रणनीति नहीं बदली, तो इसका सीधा असर इस बार भी महागठबंधन नतीजों पर हो सकता है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मंच पूरी तरह से बिछ चुका है. विपक्षी महागठबंधन एकजुट होकर चुनावी मैदान में है. पर यह चर्चा क्यों है कि इस चुनाव में महागठबंधन की जीत के लिए कांग्रेस एक कमजोर कड़ी है. इसके पीछे मुख्य वजह चुनाव में लगातार कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को माना जा रहा है. महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के लिए यह मसला स्थिति को और जटिल बना सकता है.

70 में से सिर्फ 19 सीटें जीती थी कांग्रेस

 

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई. इससे उनका स्ट्राइक रेट केवल 27 प्रतिशत रहा. यह प्रदर्शन महागठबंधन के घटक दलों में सबसे कमजोर था. तेजस्वी और लालू यादव के लिए बार-बार तनाव का मुख्य कारण यही है.

कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का ही नतीजा है कि आरजेडी खेमे को डर है कि उसके कब्जे वाली सीटें, जो जीतने लायक हो सकती थीं, फिर से महागठबंधन कहीं हार न जाए.

कितना बेहतर हो सकता है 'स्ट्राइक रेट'?

इस बार, कांग्रेस ने 61 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 56 सीटों पर भाजपा और जेडीयू से उसका सीधा मुकाबला है. सही मायने में कहा जाए तो लालू परिवार को इसकी चिंता इसलिए है कि ये सीटें एनडीए के प्रभावी वाली हैं.

ऐसे गढ़ों से जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस को काफी मेहनत करनी होगी. लगभग पांच या छह सीटों पर, कांग्रेस, आरजेडी और वामपंथी दल मिलकर एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी इस बात पर विचार कर रही है कि उसका स्ट्राइक रेट कितना बेहतर हो सकता है. कांग्रेस के कमजोर नतीजे कोई हालिया मुद्दा नहीं हैं, बल्कि दशकों से बने हुए हैं.

2010 में सिर्फ 4 सीटें 

1995 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस किसी भी मुकाबले में कांग्रेस 30 से ज्यादा सीटें जीतने में नाकाम रही है. इसका सबसे बुरा दौर 2005 में आया था जब पार्टी ने सिर्फ नौ सीटें जीती थीं और 2010 में सिर्फ चार.

RJD के लिए हर सीट जीतना जरूरी

कांग्रेस के लगातार कमजोर प्रदर्शन का मतलब है कि कांग्रेस के कब्जे वाली सीटों पर जीत की उम्मीद कम है, जिसका असर महागठबंधन की कुल सीटों पर पड़ सकता है. एनडीए से कड़ी टक्कर मिलने के कारण, हर सीट पर जीत हासिल करना बेहद जरूरी है. हालांकि, कांग्रेस ने इस चुनाव में जीत के लिए प्रयास करती हुई दिखाई दे रही है, लेकिन उसका संगठन बहुत कमजोर है.

तो बेकार जाएगा कांग्रेस का प्रयास!

बड़े-बड़े नेताओं ने बिहार का दौरा किया, राज्य की युवा आबादी को ध्यान में रखकर वादे किए गए और अनुभवी कार्यकर्ताओं को संगठित करने के प्रयास किए. इन उपायों के बावजूद, नतीजों को 'ढाक के तीन पात' बताया गया है, जो सीमित प्रभाव का संकेत देता है. परिणाम खराब आने के पीछे एक वहज स्थानीय स्तर पर प्रभावी नेतृत्व का अभाव माना  जा रहा है.

सियासी जानकारों का कहना है कि महागठबंधन का स्वरूप तो मजबूत दिखता है, लेकिन कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन से विपक्षी एकता की धार कुंद हो सकती है. बिहार में जनता अब सक्रिय और जमीन से जुड़े चेहरों को प्राथमिकता दे रही है.

कांग्रेस नेतृत्व ने अब प्रचार में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रैलियों पर फोकस बढ़ाने का फैसला किया है. हालांकि, सवाल यह है कि क्या आखिरी वक्त की यह कोशिश महागठबंधन के समीकरणों को संभाल पाएगी?

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