तेजस्वी की 'M+Y+K' कार्ड से नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी, क्या RJD की होगी वापसी?

Bihar Chunav 2025: ‘MY’ वोट बैंक को बरकरार रखते हुए, ‘K’ यानी कुर्मी,‘EBC’ (अति पिछड़ा वर्ग) और ‘महादलित’ समुदायों को जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं. अगर यह समीकरण सफल होता है, तो यह आरजेडी को सीमांचल से लेकर मगध और दक्षिण बिहार तक मजबूत बना सकता है. ऐसा हुआ तो यह नीतीश के लिए सियासी मुसीबत का कारण भी बनेगा.;

Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 21 Oct 2025 3:46 PM IST

 Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सियासी तापमान चरम पर है. नामांकन की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अब सियासी दलों के प्रत्याशी और नेता चुनावी अभियानों को धार देने में जुटे हैं. इस बार मुकाबला सिर्फ सीटों पर जीत की नहीं बल्कि जातीय समीकरणों के नए जोड़ का भी है. एक ओर नीतीश कुमार का परंपरागत कुर्मी-कायस्थ और महादलित (EBC) वोट बैंक को साधने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव की पारंपरिक ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को नया रंग देने में लगे हैं. अब राष्ट्रीय जनता दल ने इसमें ‘K’ (कुशवाहा) यानी कुर्मी वोट बैंक जोड़ने की रणनीति बनाई है. ताकि नीतीश के गढ़ में सेंध लगाकर सत्ता में वापसी करना संभव हो सके.

क्या है RJD का 'MY + K' फार्मूला?

लालू यादव के जमाने से ही RJD का कोर वोट बैंक मुस्लिम और यादव समुदाय रहा है. इसी के बल पर लालू यादव 15 साल तक बिहार की सत्ता पर कायम रहे. यही ‘MY समीकरण’ पार्टी की रीढ़ की हड्डी साबित हुआ. मगर बदलते राजनीतिक हालात में तेजस्वी यादव अब इस फार्मूले में संशोधन किया है. उन्होंने इसमें कुशवाहा को भी जोड़ लिया है. इस योजना ‘K’ यानी कुर्मी से जुड़े मतदाताओं को साधने में आरजेडी पूरी शिद्दत से जुटी है.

कुर्मी समाज, जो परंपरागत रूप से नीतीश कुमार का मजबूत आधार रहा है, अब राजद के लिए 'नया टारगेट ब्लॉक' है. दरअसल, RJD ने बिहार चुनाव के लिए 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की है. इस सूची में 'MY' उम्मीदवारों को लगभग आधी सीटें मिली हैं. पार्टी ने कुशवाहा जाति के 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया. ताकि लोकसभा चुनाव की तरह इस वोट बैंक को भी साधा जा सके.

RJD की सियासी रणनीति के 3 अहम पहलू

  • स्थानीय समीकरण के तहत आरजेडी ने उन सीटों पर जहां कुर्मी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, वहां इस समुदाय से उम्मीदवार उतारे हैं.
  • जस्वी यादव सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार पर 'वर्गीय भेदभाव' और 'विकास में असंतुलन' का आरोप लगाकर कुर्मी समाज के युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
  • स्थानीय स्तर के कई कुर्मी नेताओं को हाल ही में आरजेडी में शामिल कराया है. ताकि नीतीश के प्रभाव को कम किया जा सके.

‘K’ कार्ड पार्टी के लिए जरूरी क्यों?

बिहार की राजनीति में कुर्मी समुदाय की हिस्सेदारी करीब 7 से 8 प्रतिशत मानी जाती है. अब तक यह नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू के साथ मजबूती से खड़ा रहा है. मगर नीतीश की बदलती राजनीतिक पारी यानी एनडीए में आना-जाना, उम्र और नेतृत्व की थकान ने इस समुदाय के भीतर 'वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश' को जन्म दिया है. लालू की पार्टी आरजेडी इसी असंतोष को भुनाने में जुटी है.

तेजस्वी का नया सियासी गणित

तेजस्वी यादव युवाओं और जातीय संतुलन दोनों पर एक साथ दांव खेल रहे हैं. ‘MY’ वोटबैंक को बरकरार रखते हुए, ‘K’ यानी कुर्मी,‘EBC’ (अति पिछड़ा वर्ग) और ‘महादलित’ समुदायों को जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं. अगर यह समीकरण सफल होता है, तो यह आरजेडी को सीमांचल से लेकर मगध और दक्षिण बिहार तक मजबूत बना सकता है. यहीं से नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत  पिछले दो दशक से हासिल करते आए हैं.

सियासी जानकारों के अनुसार तेजस्वी की यह रणनीति 'कैलकुलेटेड रिस्क' है. दांव चल गया तो आरजेडी के लिए सोने पर सुहागा'. अगर कुर्मी समाज का कुछ हिस्सा भी पार्टी से जुड़ा तो जेडीयू को सीधा नुकसान होगा. दूसरी ओर अगर यादव-मुस्लिम मतदाता इसे 'अपनी हिस्सेदारी में कमी' मानने लगे तो RJD के अंदर भी असंतोष बढ़ सकता है.

'M+Y+K' नीतीश के वोट बैंक में लगा पाएगा सेंध

साफ है कि तेजस्वी यादव की यह नई चाल 'M+Y+K' समीकरण सिर्फ गणित नहीं बल्कि नीतीश कुमार के राजनीतिक किले में सेंध लगाने की कोशिश है. जहां लालू यादव की राजनीति ‘MY’ तक सीमित थी, वहीं तेजस्वी की राजनीति ‘M+Y+K+EBC’ तक विस्तार ले रही है. अब सवाल यह है कि क्या यह नया गठजोड़ नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगा पाएगा या सिर्फ एक सियासी प्रयोग बनकर रह जाएगा?

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