Transgender SIR: घर कहां है, मेरी पहचान क्या है? एसआईआर को लेकर खौफ में बंगाल के ट्रांसजेंडर, सवाल का क्या है जवाब?

भारत में कानूनी रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपनी पहचान खुद तय कर सकता है. सरकार का काम है उसे स्वीकार करना, न कि उसकी पहचान पर सवाल उठाना. ऐसा इसलिए कि ट्रांसजेंडर बनने के बाद कई लोग अपने परिवारों से अलग हो गए हैं, उनके पास डॉक्यूमेंट्स नहीं होते हैं और चेहरे भी मैच नहीं कर रहे होते हैं. ऐसे में ट्रांस लोगों को एसआईआर प्रक्रिया के दौरान बाहर किए जाने और नए ट्रॉमा का डर है.;

Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 28 Nov 2025 12:14 PM IST

पश्चिम बंगाल में वोटर रोल का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) जारी है, ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि उन्हें घर-घर जाकर वेरिफिकेशन के दौरान अपनी पहचान साबित करने में मुश्किल हो रही है. कई लोग सालों से घर नहीं गए हैं.मतदाता सूची अपडेट करने के दौरान निवास प्रमाण, परिवार विवरण और दस्तावेजों की मांग ने ट्रांसजेंडरों की असुरक्षा बढ़ा दी है. पहचान और पते की समस्या के कारण ट्रांसजेंडर समुदाय को डर है कि कहीं वे मताधिकार खो न दें. जबकि कानून कहता है कि जेंडर पहचान और घर न होने के बावजूद उनका वोट देने का अधिकार पूरी तरह सुरक्षित है.

ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्या

  • ट्रांसजेंडर से बीएलओ पूछ रहे हैं, ‘घर कहाँ है? मेरी पहचान क्या है?’ पश्चिम बंगाल में ट्रांसजेंडर समुदाय SIR को लेकर डर के बीच पूछ रहा है.'

बीएलओ केंद्र के ट्रांसजेंडर कार्ड को नहीं मान रहे पहचान

  • इलेक्शन कमीशन केंद्र सरकार द्वारा दिए गए ट्रांसजेंडर कार्ड को पहचान के सबूत के तौर पर नहीं मानता है हालांकि, कम्युनिटी के कई ट्रांसजेंडर लोगों के पास पहचान का यही एकमात्र सबूत है.

क्या कहते हैं ट्रांसजेंडर?

द हिंदू ने सैफो फॉर इक्वालिटी की मैनेजिंग ट्रस्टी कोयल घोष के हवाले से बताया है कि, "हम सभी ने ज़िंदगी में एक बार अपने घर की भावना खो दी है. SIR और अपनी पहचान साबित करने की प्रक्रिया के बारे में यह चिंता हमें एक बार फिर वही चिंता महसूस करा रही है. हममें से ज्यादातर ज़्यादातर लोग लगातार ट्रॉमा में जी रहे हैं. ये समस्या किसी एक की नहीं, बल्कि सैकड़ों लोगों की है.'

ट्रांसजेंडर कियान जैसे कई लोग जो इस ट्रांजिशन के प्रोसेस में हैं या पहले ही ट्रांजिशन कर चुके हैं. उन्हें दूसरी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जहां भले ही उनके पास पुराने पहचान पत्र हों, लेकिन उनके चेहरे, जेंडर और नाम ट्रांजिशन से पहले की उनकी पिछली पहचान से मेल नहीं खाते.

40 साल के ट्रांसमैन ईशान ने कहा कि यह मुद्दा उन ट्रांस लोगों के लिए पहले से ही खतरा पैदा कर रहा है जो घर छोड़ चुके हैं और अपने खतरनाक घरों से दूर किराए के अपार्टमेंट में काम करने और रहने की कोशिश कर रहे हैं. कई लोगों को काम से निकाल दिया गया है. कई लोगों को अपने किराए के घरों में धमकियों का सामना करना पड़ा है. मकान मालिक उनसे ऐसे सवाल पूछते हैं, “तुम्हारे चेहरे पर बाल क्यों आने लगे हैं?”

ईशान आगे कहते हैं, “मेरी पार्टनर ने बचपन में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था. जब वह बड़ी हुई तो सड़क किनारे झोपड़ियों में रहती थी. वह झोपड़ी भी समय के साथ टूट गई है. उसे अपने पिछले घर और अपने पूर्वजों का सबूत कहां और कैसे मिलेगा? ईशान परेशान है. उसने आगे कहा कि वह और उसकी पार्टनर दोनों रातों की नींद हराम कर रहे हैं, क्योंकि वे अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर टेंशन में हैं. जबकि वे अपने वर्तमान का ध्यान रखने और अपने खतरनाक पैतृक घरों के बाहर कम्युनिटी में ज़िंदगी बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.'

बात नागरिक होने के नाते मूल अधिकार की है

उन्होंने कहा, “भारत का संविधान कहता है कि हम भारत के लोग... हम भी भारत के लोग हैं, हम खुद को शामिल करते हैं, लेकिन सरकार हमारे लिए कोई जगह नहीं बनाती या SIR प्रोसेस में हमें शामिल करने की कोशिश नहीं करती, जबकि बात इस देश के नागरिक के तौर पर हमारे बेसिक अधिकारों की है.”

डाक्यूमेंट के लिए घर गई तो वे लौटकर नहीं आने देंगे

इसी तरह कोयल ने बताया वे अपने कई साथियों को दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे जो SIR प्रोसेस की लगातार चिंता से जूझ रहे हैं. कई लोगों को डर है कि उन्हें अपने पैतृक घरों में वापस जाना पड़ेगा, जिन्होंने उन्हें कभी वैसे नहीं अपनाया जैसे वे हैं और उनकी पहचान और पार्टनर की पसंद के कारण उन्हें छोड़ दिया.

घर छोड़ने की जिद पर सारे डाक्यूमेंट जला दिए

कबिता का कहना कि 4 साल पहले अपने घर से बाहर निकली और तब से वापस नहीं आई. जब उसने अपनी आज़ादी और सुरक्षा के लिए घर छोड़ने की कोशिश की तो उसके परिवार ने उसके डॉक्यूमेंट्स जला दिए. उसका परिवार उसके साथ मारपीट करता था. उन्होंने सैफो फॉर इक्वालिटी (एक ट्रांस-क्वीर राइट्स ऑर्गनाइजेशन) के चार लोगों को भी पीटा, जो कबिता को उसके घर से वापस लाने गए थे.

कबिता ने कहा, “अब मैं अपनी पहचान कैसे साबित करूंगी? मेरा परिवार मुझे वेरिफिकेशन के लिए घर वापस आने के लिए कह रहा है. मुझे लगता है कि यह एक जाल है और वे मुझे घर वापस लाने के लिए SIR प्रोसेस का इस्तेमाल कर रहे हैं. ताकि वे मुझे बंद कर सकें और शायद मेरे साथ और बुरा बर्ताव कर सकें.” कियान ने यह भी बताया कि हिजड़ा समुदाय के कई सदस्यों को उनकी ट्रांसजेंडर पहचान के कारण जन्म के समय ही छोड़ दिया गया है.

हालांकि, जब पश्चिम बंगाल चुनाव आयोग के ऑफिस के अधिकारियों से पूछा गया, तो उन्हें साफ तौर पर पता नहीं था कि ट्रांसजेंडर समुदाय इन समस्याओं को कैसे हल कर सकता है. अधिकारियों ने कहा कि ऐसे मुद्दों से जुड़े किसी भी विवाद को सुनवाई में उठाया जाएगा और वहीं सुलझाया जाएगा.

SIR मुद्दे को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय की चिंता कहीं ज्यादा गहरी है. 25 साल के ट्रांसमैन कियान ने पूछा, “अगर हम इस देश के लोग नहीं हैं, तो हम कौन हैं? हमारे माता-पिता हमें नहीं चाहते, हमारा देश नहीं चाहता, तो हम कहां जाएं?

ट्रांसजेंडर अपनी पहचान ऐसे करें साबित

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी पहचान साबित करने के लिए कानूनन एक स्पष्ट प्रक्रिया तय है. यह प्रक्रिया The Transgender Persons Protection of Rights Act 2019 और उससे जुड़े Rules के तहत चलती है.

1. Self-Identification (स्व-पहचान का अधिकार)

भारत में कानून कहता है कि हर व्यक्ति अपनी जेंडर आइडेंटिटी खुद तय कर सकता है. इसके लिए किसी मेडिकल टेस्ट, सर्जरी या मनोवैज्ञानिक प्रमाण की जरूरत नहीं है.

2. Transgender Identity Certificate कैसे मिलता है?

ऑनलाइन पोर्टल https://transgender.dosje.gov.in लॉगिन करें. यहां पर उपलब्ध "Application for Certificate of Identity" भरें कर उसे सबमिट करें. फिर जिला मजिस्ट्रेट (DM) की मंजूरी लें. DM (जिलाधिकारी) आपका आवेदन देखकर Transgender Certificate जारी करते हैं. ये प्रमाणपत्र बताता है कि आप "Transgender Person" हैं. सर्टिफिकेट के बाद आपको Transgender Identity Card मिलता है, जिसमें नाम, जन्मतिथि, जेंडर, फोटो, यूनिक नंबर मेंशन होता है.

3. जेंडर साबित करना जरूरी नहीं

अगर किसी ने Gender Reassignment Surgery कराई हो तो वह चाहें तो DM के सामने मेडिकल सर्टिफिकेट लगाकर पुरुष (Male) या महिला (Female) के रूप में नया सर्टिफिकेट ले सकते हैं, लेकिन यह वैकल्पिक है. सर्जरी कराना अनिवार्य नहीं है.

पहचान प्रमाण के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत होती है? आधार कार्ड, मोबाइल नंबर, फोटो, एड्रेस, प्रूफ आदि. किसी मेडिकल या सर्जरी रिपोर्ट अनिवार्य नहीं है. जब तक आप male/female में परिवर्तन का आवेदन न करें.

5. संविधान तो देता है अधिकार

ट्रांसजेंडरों के लिए अलग से मताधिकार का प्रावधान नहीं है. परंतु ट्रांसजेंडरों का वोट देने का अधिकार संविधान, Representation of the People Act, सुप्रीम कोर्ट (NALSA, 2014) और चुनाव आयोग देता हैं. 

6. बिहार में भी सामने आई थी समस्या, निकला ये समाधान

बिहार में एसआईआर के दौरान भी इस तरह की समस्याएं समाने आई थीं. वहां पर ट्रांसजेंडरों के पास दस्तावेज न होने की स्थिति में उनके माता-पिता या पेशागत गुरु आकर साइन कर दें, तो उन्हें एसआईआर में शामिल कर लिया गया था. साथ ही संबंधित ट्रांसजेंडर को फॉर्म 6 भी भरकर देना होगा.

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