Pahalgam Terror Attack: शिकारा बन गया तीन जिंदगियों का सहारा, पहलगाम हमले से यूं बच निकले केरल के 3 जज

इत्तेफाक का खेल यह है कि हम कभी नहीं जानते कि अगले पल क्या होने वाला है, लेकिन जब हम पलटकर देखते हैं तो वह संयोग हमारे लिए कई बार अच्छा होता है. ऐसा ही कुछ केरल के 3 जजों के साथ हुआ, जो कश्मीर घूमने गए थे. उनकी एक चाह ने उन्हें मौत से बचा लिया.;

( Image Source:  X )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 23 April 2025 5:55 PM IST

कश्मीर के शांत और खूबसूरत पहलगाम में मंगलवार को जो हुआ, उसने हर किसी का दिल दहला दिया. एक आतंकवादी हमले ने वहां छुट्टियां मनाने आए लोगों की खुशियां छीन लीं. इस हमले में 27 बेगुनाह लोगों की जान चली गई और 16 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. जिन परिवारों ने वहां सिर्फ कुछ सुकून भरे पल बिताने की सोची थी, उन्हें ऐसा दर्द मिला जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. 

जिंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहां एक छोटी-सी देर या जल्दबाजी सब कुछ बदल सकती है. केरल हाई कोर्ट के तीन जजों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. वह अपने परिवार के साथ जम्मू और कश्मीर की वादियों में कुछ सुकून भरे पल बिताने पहुंचे थे. पहलगाम की शांत वादियां, ठंडी हवा और डल झील की शिकारों की सवारी सब कुछ एक सपने जैसा था. लेकिन किसे पता था कि उस सपने के बीच कुछ ही घंटे बाद एक ऐसा खौफनाक मंजर आने वाला था, जो पूरे देश को हिला देगा? संयोग से ये तीनों जज अपने परिवारों के साथ कुछ घंटे पहले ही उस जगह से लौट आए थे. शिकारा की सवारी की उनकी जिद ने मौत को टाल दिया. चलिए जानते हैं यह सस्पेंस भरी कहानी. 

डल झील ने बचाई जान 

कभी-कभी इंसान को खुद नहीं पता होता कि उसके दिल की एक छोटी-सी ख्वाहिश किस तरह उसकी ज़िंदगी को बचा सकती है. केरल हाईकोर्ट के जज नरेंद्रन को न जाने क्यों डल झील की ओर खिंचाव महसूस हुआ. उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि मेरा मन डल झील देखने का है और वही मन की जिद, वही अचानक लिया गया फ़ैसला उनके और उनके परिवार की सुरक्षा की वजह बन गया.

क्या ये महज इत्तेफाक था?

केरल हाई कोर्ट के जस्टिस गिरीश शांत थे, कुछ बोले नहीं, लेकिन उनकी आंखों और चेहरे पर जो लिखा था, वो किसी शब्द से ज़्यादा कह रहा था. वो खामोशी चीख रही थी-डर, हैरानी और राहत, सब कुछ एक साथ. क्या ये महज इत्तेफाक था कि वे बच गए, या फिर किस्मत की कोई अनदेखी चाल?

बाल-बाल बचे

जस्टिस पी.जी. अजित कुमार ने कांपती आवाज़ में कहा कि 'हम दोपहर तक श्रीनगर पहुंच गए थे. जब सुना कि हमला हुआ है, तो रूह तक कांप गई. हम सच में बाल-बाल बचे.'

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