हजरतबल दरगाह अशोक चिह्न विवाद, राष्ट्रीय प्रतीक तोड़ने पर कानून क्या कहता है?

जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न तोड़े जाने की घटना ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. बीजेपी ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताया तो वहीं विपक्षी दलों ने धार्मिक स्थल पर प्रतीक लगाने पर सवाल उठाए. पुलिस ने 20 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है और कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है. राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और राष्ट्रीय प्रतीक अधिनियम, 2005 के तहत दोषियों को 3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. जानिए पूरी जानकारी और कानूनी सजा.;

( Image Source:  X/AdvRajendraPal )
Edited By :  नवनीत कुमार
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जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न तोड़े जाने की घटना ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है. दरगाह के नवीनीकरण के दौरान लगाए गए बोर्ड पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ की आकृति बनाई गई थी. कुछ लोगों ने इसे इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए पत्थरों से तोड़ डाला. उनके अनुसार धार्मिक स्थलों पर किसी भी तरह की मूर्ति या प्रतीक बनाना शरीयत के विपरीत है.

घटना के तुरंत बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई. बीजेपी नेताओं ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करार देते हुए आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने उलटा सवाल खड़ा किया कि आखिर दरगाह में सरकारी प्रतीक क्यों लगाया गया. उन्होंने वक्फ बोर्ड पर धार्मिक संवेदनशीलता की अनदेखी का आरोप लगाया.

पुलिस की कार्रवाई

इस मामले में पुलिस ने बीएनएस और राष्ट्रीय प्रतीक संरक्षण कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है. अब तक 20 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है और कई से पूछताछ जारी है. पुलिस का मानना है कि यह घटना न केवल सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला है, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान भी है, जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है.

अशोक चिह्न तोड़ने पर सजा क्या है?

कानून के अनुसार, राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा के लिए विशेष अधिनियम बनाए गए हैं. राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग पर रोक) अधिनियम, 2005 इसके प्रमुख उदाहरण हैं.

  • यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
  • अनुचित उपयोग या तोड़फोड़ करने पर दो साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि हजरतबल की घटना साधारण तोड़फोड़ नहीं है, बल्कि इसमें राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुंचाने का पहलू भी शामिल है. ऐसे में आरोपियों पर कठोर धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. यह मामला केवल स्थानीय विवाद नहीं है, बल्कि इसमें संविधान और राष्ट्रीय प्रतीक की गरिमा को बनाए रखने की चुनौती है.

आतंकी साजिश या धार्मिक भावनाएं?

बीजेपी नेता दरख्शां अंद्राबी ने इस घटना को ‘आतंकी कार्रवाई’ बताते हुए केंद्र से कड़ी कार्रवाई की मांग की. दूसरी ओर विपक्षी दलों का कहना है कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाकर लोगों की भावनाओं को उकसाया गया. अब यह मुद्दा केवल धार्मिक विवाद नहीं रहा, बल्कि आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर की राजनीति और चुनावी माहौल पर भी इसका गहरा असर पड़ सकता है.

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